ज्वाला देवी मंदिर: ऐसा शक्तिपीठ जहां बिना तेल-बाती के हर समय जलती है ज्योति

यह एक ऐसा अद्भुत मंदिर है जिसमें भगवान की कोई मूर्ति नहीं है. इसकी ख्याति जाता वाली मां के मंदिर के रूप में भी है. कहते हैं कि इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी. इसके अलावा इस मंदिर से जुड़े कुछ खास रहस्य भी हैं. आइए जानते हैं इस बारे में. 

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News Tak Desk

23 Apr 2024 (अपडेटेड: 23 Apr 2024, 08:17 PM)

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हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर स्थित है, जहां पर सदियों से दिन के आठों प्रहर पावन ज्योति जलती चली आ रही है. खास बात यह कि देवी दुर्गा के ज्वाला स्वरूप वाले इस धाम में पावन ज्योत बगैर किसी तेल या बाती के जलती है. यही वजह है कि ये जगह पूरे भारत के हिंदू तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती हैं. बता दें, यह एक ऐसा अद्भुत मंदिर है जिसमें भगवान की कोई मूर्ति नहीं है. इसकी ख्याति जाता वाली मां के मंदिर के रूप में भी है. कहते हैं कि इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी. इसके अलावा इस मंदिर से जुड़े कुछ खास रहस्य भी हैं. आइए जानते हैं इस बारे में. 

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ज्वाला देवी मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक तथ्य

  • मान्यताओं के अनुसार, ज्वाला देवी मंदिर उस स्थान पर है जहां देवी सती की धधकती जीभ गिरी थी जब उन्होंने खुद का बलिदान दिया था. 
  • यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं, जिसके ऊपर मंदिर बनाया गया है.
  • इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.
  • इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था. बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया.
  • बता दें, मुगल शासक अकबर ने इस ज्योत को बुझाने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहा था. जिसके बाद देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने 50 किलो सोने का छतर मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया. आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है.
  • वहीं, ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए. लेकिन वे इस भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए कि यह आखिर इसके निकलने का कारण क्या है.
  • यही नहीं पिछले सात दशकों से भूगर्भ विज्ञानी इस क्षेत्र में तंबू गाड़ कर बैठे हैं, वह भी इस ज्वाला की जड़ तक नहीं पहुंच पाए हैं.

माता ज्वाला देवी के दर्शन और आरती का समय 

आपको बता दें, मंदिर में पुजारियों द्वारा की जाने वाली आरती मंदिर का मुख्य आकर्षण है. इस मंदिर में दिन भर में पांच आरती और एक हवन किया जाता है. भक्त अपनी भक्ति की निशानी के रूप में देवी को रबड़ी, मिश्री, चुनरी, दूध, फूल और फल अर्पित करते हैं. अगर आप ज्वाला देवी के दर्शन के लिए जा रहे हैं तो आपको मंदिर खुलने और यहां होने वाले दर्शन का समय जरूर मालूम होना चाहिए क्योंकि मौसम के अनुसार मंदिर के खुलने और बंद होने के समय में बदलाव कर दिया जाता है. जानकारी के मुताबिक, गर्मियों में जहां मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुलता है, वहीं सर्दी के दिनों में सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है.

ज्वाला देवी मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छा समय 

इस मंदिर में नवरात्रि के मौके पर भक्तों का तांता लगा रहता है. वहीं मंदिर प्रशासन मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर के महीनों में रंगीन मेलों का आयोजन करता है. ऐसे में आप इस दौरान अपने परिवार या दोस्तों के साथ ज्वाला देवी मंदिर घूमने जा सकते हैं.

कैसे पहुंचे ज्वाला देवी मंदिर

हवाई मार्ग से- बता दें, कांगड़ा में कोई हवाई अड्डा नहीं है. लेकिन कांगड़ा घाटी से लगभग 14 किमी की दूरी पर गग्गल हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है. फिर यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस की सुविधा उपलब्ध है.

रेल मार्ग द्वारा- बता दें, कांगड़ा के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है. रेल मार्ग से जाने वाले यात्री पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मारंडा होते हुए पालमपुर आ सकते हैं. फिर पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए आप बस या कार बुक कर सकते हैं.

सड़क मार्ग से- आपको बता दें कि पंजाब, दिल्ली और हरियाणा के शहरों से राज्य परिवहन की बसें कांगड़ा तक चलती हैं. ज्वाला देवी मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. इसके अलावा यात्री अपने निजी वाहनों के द्वारा भी यहां पहुंच सकते हैं.

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