गढ़ बचाने के लिए कन्नौज से उतरे अखिलेश यादव, जानिए इस सीट पर कौन कितना मजबूत
कन्नौज लोकसभा सीट को सपा साल 1998 से लगातार जीत रही है. साल 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदीप कुमार यादव ने जीत दर्ज की थी.
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Loksabha Election 2024: देश में लोकसभा का चुनाव चल रहा है. उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट हॉट सीट बनी हुई है. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने यहां से पर्चा दाखिल करके सियासत गर्मा दिया है. वैसे तो इस सीट पर पिछली बार डिंपल यादव चुनाव लड़ी थीं लेकिन उन्हें बीजेपी के सुब्रत पाठक के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. इस बार अखिलेश यादव ने कोई रिस्क न लेते हुए उन्हें मैनपुरी और खुद कन्नौज से मैदान में उतरने का फैसला लिया हैं. उनका मुकाबला बीजेपी के मौजूदा सासंद सुब्रत पाठक और बसपा के इमरान बिन जफर से होगा. आइए आपको बताते हैं क्या है कन्नौज लोकसभा सीट का पूरा सियासी समीकरण.
कन्नौज लोकसभा सीट का इतिहास
साल 1967 में कन्नौज लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी. साल 1967 में हुए आम चुनाव में कन्नौज सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राम मनोहर लोहिया को जीत मिली थी. राम मनोहर लोहिया ने कड़े मुकाबले में कांग्रेस के एस.एन मिश्रा को हराया था. वहीं साल 1971 में हुए चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार एस.एन मिश्रा को जीत मिली थी. आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में कांग्रेस को कड़ी शिकस्त मिली थी. साल 1996 में बीजेपी पहली बार कन्नौज सीट पर अपना खाता खोल पाई थी. भाजपा के उम्मीदवार चंद्र भूषण सिंह उर्फ मुन्नू बाबू ने सपा के प्रत्याशी को भारी मतों से हराया था.
सपा का गढ़ रहा है कन्नौज
कन्नौज लोकसभा सीट को सपा साल 1998 से लगातार जीत रही है. साल 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदीप कुमार यादव ने जीत दर्ज की थी. फिर अगले साल दुबारा हुए चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार अरविंद प्रताप सिंह को करीब 80 हजार वोटों से हराया था. 1999 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज के साथ ही संभल लोकसभा सीट से भी जीत हासिल की थी. हालांकि उन्होंने कन्नौज को छोड़ दिया और संभल से सांसद बने रहें.
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साल 2000 में हुए उप-चुनाव में कन्नौज सीट से मुलायम सिंह के बेटे और मौजूदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव की चुनावी पारी की शुरूआत हुई थी. उपचुनाव जीतने के साथ ही अखिलेश यादव पहली बार लोकसभा पहुंचे थे. साल 2004 में हुए आम चुनाव में अखिलेश यादव ने बसपा प्रत्याशी ठाकुर राजेश सिंह को तीन लाख से अधिक वोटों से हराया था. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव कन्नौज सीट से लगातार तीसरी बार जीतें. इस बार उन्होंने बसपा उम्मीदवार डॉ. महेश चंद्र वर्मा को एक लाख से अधिक वोटों से हराया था.
साल 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सपा ने जीत दर्ज की. सपा प्रमुख अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. कन्नौज लोकसभा सीट खाली होने के बाद अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनावी मौदान में उतरीं. दिलचस्प बात ये हुई कि, डिंपल यादव निर्विरोध सांसद बन गई. इसके साथ ही डिंपल यादव की सियासी पारी की शुरूआत हुई. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेता सुब्रत पाठक ने डिंपल यादव को कड़ी टक्कर दी. वैसे इस कड़े मुकाबले में भी डिंपल यादव ने 19 हजार वोटों से जीत दर्ज की थीं.
2019 में बीजेपी ने भेदा कन्नौज का किला
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा का गढ़ माने जाने वाली कन्नौज लोकसभा सीट को बीजेपी भेदने में सफल हो गई थी. इस चुनाव में बीजेपी नेता सुब्रत पाठक ने डिंपल यादव को करीब 12 हजार वोटों से हरा दिया. चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को 5.63 लाख वोट मिले वहीं प्रतिद्वंदी डिंपल यादव को 5.50 लाख वोट मिले थे.
गढ़ बचाने के लिए मैदान में उतरें अखिलेश
सपा का गढ़ बचाने के लिए इस बार चुनावी मैदान में खुद अखिलेश यादव कूद गए हैं. वहीं बीजेपी के तरफ से मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक को टिकट दिया गया है. बता दें कि, सपा ने पहले अखिलेश यादव के भतीजे तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन ऐन वक्त पर गढ़ बचाने के लिए अखिलेश यादव खुद चुनावी मैदान में कूद गए हैं. वहीं बसपा ने इमरान बिन जफर को अपना उम्मीदवार बनाया है. वैसे आपको बता दें कि, अखिलेश यादव 12 साल बाद इस सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या अखिलेश यादव अपनी पत्नी के हार का बदला ले पाएंगे.
अब कन्नौज का जातीय समीकरण भी जान लीजिए
कन्नौज में कुल 19 लाख से अधिक वोटर है. तकरीबन 17 लाख से अधिक हिंदू और 2.5 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता है. जातियों की बात की जाएं तो 2.5 लाख यादव, 2 लाख क्षत्रिय, 2 लाख लोधी, 1.75 लाख ब्राह्मण, 2.5 लाख पाल और शाक्य है. वहीं 3 लाख अनुसूचित जाति के मतदाता है. साल 1998 से 2014 तक ज्यादातर यादव और मुस्लिम के साथ लोध, शाक्य और पाल सपा को वोट करते हुए आए है. 2014 की मोदी लहर में मुस्लिम, यादव और लोधी, शाक्य व पाल गठजोड़ कमजोर पड़ गया. डिंपल यादव बड़े कम अंतर से विजयी रहीं थीं. वहीं 2019 में हुए चुनाव में यादव और मुस्लिम को छोड़कर बाकी जातियों ने बीजेपी को वोट किया था जिससे उनकी हार हो गई.
इस स्टोरी को न्यूजतक के साथ इंटर्नशिप कर रहे IIMC के डिजिटल मीडिया के छात्र राहुल राज ने लिखा है.