बंगाल में मुस्लिम वोटों के लिए कांग्रेस को साथ लेकर नहीं चल रहीं ममता? समझिए ये पूरा गणित

अभिषेक

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Mamata Banerjee: भारतीय जनता पार्टी के हिन्दुत्व के एजेंडे के खिलाफ पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी मुस्लिम वोटों को एकजुट करने में लग गई हैं. अयोध्या में बने राम मंदिर के सहारे बीजेपी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपना नैरेटिव सबके सामने रख दिया है. अब विपक्षी पार्टियों के समक्ष इस बात की चिंता है कि, बीजेपी को काउन्टर करने के साथ ही चुनाव कैसे जीता जाए. इसी कड़ी में बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रदेश के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों का दौरा कर रही हैं.

अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के दिन ही, ममता बनर्जी ने प्रदेश में सर्वधर्म सदभाव यात्रा निकाली जिसमें सभी धर्म में प्रतिनिधि शामिल हुए. ममता की इस यात्रा से ये तो साफ हो गया कि, वे किसी भी हाल में बीजेपी के नैरेटिव को अपने यहां हावी नहीं होने देना चाहती हैं.

ममता को कांग्रेस से भी है दिक्कत

ममता बनर्जी कांग्रेस के नेतृत्व में बनी INDIA अलायंस में सहयोगी हैं. हालांकि वो प्रदेश में किसी भी पार्टी से लोकसभा सीटों में समझौते पर पहले से इनकार कर चुकी हैं. ममता के इस कदम के पीछे भी यही कयास लगाए जा रहे हैं कि, मुस्लिम वोटों में होने वाले बिखराव से बचने के लिए उन्होंने कांग्रेस से समझौता नहीं किया. इसके पीछे की वजह ये भी रही कि राहुल गांधी के नेतृत्व में निकली भारत जोड़ो न्याय यात्रा बंगाल के उन्हीं क्षेत्रों से गुजरी जहां मुस्लिम बाहुल्य है जैसे मालदा, मुर्शिदाबाद. इस यात्रा के बाद ममता ने भी इन क्षेत्रों में रैलियां कीं. साथ ही, उन्होंने कांग्रेस पर चौतरफा हमला करते हुए ये तक दावा कर दिया कि, सबसे पुरानी पार्टी इस बार लोकसभा की 40 सीटें भी नहीं जीत पाएगी.

क्या है ममता का मुस्लिम कनेक्शन?

माना ये जाता है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सत्ता में बनाए रखने में अल्पसंख्यकों वोटों की भी बड़ी भूमिका है. यहां ममता का मुस्लिम वोटों पर एकाधिकार सा रहा है. अब ममता को ये मंजूर नहीं है कि जिस मुसलमान वोटों पर उनका एकाधिकार चल रहा है उस पर कांग्रेस या कोई और दल असर डाले. ममता ने प्रदेश में मुस्लिम इमामों को अलाउंस, मुसलमानों छात्रों के लिए स्कॉलरशिप, मदरसों के लिए 50 करोड़ रुपए का बजट, अल्पसंख्यक वेलफेयर बोर्ड का गठन, और CAA-NRC का जमकर विरोध कर मुसलमानों को तृणमूल कांग्रेस से जोड़े रखने का प्रयास किया है. 2011 से ही सरकार में बने रहने का भरपूर फायदा उठाकर ममता ने अल्पसंख्यकों के लिए कई फंड और योजनाएं चलाईं. माना जाता है कि इन सबके एवज में ममता को पंचायत से लेकर संसद के चुनावों तक मुसलमानों के वोट मिलते गए.

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अब बंगाल में मुस्लिम सीटों का गणित जान लीजिए

बंगाल में बीजेपी की हिंदुत्ववादी सियासत का मुकाबला करने के लिए TMC को मुस्लिम समुदाय से हरसंभव समर्थन की जरूरत है. आपको बता दें कि प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी लगभग 27 फीसदी है. बंगाल में 42 लोकसभा सीटें है. इनमें से 7 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी में हैं, वहीं 6 ऐसी सीटें हैं जहां अल्पसंख्यक वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं. यानी प्रदेश की 13 सीटें ऐसी है जहां अल्पसंख्यक TMC का बेड़ा पार लगा सकते हैं.

2019 के चुनाव में TMC ने सात मुस्लिम बाहुल्य सीटों में से तीन पर जीत दर्ज की थी. इसके अलावा अपेक्षाकृत ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली सभी छह सीटें भी टीएमसी के खाते में गई थीं. यानी TMC का रिकॉर्ड पिछली बार भी बढ़िया था. अब ममता अपने उसी रिकॉर्ड को मेनटेन रखते हुए उसे नई ऊंचाई पर पहुंचाने की कवायद में जुटी हुई हैं.

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