चुनाव आयोग से आया 2 फेज की वोटिंग का फाइनल डेटा, UP की 16 सीटों पर किस खेल का मिल रहा इशारा?
संजय कुमार कहते है कि, जब चुनाव में मतदान कम हो रहा है तो इससे विपक्ष को कोई खास नुकसान होता नजर नहीं आ रहा है. बल्कि कांग्रेस के INDIA अलायंस को फायदा ही हो सकता है.
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UP Lok Sabha Election: देश में लोकसभा का चुनाव चल रहा है. सात चरणों में होने वाले इस चुनाव के दो चरण के लिए वोटिंग हो चुकी है. इन दोनों चरण में 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश की 16 सीटों पर भी वोटिंग हो चुकी है. बाकी बची 64 सीटों पर मतदान होना अभी बाकी है. दो फेज के चुनाव समाप्त होने के बाद चुनाव आयोग ने इन दोनों चरण में हुए वोटिंग का सीट वाइज पूरा डेटा जारी किया है. इस डेटा में यूपी की 16 सीटों का आंकड़ा 2019 में हुए पिछले चुनाव के आंकड़ों से एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. पिछले चुनाव की अपेक्षा इन सीटों पर वोटिंग में करीब 3 से 11 फीसदी तक का डिक्लाइन होता नजर आ रहा है. जैसे मथुरा में 11 फीसदी और मुजफ्फरनगर में 9 फीसदी से ज्यादा का डिक्लाइन हो रहा है. आइए समझते हैं पहले और दूसरे फेज में यूपी की 16 सीटों पर हुए वोटिंग के क्या है संकेत?
पहले फेज की 8 सीटों का ये है आंकड़ा
पहले फेज के चुनाव में यूपी की 8 सीटों सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत में चुनाव हुए. इस चुनाव में सहारनपुर में 66.14 फीसदी, कैराना में 62.46, मुजफ्फरनगर में 59.13, बिजनौर में 58.73, नगीना में 60.75, मुरादाबाद में 62.18, रामपुर में 55.85 और पीलीभीत में 63.11 फीसदी मतदान हुए. अगर हम इन आंकड़ों की तुलना 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पड़े वोटों से करें तो इन सभी आठों सीटों पर 3 से लेकर 9 फीसदी तक कम मतदान हुआ है. यानी लोगों में वोटिंग को लेकर उतना रुझान नहीं है और लोग वोट देने के लिए घरों से नहीं निकल रहे है.
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पिछले चुनाव की अपेक्षा मथुरा में करीब 11 फीसदी कम हुआ मतदान
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश के अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलन्दशहर, अलीगढ और मथुरा लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ. जहां अमरोहा में 64.58 फीसदी, मेरठ में 58.94, बागपत में 56.16, गाजियाबाद में 49.88, गौतमबुद्धनगर में 53.63, बुलन्दशहर में 56.42, अलीगढ में 56.93 और मथुरा में 49.41 फीसदी मतदान हुआ. बात अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की करें तो उस चुनाव से इस चुनाव में मथुरा में करीब 11.67 फीसदी कम मतदान, बागपत में 8.52 और गौतमबुद्धनगर में 6.86 फीसदी कम मतदान हुआ.
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यूपी के इन दोनों फेज के चुनाव से ये साफ नजर आ रहा है कि, इस बार के चुनाव में 2019 के चुनाव से काफी कम मतदान हो रहा है. वैसे दिलचस्प बात ये है कि, साल 1952 के बाद से अबतक हुए चुनावों में से छह चुनावों में मतदान में गिरावट हुई है जिसमें चार बार मौजूदा सरकारें हार गई है. यानी ये आंकड़े बीजेपी और मोदी सरकार के लिए चिंता का सबब है. मतदान में हुई ये कमी और चुनावों के आंकड़ों को समझने के लिए हमने CSSP- समाज और राजनीति के अध्ययन के लिए केंद्र के फेलो और प्रोफेसर संजय कुमार से बात की.
'स्विंग वोटर निभाएंगे महत्वपूर्ण भूमिका'
प्रोफेसर संजय कुमार कहते है कि, चुनावों में जब मतदान प्रतिशत डाउन होता है तब इस बात की कोई श्योरिटी नहीं होती है कि, किस राजनैतिक दल को फायदा और किसको नुकसान होगा. अगर इस बार के चुनाव के आंकड़े देखें तो ये साफ नजर आता है कि, वोटरों के मन में उदासीनता जरूर है क्योंकि वोटिंग को लेकर चुनाव आयोग के इतने प्रयासों के बाद भी लोग मतदान में उतनी रुचि नहीं दिखा रहे है यानी मतदाताओं पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ रहा है. वोटरों के संबंध में उन्होंने बताया कि, चुनाव में तीन प्रकार के वोटर होते है. पहला किसी पार्टी के प्रति पूरे तरीके से समर्पित वोटर, दूसरा पीछे 2-3 चुनावों में किसी पार्टी को वोट करने वाला वोटर और तीसरा स्विंग वोटर जो हर चुनाव में बदलता रहता है. इसमें एक बात ध्यान देने वाली ये है कि, वोटर किसी भी पार्टी से बंधा हुआ नहीं होता है. वोटर मुख्यतः पार्टी के आइडियोलॉजी से जुड़ाव रखता है जिसमें बदलाव होने पर वह भी शिफ्ट होता रहता है. उन्होंने कहा कि, मतदान कम होने पर स्विंग वोटर निर्णायक भूमिका निभाते है.
बीजेपी या कांग्रेस किसे होगा फायदा?
संजय जी कहते है कि, हम इस बात की भविष्यवाणी या कह नहीं सकते कि, मतदान में कमी होने पर किस पार्टी को फायदा होगा और किसे नुकसान लेकिन हम देश के वर्तमान ट्रेंड के हिसाब से चुनाव में वोटिंग के इस सियासत को जरूर समझ सकते है. वो कहते है कि, हाल के दिनों में देश में जो माहौल बना है चाहे वो इलेक्टोरल बॉण्ड को लेकर हो या महंगाई और बेरोजगारी को लेकर सभी मुद्दे सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ ही परसेप्शन बना रहे है. वैसे संजय कुमार ये भी कहते है कि, इस चुनाव में बीजेपी के कमिटेड वोटरो में थोड़ी निराशा जरूर देखने को मिल रही है. जैसे बीजेपी ने 2 करोड़ रोजगार, महंगाई कम करने का वादा, किसानों की इनकम दुगुना करना आदि मुद्दों पर सत्तारूढ़ बीजेपी कुछ खास छाप छोड़ते नजर नहीं आई है और इन सभी मुद्दों पर लोगों का रुख बीजेपी से नाराजगी का ही है. यानी ऐसे तो बीजेपी को नुकसान की संभावना बन रही है.
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दूसरी तरफ अगर विपक्ष की बात करें, तो जब चुनाव में मतदान कम हो रहा है तो इससे विपक्ष को कोई खास नुकसान होता नजर नहीं आ रहा है. बल्कि कांग्रेस के INDIA अलायंस को फायदा ही हो सकता है. जैसा की हमने हाल ही में आए CSDS के आंकड़ों में देखा कि, राहुल गांधी को पसंद करने वालों और वर्तमान सरकार के रिपिट न होने के लिए वोट करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है.
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