'भूमिहार बनाम भूमिहार' की लड़ाई में किसकी होगी जीत? NDA को किस बात की चिंता!

बिहार चुनाव में 'भूमिहार बनाम भूमिहार' की लड़ाई से सियासी पारा गरम है. यह समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा का समर्थक रहा है, लेकिन महागठबंधन ने भी भूमिहारों को टिकट देकर समीकरण बदल दिए हैं. बिक्रम, मोकामा जैसी कई हॉट सीटों पर दोनों खेमों के भूमिहार उम्मीदवार आमने-सामने हैं.

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Bhumihar Vote Bank: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे ही राजनीतिक सरगर्मी तेज होती जा रही है. इस बार राज्य की सियासत में जातिगत समीकरणों के बीच 'भूमिहार' समुदाय के वोट बैंक पर सबकी निगाहें टिकी हैं. यह समुदाय पारंपरिक रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का बड़ा समर्थक रहा है. हालांकि, इस चुनाव में कई सीटों पर दो भूमिहार उम्मीदवार आमने-सामने हैं, जिससे सभी दलों ने इस प्रभावशाली वोट बैंक को साधने की रणनीति तेज कर दी है.

हॉट सीटों पर सीधा मुकाबला

भाजपा ने लगभग 32 भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट दिया है. वहीं, दिलचस्प यह है कि महागठबंधन ने भी करीब 15 भूमिहार प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. इस कारण मोकामा, बरबीघा, बेगूसराय, मटिहानी, बिक्रम और लखीसराय जैसी सीटों पर सीधा भूमिहार बनाम भूमिहार की टक्कर देखने को मिल रही है. उदाहरण के लिए, उप-मुख्यमंत्री विजय सिन्हा के सामने कांग्रेस ने अमरेश अनीश को टिकट दिया है, जिससे यह सीटें हॉट सीट बन गई हैं.

बिक्रम में पाला बदलने वाले नेता

पटना की बिक्रम विधानसभा सीट पर मुकाबला कड़ा है. भाजपा के मौजूदा विधायक सिद्धार्थ सौरभ का सामना अनिल कुमार से है और दोनों ही भूमिहार जाति से हैं. सौरभ पहले कांग्रेस के विधायक थे, जिन्होंने बाद में भाजपा का दामन थाम लिया. दूसरी ओर, अनिल कुमार तीन बार के विधायक रह चुके हैं और भाजपा से टिकट न मिलने पर अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.

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'विकास पर वोट' बनाम 'जाति का महत्व'

भाजपा उम्मीदवार सिद्धार्थ सौरभ का दावा है कि लोग जाति पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास कार्यों (ट्रॉमा सेंटर, रोजगार, सड़क निर्माण) पर वोट करेंगे.

एनडीए के प्रचार में जुटे चिराग पासवान ने भी यही बात दोहराई है. वे कहते हैं कि उनका नारा 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' है और वे विकास, रोजगार और फैक्ट्रियों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. एनडीए समर्थकों को पूरा विश्वास है कि मोदी-नीतीश का 'विकास मॉडल' ही इस चुनाव में विजयी होगा.

महागठबंधन की नई रणनीति

दूसरी ओर, महागठबंधन के खेमे में उम्मीद है कि इस बार भूमिहार वोट उनकी ओर मुड़ सकता है. कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और भूमिहार नेता अखिलेश प्रसाद सिंह के अनुसार, तेजस्वी यादव ने भूमिहारों को पहले से अधिक महत्व दिया है, जिससे गठबंधन कई भूमिहार बहुल सीटों पर अपना वर्चस्व मजबूत कर सकता है. उनके अनुसार, भूमिहारों की ताकत अब कम हो रही है लेकिन वे अब भी राजनीतिक रूप से शिक्षित और जमीन से जुड़े हुए हैं, जो दूसरों को प्रभावित करते हैं.

भूमिहार समुदाय का राजनीतिक प्रभाव

भूमिहार समुदाय बिहार की सियासत में हमेशा अहम रहा है. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा इसी समुदाय से थे. जातिगत सर्वे के मुताबिक, उनकी आबादी 2.9 फीसदी है. वे पढ़े-लिखे और जमीनदार हैं. 2020 चुनाव में 51 फीसदी भूमिहारों ने एनडीए को वोट दिया. महागठबंधन को सिर्फ 19 फीसदी मिले. लेकिन इस बार हवा बदल रही है. महागठबंधन ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आधा दर्जन से ज्यादा भूमिहारों को टिकट दिए हैं.

अनिल कुमार के समर्थक चंदन कहते हैं, "एनडीए का दबदबा अब नहीं. भूमिहार देखेंगे कि उम्मीदवार उनका ही है. इस बार महागठबंधन की ओर झुकाव होगा." कांग्रेस की बैठकों में भी यही चर्चा है.

राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह कहते हैं, "श्री बाबू के बाद कोई भूमिहार मुख्यमंत्री नहीं बना. लेकिन उनकी ताकत सत्ता बनाने-गिराने में रही. अब महागठबंधन हमें ज्यादा तवज्जो दे रहा है. भूमिहार बहुल सीटों पर हम मजबूत होंगे."

बिक्रम, पाली, जहानाबाद, मोकामा, मुंगेर, बेगूसराय और नवादा जैसे इलाकों में भूमिहार वोट निर्णायक हैं. जहां वे झुकते हैं, वही जीतता है. चुनावी जंग में यह समुदाय अब केंद्र में है. विकास और जाति का टकराव बिहार की सियासत को नया मोड़ दे रहा है. क्या एनडीए का पुराना गढ़ बचेगा या महागठबंधन नया इतिहास रचेगा? यह 14 तारीख को नतीजे आने के बाद पता चलेगा. 

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