Bihar Election 2025: मुस्लिम वोटों में बिखराव से चौंकाने वाले नतीजे दे सकता है सीमांचल, जानिए दो बिरादरी में बंटा मुस्लिम फैक्टर
Bihar Election 2025 second phase voting: बिहार में 11 नवंबर को दूसरे फेज की 122 सीटों पर वोटिंग होनी है. इसमें सीमांचल की 5 जिलों के जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं. इन सीटों पर शेरशाहवादी और सुरजापुरी मुसलमानों की बड़ी आबादी है. क्या है इन सीटों का पूरा समीकरण? जानें

11 नवंबर को बिहार में दूसरे चरण का मतदान होना है. दूसरे चरण में सबकी नजरें एक बार फिर सीमांचल पर टिकी होंगी. सीमांचल के पांच जिलों में मुस्लिम आबादी और इनके वोटों के समीकरण के जरिए ही बिहार में सत्ता का समीकरण तय होता है. ध्यान देने वाली बात है कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी सीमांचल ने सत्ता का रास्ता तय करने में भूमिका निभाई थी.
महागठबंधन अगर 2020 में सीमांचल के इलाके के बढ़िया प्रदर्शन कर लेता तो तेजस्वी मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल में जीत दर्ज कर तेजस्वी के मंसूबों पर पानी फेर दिया. सीमांचल में धार्मिक स्तर पर वोटों के ध्रुवीकरण के साथ-साथ मुस्लिम आबादी में लोकल और बाहरी का मुद्दा एक बार फिर गरम रहने की उम्मीद है.
दो प्रमुख मुस्लिम बिरादरी में क्या है वोटों के बिखराव की कहानी
सीमांचल के इलाके में पाए जाने वाली दो प्रमुख मुस्लिम बिरादरी शेरशाहवादी और सुरजापुरी. जो पश्चिम बंगाल से आकर सीमांचल में बसे उनमें शेरशाहवादी भी शामिल हैं. वहीं स्थानीय मुस्लिम के तौर पर पहचान रखने वालों को सुरजापुरी हैं.
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2020 के पहले भले ही शेरशाहवादी और सुरजापुरी सीमांचल में कोई मुद्दा ना रहा हो, लेकिन बीते चुनाव से यह मुद्दा सीमांचल के अंदर मुस्लिम वोटो में बिखराव की कहानी बता रहा है. सीमांचल के 5 जिले किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और सुपौल में मुस्लिम आबादी ज्यादा है. सीमांचल के स्थानीय मुस्लिम जो खुद को देशी कहते हैं, उनमें मुख्य तौर पर सुरजापुरी और कुल्हैया मुस्लिम शामिल हैं.
सबसे बड़ा है ये मुस्लिम समुदाय
आबादी के लिहाज से सीमांचल में सुरजापुरी समुदाय सबसे बड़ा है. किशनगंज जिले की सभी 4 विधानसभा सीटों समेत पूर्णिया की अमौर और बायसी के साथ-साथ कटिहार की बलरामपुर सीट पर सुरजापुरी वोटर्स की संख्या निर्णायक मानी जाती है. इसी तरह अररिया की जोकीहाट और अररिया सदर सीट पर कुल्हैया मुसलमानों का प्रभाव मिलता है. साल 2020 के चुनाव में सीमांचल से कुल 11 मुस्लिम विधायक चुनाव जीते, इनमें 6 सुरजापुरी थे. इसी से समझा जा सकता है कि इस पूरे सीमांचल में सुरजापुरी मुसलमान का प्रभाव किस कदर है.
कई सीटों पर सुरजापुरी तय करते हैं हार-जीत का समीकरण
सीमांचल में लोकल कहे जाने वाले सुरजापुरी मुसलमानों की आबादी लगभग 24 लाख है. कई सीटों पर सुरजापुरी ही हार और जीत तय करते हैं. इनके मुकाबले बिहार के सीमांचल में शेरशाहवादी मुसलमानों की आबादी लगभग 14 लाख है. अब सवाल उठता है कि आखिर सीमांचल के शेरशाहवादी मुस्लिम कौन हैं?
शेरशाहवादी मुसलमान कौन हैं?
सीमांचल के इलाके में इनकी पहचान बड़ी आसानी से की जा सकती है. उर्दू और बंगाली बोली को मिक्स कर बोलने वालों की पहचान आमतौर पर शेरशाहवादी मुस्लिम के तौर पर होती है. शेरशाहवादी मुसलमान अति पिछड़ा वर्ग में आते हैं. शेरशाहवादी आपस में ठेठ बंगाली में बातचीत करते हैं.
