जनसंख्या नियंत्रण पर RSS का यू टर्न, मोहन भागवत अब पॉपुलेशन बढ़ाने की करने लगे पैरवी!
Mohan Bhgawat: संघ का मानना है कि जनसंख्या असंतुलन भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. भागवत ने कहा कि संख्या केवल आंकड़ा नहीं है, यह समाज के बने रहने की बुनियादी आवश्यकता है.
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Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में जनसंख्या वृद्धि दर (प्रजनन दर) में गिरावट को लेकर चिंता जताई है. एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यदि प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह समाज के अस्तित्व के लिए खतरा हो सकता है. भागवत का यह बयान देश में जनसंख्या असंतुलन और भविष्य की चुनौतियों पर गंभीर चर्चा का हिस्सा बन गया है.
प्रजनन दर 2.1 क्यों है जरूरी?
प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) वह औसत संख्या है, जो एक महिला अपने जीवनकाल में बच्चों को जन्म देती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2.1 की दर किसी भी समाज की स्थिर जनसंख्या बनाए रखने के लिए जरूरी है. यदि यह दर गिरती है, तो समाज में जनसांख्यिकीय असंतुलन का खतरा बढ़ जाता है.
भागवत ने इस मुद्दे को विस्तार से समझाते हुए कहा कि कई भाषाएं और समाज प्रजनन दर में कमी के कारण समाप्त हो गए हैं. उन्होंने जनसंख्या नीति का हवाला देते हुए कहा कि यदि देश को स्थिर रखना है तो प्रत्येक परिवार में कम से कम तीन बच्चों की आवश्यकता है.
आरएसएस का जनसंख्या असंतुलन पर रुख
आरएसएस पहले भी कई बार देश में एक समान जनसांख्यिकीय नीति की वकालत कर चुका है. संघ का मानना है कि जनसंख्या असंतुलन भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. भागवत ने कहा कि संख्या केवल आंकड़ा नहीं है, यह समाज के बने रहने की बुनियादी आवश्यकता है.
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सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2030 तक भारत दुनिया का सबसे युवा जनसंख्या वाला देश होगा. हालांकि, 2030 के बाद भारत की युवा जनसंख्या में कमी आने की संभावना है. यही वजह है कि संघ इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने पर जोर दे रहा है.
भारत में प्रजनन दर की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भारत की प्रजनन दर 2.0 है, जो 2.1 के आदर्श स्तर से कम है. कई राज्यों में यह दर और भी कम है, जो जनसंख्या असंतुलन का संकेत देती है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो इस सदी के अंत तक भारत की जनसंख्या घटकर 1.10 अरब रह जाएगी.
क्या है सरकार का रुख?
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है कि वह फैमिली प्लेनिंग को अनिवार्य बनाने के पक्ष में नहीं है. हालांकि, भागवत और आरएसएस के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि वे देश में इस विषय पर चर्चा बढ़ाने और जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. भागवत के इस बयान ने एक बार फिर से जनसंख्या असंतुलन और उसकी चुनौतियों पर गंभीर बहस छेड़ दी है.