Sariska Tiger Reserve : सरिस्का टाइगर रिजर्व का टिकट हो गया महंगा, यहां जानें नए रेट्स

Sariska Tiger Reserve : अगर आप सरिस्का घूमने का प्लान कर रहे हैं तो अब यहां टाइगर सफारी (Tiger Safari) करना काफी महंगा हो गया है.

NewsTak

राजस्थान तक

18 Jun 2024 (अपडेटेड: 19 Jun 2024, 04:26 PM)

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सरिस्का में टाइगर सफारी (Tiger Safari in Sariska ) करना अब पहले से महंगा हो गया है. ़क्योंकि राजस्थान सरकार ने सफारी और एंट्री फीस समेत सभी तरह के शुल्क को 10 प्रतिशत बढ़ा दिया है. अब इसका सीधा असर सरिस्का (Sariska Tiger Reserve) में घूमने आने वाले देसी-विदेशी पर्यटकों की जेब पर पड़ेगा. 

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सरिस्का के अधिकारियों ने बताया कि सभी बढ़ी हुई रेट (tiger safari rates) 15 जून 2024 से लागू हो गई है जो 31 मार्च 2026 तक प्रभावी रहेगी. यानी अब 2 साल तक रेट में कोई बदलाव नहीं होगा. अब प्रत्येक भारतीय पर्यटक को 67 रुपए प्रवेश शुल्क तथा 78 रुपए इको सरचार्ज सहित कुल 145 रुपए देने होंगे.

अब जिप्सी किराए के लिए चुकाने होंगे 589 रुपये (sariska tiger safari ticket rates)

सरिस्का के दोनों गेट और बाला किला बफर जोन क्षेत्र में 100 से ज्यादा जिप्सी व कैंटर हैं. सरिस्का के कोर एरिया में अब हर एक पर्यटक को जिप्सी गाइड (guide fees) लिए 140 की बजाय 154 रुपए और कैंटर गाइड के लिए 50 की जगह 55 रुपए चुकाने होंगे. वहीं कैंटर किराए के लिए 440 की जगह 484 रुपए और जिप्सी किराए के लिए 535 की जगह 589 रुपए देने होंगे.

सरिस्का के अलावा बाला किला बफर जोन में भी सफारी की रेट में बढ़ोतरी की गई है. नई दर के तहत बाला किला वन क्षेत्र में जिप्सी के लिए गाइड फीस 300 की जगह 330 रुपए और वाहन किराया 1300 रुपए से बढ़कर 1430 रुपए किया गया है.

पर्यटकों की पहली पसंद बनता जा रहा है सरिस्का (sariska tiger safari)

सरिस्का में साल भर देसी-विदेशी पर्यटक घूमने के लिए आते हैं. यहां इस समय 43 बाघ, बाघिन व शावक हैं. सरिस्का में पिछले आठ महीने के दौरान 7 नए शावक नजर आए हैं.  सरिस्का में आने वाले पर्यटकों को अक्सर बाघों की साइटिंग (Tiger sighting) होती है. इसलिए सरिस्का एक बार फिर से लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है.

अरावली की पहाड़ियों में है स्थित

सरिस्का टाइगर रिजर्व राजस्थान के अलवर जिले में अरावली की पहाड़ियों में स्थित है. इसे 1955 में एक वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया गया था और बाद में 1978 में इसे बाघ अभयारण्य घोषित कर दिया गया. इससे यह भारत सरकार के प्रोजेक्ट टाइगर का हिस्सा बन गया.

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