Justice K Vinod Chandran का बंपर जैकपॉट, Supreme Court में बड़ा प्रमोशन!

कीर्ति राजोरा

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Justice K Vinod Chandran, Supreme Court, Court Kachahri

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पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जस्टिस के विनोद चंद्रन का बड़ा प्रमोशन हुआ है. हाईकोर्ट जजेज की सीनियोरिटी लिस्ट में 13वें नंबर होने के बाद भी जस्टिस विनोद चंद्रन उस पद पर पहुंच गया जहां पहुंचना हर जज का सपना होता है. हाईकोर्ट के भी सभी जजों का ये सपना पूरा नहीं होता है. के विनोद चंद्रन लकी रहे कि रिटायर होने से पहले तीन-चार महीने के लिए पहुंच ही गए सुप्रीम कोर्ट. नमस्कार आप देख रहे हैं न्यूज तक पर हमारा नया शो कोर्ट कचहरी. हमारी कोशिश है कि देश की अदालतों में होने वाले बड़े मुकदमे, जजमेंट की खबर आप तक पहुंचे. अदालतों के मुकदमे केवल कोर्ट केस नहीं होते. उनका असर हमारी-आपकी जिंदगी, देश, समाज, काल पर पड़ता है. आज हमारे पहले एपिसोड में बात सुप्रीम कोर्ट के नए जज जस्टिस के विनोद चंद्रन की.

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने 7 जनवरी को केंद्र सरकार को जस्टिस चंद्रन को सुप्रीम कोर्ट में लाने की सिफारिश की थी. सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश मानकर जस्टिस विनोद चंद्रन को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त कर दिया. अब सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 33 हो गई है. लेकिन 31 जनवरी को एक और पोस्ट फिर खाली हो जाएगी. जस्टिस हृषिकेश रॉय 31 जनवरी को रिटायर हो जाएंगे. जस्टिस विनोद चंद्रन भी मुश्किल से तीन-चार महीने सुप्रीम कोर्ट में रहेंगे. 25 अप्रैल को उनका भी रिटायरमेंट है. सुप्रीम कोर्ट में ऐसा एक सिस्टम चल पड़ा है कि अलग-अलग हाईकोर्ट से जज सुप्रीम कोर्ट में लाए जाते हैं. केरल हाईकोर्ट कोटे से जस्टिस सीटी रवि कुमार एक जज थे लेकिन उनके रिटायर होने के बाद केरल वाला कोटा खाली था. इसी ग्राउंड पर जस्टिस विनोद चंद्रन का सलेक्शन हो गया. केरल के रहने वाले जस्टिस विनोद चंद्रन के लिए केरल फैक्टर ही इतने बड़े प्रमोशन का जैकपॉट बना. हालांकि सुप्रीम कोर्ट आने से उनकी मोस्ट रिसेंट पोस्टिंग पटना हाईकोर्ट में थी.

जस्टिस विनोद चंद्रन की स्टोरी उन लोगों के लिए बहुत inspiring है जो लॉ में अपना करियर बनाना चाहते हैं. 14 साल में एक सामान्य वकील से सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए विनोद चंद्रन. केरल लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद 1991 में वकील के तौर पर प्रैक्टिस शुरू की.  2007 में केरल सरकार के टैक्स लॉयर बन गए. 2011 में केरल हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनाए गए. 2 साल में परमानेंट हाईकोर्ट जज बन गए. 2023 तक केरल हाईकोर्ट के जज रहने के बाद चीफ जस्टिस पोस्ट पर बड़ा प्रमोशन हुआ. पटना हाईकोर्ट में पोस्टिंग हुई. पटना बहुत लकी रहा. साल भर के अंदर जस्टिस विनोद चंद्रन पहुंच गए सुप्रीम कोर्ट. पटना हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाले चौथे जज बने. 

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पटना हाईकोर्ट में रहते हुए जस्टिस विनोद चंद्रन ने बहुत सारे जजमेंट दिए लेकिन एक जजमेंट ऐसा जिसने भारत की राजनीति के लिए मोटी लकीर खींच दी. केस के पीछे प्योर पार्टी-पॉलिटिक्स थी लेकिन जजमेंट ने भविष्य के लिए एक ऐसी लकीर खींच दी जिससे राहुल गांधी टस से मस नहीं हो रहे. उस लकीर पर बीजेपी, मोदी सरकार कतई चलने के लिए तैयार नहीं. जजमेंट जातीय जनगणना पर थी जिसकी खूब चर्चा हो रही है 2024 के लोकसभा चुनाव से. राहुल गांधी ने जब जातीय जनगणना बोलना शुरू किया तब तक नीतीश कुमार बिहार में जातीय जनगणना करा चुके थे. ये वही दौर था जब बीजेपी को हराने के लिए इंडिया गठबंधन आकार ले रहा था. नीतीश कुमार विपक्षी एकता की वकालत करते हुए राहुल गांधी से लेकर केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी की चौखट तक पहुंचे थे. बीजेपी को हराने के लिए इंडिया गठबंधन भी बना. नीतीश कुमार ने ही बुद्धि दी तो जातीय जनगणना का मुद्दा इंडिया गठबंधन का राष्ट्रीय एजेंडा बन गया. 

नीतीश कुमार के लिए जातीय जनगणना आसान टास्क साबित नहीं हुआ. पुरजोर विरोध हुआ लेकिन उनकी मुहिम को बड़ा पुश तब मिला जब जातीय जनगणना के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में केस हुआ. तब जस्टिस के विनोद चंद्रन पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे. उनकी बेंच के सामने आया जातीय जनगणना का केस. पहले तो हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना पर स्टे लगा दिया लेकिन अगस्त 2023 में उन्होंने और जस्टिस पार्थ सारथी ने सभी 6 याचिकाएं खारिज करके हुए जातीय जनगणना कराने को वैलिड करा दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के पास ही जाने को कहा था. 

जातीय जनगणना पर जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने देश में पहला अदालती आदेश दिया जो भविष्य के भी नजीर बनी. 101 पेज के जजमेंट में जस्टिस विनोद चंद्रन ने कहा कि राज्य सरकार योजनाएं लागू करने के लिए सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक गणना करा सकती है. गणना परिवारों की होती है. इसमें जाति की पहचान करना संभव होता है. जातीय पहचान के आधार पर पिछड़े समुदाय या पिछड़े वर्ग को सरकारी योजनाओं का लाभ देना आसान होगा. उन्होंने जजमेंट में ये रेफरेंस भी दिया कि भले जनगणना केंद्र सरकार का काम है लेकिन 2008 के राज्य सांख्यिकी संग्रह कानून के तहत राज्य सरकारें जाति सर्वे करा सकती हैं. 

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