जानकार बताते हैं कि शेरशाहवादी के वंशज शेरशाह सूरी की सेना में सैनिक के तौर पर काम करते थे. शेरशाहवादी मुस्लिमों की परंपराएं भी दूसरी मुस्लिम जातियों से काफी अलग हैं. सीमांचल में इनके पूर्वज पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और मालदा से आए बताए जाते हैं. सीमांचल में घुसपैठियों एक बड़ा मुद्दा रहा है जिसे शेरशाहवादियों से जोड़ा जाता रहा है.
AIMIM ने पिछड़ेपन को मुद्दा बनाकर लड़ा था चुनाव
सीमांचल के इलाके में शेरशाहवादियों के मुकाबले सुरजापुरी मुसलमानों की स्थिति आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक तौर पर कमजोर है. सुरजापुरी समाज के पिछड़ेपन को मुद्दा बनाकर ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल में पिछले चुनाव के अन्दर चौंकाने वाले नतीजे दिए थे. इस बार भी ओवैसी इसी रास्ते पर नजर आए हैं.
आरजेडी और कांग्रेस की नजर शेरशाहवादी मुसलमानों पर रही है, लेकिन मौजूदा चुनाव में शेरशाहवादी वोट बैंक को साधने की तैयारी प्रशांत किशोर ने भी कर रखी है. जन सुराज ने शेरशाहवादी मुस्लिम वर्ग से आने वाले उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है. इसकी एक खास वजह भी है शेरशाहवादी समाज को ज्यादा लिबरल माना जाता है. वह मुद्दों पर आधारित राजनीतिक फैसले लिए जाने के लिए जाने जाते हैं.
प्रशांत किशोर Vs असदुद्दीन ओवैसी
सीमांचल की जमीन पर ओवैसी जहां लोकल गरीब मुसलमान को अपने साथ जोड़कर चुनावी समीकरण साधने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रशांत किशोर ने मुस्लिम और हिंदू वोटरों को विकास के नाम पर जोड़ने और नए प्रयोग के साथ नतीजे देने की रणनीति बनाई है.
ओवैसी की कोशिश जहां मुस्लिम को एक वोट बैंक से ऊपर निर्णायक ताकत बनाने की है, वहीं प्रशांत किशोर 40 फीसदी हिंदू के साथ 20 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक को जोड़कर नया विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं. सुरजापुरी मुस्लिमों के पास संख्याबल है तो वहीं शेरशाहवादी मुसलमानों के बारे में माना जाता है कि वे सूरजपुरियों के मुकाबले कम आबादी होने के बावजूद सामाजिक तौर पर दूसरे वर्गों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.
उच्च हिंदू जातियां और शेरशाहवादी मुस्लिम समीकरण
शेरशाहवादी मुसलमान दलित आबादी के अलावा सवर्ण तबके से आने वाले ब्राह्मण वोटर्स से भी जुड़ाव रखते हैं. इसे इस तरह समझा जा सकता है कि स्थानीय निकाय या पंचायत चुनाव में अगर शेरशाहवादी और सुरजापुरी मुस्लिम बिरादरी से दो उम्मीदवार मैदान में हों तो ब्राह्मण वर्ग शेरशाहवादी उम्मीदवार का चयन करता है. कुल मिलाकर कहे तो दो अलग-अलग मुस्लिम जमातों ने सीमांचल के अंदर समीकरण को उलझा दिया है.
एनडीए के लिए यह बिखराव शुभ संकेत हो सकता है, वहीं आरजेडी और कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. ओवैसी को लेकर महागठबंधन के नेताओं ने भले ही लाख बयानबाजी की हो, लेकिन पतंग का फैक्टर अभी सीमांचल में कम होता नजर नहीं आ रहा. प्रशांत किशोर भी नए समीकरण रचकर सबको चौंकाना चाहते हैं.
2020 का रिजल्ट जान लीजिए
2020 के चुनाव में एनडीए ने सीमांचल की 24 में से 12 पर एनडीए (8 बीजेपी+4 जेडीयू), 7 महागठबंधन (कांग्रेस 5+आरजेडी 1+सीपीआईएमएल 1) और AIMIM ने 5 सीट पर कब्ज़ा जमाया था. मौजूदा चुनाव में ओवैसी और प्रशांत किशोर दोनों ही विपक्ष के पारंपरिक वोट बैंक को चुनौती दे रहे हैं. इन चार कोणों ने सीमांचल की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. 11 नवंबर की वोटिंग में समीकरण ईवीएम के अंदर कैद होंगे और फिर नतीजे बताएंगे कि किसने सीमांचल को साध लिया.
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