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क्या रंधावा से अकेले नहीं संभल रहा था राजस्थान? क्या गहलोत-पायलट की लड़ाई को सुलझाने में नाकामयाब हो रहे थे रंधावा? क्या कांग्रेस के सर्वे के बाद विधायकों के कामकाज की रिपोर्ट के बाद राजस्थान के रण में आलाकमान को करनी पड़ी एंट्री? जब से कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने आदेश जारी कर राजस्थान में तीन सह प्रभारी सचिव की घोषणा की है तब से ये सवाल राजनीतिक हलकों में छाए हुए हैं। आपको बता दें कि दिल्ली महिला कांग्रेस अध्यक्ष अमृता धवन, गुजरात में सह प्रभारी वीरेंद सिंह राठौड़ और काजी निजामुद्दीन को राजस्थान कांग्रेस के सह प्रभारी सचिव के तौर पर प्रभारी के साथ लगाया गया है। राजस्थान सह प्रभारी सचिव पद से तरूण कुमार को हटा दिया गया है। वीरेंद्र सिंह राठौड़ को गुजरात से राजस्थान की जिम्मेदारी दी गई है। काजी निजामुद्दीन पिछले चुनावों के समय सह प्रभारी सचिव थे, अब फिर उन्हें जिम्मेदारी दी है।
गौरतलब है कि अब बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस भी अब एक्शन मोड में आ गई है। एक तरफ कांग्रेस गहलोत सरकार की योजनाओं के दम पर फिर से सरकार बनाने का दावा कर रही है लेकिन वहीं दूसरी तरफ गहलोत-पायलट का झगड़ा पार्टी के गले की फांस बना हुआ है। दोनों के झगड़े को सुलझाने के लिए अब तक 3 प्रभारी राजस्थान आए हैं लेकिन तीनों ही उसमें सफल नहीं हो पाए। पहले अविनाश पांडे, उसके बाद अजय माकन और फिर सुखजिंदर सिंह रंधावा। रंधावा राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी के तौर पर दिसंबर में आए लेकिन अभी तक वो भी कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी को खत्म करने में नाकामयाब रहे। अब जब तीन सह प्रभारियों की नियुक्ति की गई है तो शायद राजस्थान कांग्रेस और मजबूत मिल सके।
चुनावी साल में जिले बांटकर सह प्रभारी सचिवों के बीच काम का बंटवारा किया जाएगा। नेताओं और कार्यकर्ताओं की शिकायतों को सुनकर प्रभारी तक पहुंचाने और एआईसीसी से कॉर्डिनेशन रखना प्रभारी सचिवों की जिम्मेदारी होगी। नए प्रभारी सचिवों के सामने राजस्थान कांग्रेस की गुटबाजी के बीच सामंजस्य रखना भी चुनौती होगी। कहा जा रहा है कि गहलोत एक सर्वे के आधार पर दावा कर रहे हैं कि राजस्थान में सरकार रिपीट होगी। गहलोत के दावे के आधार पर ही पार्टी आलाकमान भी सक्रिय हो गया है और जल्द से जल्द संगठनात्मक नियुक्ति कर रहे हैं ताकि चुनाव में पूरी ताकत के साथ उतरा जा सके। पार्टी ने ये भी संकेत दिए कि सर्वे के आधार पर टिकट तय होंगे जिसके चलते कई विधायकों और मंत्रियों के टिकट पर संकट के बादल छा गए हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि सहप्रभारियों के आने से क्या रंधावा मजबूत होंगे और राजस्थान की गुटबाजी को खत्म कर पाएंगे। आपकी इसे लेकर क्या कुछ कहना है, कॉमेंट बॉक्स में हमें अपनी राय बता सकते हैं।
Delhi’s eye on Rajasthan, ‘army’ of co-incharges behind in-charge Randhawa!
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