गहलोत का रंग उड़ाने में पायलट नाकाम! सियासी दलों पर चढ़ा चुनाव तक नहीं छूटने वाला रंग, जानें

Rajasthan News: राजस्थान में चुनावी साल में होली का यह पर्व सियासी रंगों से सराबोर रहा. राजनीति के धुरंधरों ने एक-दूसरे पर गुलाल नहीं बल्कि गहरे रंग बरसाए जो चुनाव तक नहीं छूटने वाला है. कांग्रेस के अंदर तो बजट घोषणा के दिन से ही होली मनना शुरू हो गई थी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने […]

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विशाल शर्मा

• 03:43 PM • 08 Mar 2023

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Rajasthan News: राजस्थान में चुनावी साल में होली का यह पर्व सियासी रंगों से सराबोर रहा. राजनीति के धुरंधरों ने एक-दूसरे पर गुलाल नहीं बल्कि गहरे रंग बरसाए जो चुनाव तक नहीं छूटने वाला है. कांग्रेस के अंदर तो बजट घोषणा के दिन से ही होली मनना शुरू हो गई थी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश की जनता पर घोषणाओं की अबीर उड़ेली, तो सालासर के धाम से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की टोली ने पुष्प रंगों का धमाल मचाया. वहीं सचिन पायलट को सलाहकार सब्र करने और छुप कर गुब्बारे फेंकने की सलाह दे रहे हैं.

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राजनीतिक होली में कौन किस को कौन-सा रंग लगा रहा है और किसका ओरिजिनल सियासी रंग क्या है, समझना बेहद मुश्किल है. लेकिन सुपर ब्रांडेड गहलोत पिचकारी ने होली से पहले ही बजटीय धुलंडी खेल ली और सत्ता की पिचकारी से रंगों की सियासी बौछार छोड़ दी. जिसके बाद उनके मंत्री-संत्री हर जिलों में जाकर बजटीय रंग प्रदेश भर में बिखेर रहे हैं. अक्सर ऐसा कम होता है जब चुनाव से पहले ही विपक्षी दल के अंदर सारा फाग कुर्सी के आसपास ही खेला जा रहा हो. इस फाग में सभी के चेहरे इस कदर बदरंग हैं कि असली-नकली का भेद बूझना भी कठिन है. इन रंगे हुए चेहरों को पहचान लेना भी उतना ही रंगीन है, जितना कि शब्दों की पिचकारी से इन रंगों की बौछार.

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सूबे की सत्ता का बजटीय रंग विरोधी टोली पर ना चढ़े इसलिए वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया की फाग टोली ने अलग-अलग धमाल मचाई. जहां सालासर में गैर की मस्ती के साथ वसुंधरा राजे की फाग टोली ने रंग बिखेरे जिसमें प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह भी खुद को थिरकने से नहीं रोक पाए. तो उधर जयपुर में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की टोली ने गहलोत के खिलाफ आक्रोश व्यक्त कर सरकारी पानी से होली खेली.

उधर पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट पता नहीं कब होली जलाने लगें और कब होली खेलने लगें, कहा नहीं जा सकता. जब उनसे पिचकारी की अपेक्षा होती है, वे होली का डंडा गाड़ने लगते हैं और जब होलिका दहन का मौका आता है तो वे फाग गाने में मस्त हो जाते हैं. लेकिन ये हैं कि धुलंडी और रंगपंचमी में अंतर नहीं कर पाते और उनके भाषणों का रंग भी कुछ उखड़ा-उखड़ा सा हो जाता है. फिर भी उनकी कोशिश रहती है कि हर पिचकारी की मार दिल्ली आलाकमान तक हो और अगली होली तक सूबे की कुर्सी पर काबिज हो. बहरहाल होली तो चली गई लेकिन फिर भी प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत में होली खेलने में जो मजा आता है वो और कहां. अब असली रंग तो तब चढ़ेगा जब इन्हीं में से एक नेता प्रदेश की पंचायत का प्रमुख नेता बनेगा.

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