भारत पर कर्ज 205 लाख करोड़! सरकारों को कौन देता है पैसे, इन्हें क्यों पड़ती है उधार की जरूरत?
अगर सकल घरेलू अनुपात(GDP) के अनुपात में देशों पर कर्ज देखा जाए तो जापान पर दुनिया में सर्वाधिक कर्ज है. जापान का कुल कर्ज 9.087 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है जो उसके GDP का 237% है.
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News Tak: भारत पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक जुलाई से सितंबर की तिमाही में देश का कर्ज जनवरी-मार्च की तिमाही के कुल कर्ज 2.34 ट्रिलियन डॉलर या करीब 200 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 2.47 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 205 लाख करोड़ हो गया है. ये आंकड़े इंडियाबांड्स.कॉम ने भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों को आधार बनाते हुए जारी किए हैं. आप अक्सर सोचते होंगे कि जो सरकार नोट छाप सकती है, उसे उधार लेने की जरूरत क्यों पड़ती है? आखिर सरकार को ये उधार देता कौन है?
आइए बताते हैं सरकार कर्ज क्यों और कैसे लेती है और देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ता है.
आखिर सरकार क्यों ही लेती है कर्ज?
सरकार अपने खर्चों को लेकर बजट बनाती है. लेकिन सरकार कितना भी बजट क्यों ही न बना ले उसका खर्च लगभग हमेशा उसकी आय से ज्यादा ही होता है. उसी गैप को भरने के लिए सरकार को अलग-अलग माध्यमों से कर्ज लेना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार अपने काम मुख्य रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और बुनियादी ढांचे में खर्च के लिए पैसा हो. वह रक्षा, सामाजिक सुरक्षा, प्रशासनिक व्यय और विनिवेश जैसे काम सुचारु ढंग से चला सके.
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सरकार कैसे लेती है कर्ज?
सरकार दो तरीके से कर्ज लेती है. इन्टर्नल और एक्सटर्नल. इन्टर्नल यानी देश के अंदर ही अलग-अलग माध्यमों से कर्ज लेना होता है. इसमें सरकार मुख्य रूप से सरकारी बॉन्ड/सिक्योरिटीज (G-Secs) के रूप में कर्ज लेती है. ट्रेजरी बिल, स्पेशल सिक्योरिटीज, गोल्ड बॉन्ड, स्माल सेविंग स्कीम और कैश मैनेजमेंट बिल आदि के द्वारा जो भी पैसा आता है वह सरकार के लिए कर्ज ही होता है. कोई भी व्यक्ति अगर सरकारी बॉन्ड में निवेश करता है तो वो एक तरीके से सरकार को कर्ज ही दे रहा होता है. ये एक निश्चित ब्याज दर पर निश्चित समयावधि के लिए होते हैं.
फिर बारी आती है एक्सटर्नल यानी विदेश से उधार लेने की. इसमें मित्र देशों, इंटरनेशनल मोनेट्री फंड (IMF), विश्व बैंक (World Bank) जैसी विदेशी संस्थाओं आदि से उधार लिया जाता है. विदेशों से लिया गया कर्ज डॉलर या अन्य करेंसी में होता है, जो कर्जदार देशों के लिए महंगा पड़ता है. यही वजह है कि ऐसे कर्ज का बढ़ना अच्छा नहीं माना जाता है.
किसी सरकार पर कर्ज बढ़ने का क्या होता है असर?
जब सरकारें एक सीमा से ज्यादा कर्ज ले लेती हैं, तो रेटिंग एजेंसियां उसके रेटिंग को घटा सकती है यानी कम करने का खतरा रहता हैं. रेटिंग एजेंसियों के रेटिंग के आधार पर ही विदेशी संस्थान या एजेंसियां किसी देश को कर्ज देती है. रेटिंग घटने से विदेशी निवेशक फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट(FDI) के रूप में उस देश में निवेश करने से हिचकिचाते हैं जिसकी वजह से उस देश की कंपनियों के लिए भी कर्ज महंगा हो जाता है. अगर सरकार मार्केट से ज्यादा पैसा कर्ज के रूप में ले लेती है तो अन्य कंपनियों के लिए मार्केट में कम पैसा बचता है, जिसका देश के विकास दर पर व्यापक स्तर का असर पड़ता है.
अन्य देशों पर कितना है कर्ज?
अगर सकल घरेलू अनुपात(GDP) के अनुपात में देशों पर कर्ज देखा जाए तो जापान पर दुनिया में सर्वाधिक कर्ज है. जापान का कुल कर्ज 9.087 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है जो उसके GDP 4.23 ट्रिलियन डॉलर का 237% है. वैसे ही अमेरिका पर 32.9 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है जो उसके GDP से ज्यादा है. भारत की स्थिति इस संदर्भ में दुनिया के अन्य देशों से अच्छी है, क्योंकि भारत का कर्ज अभी तक उसके GDP के आकार से कम ही है.
देश पर बढ़ रहे कर्ज के इस मामले को समझने के लिए हमने आर्थिक मामलों के जानकार और भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) के हिन्दी विभाग के कोर्स डायरेक्टर और प्रोफेसर आनंद प्रधान से बात की.
इस पूरे मामले पर आनंद प्रधान ने कहा कि, ‘ज्यादा कर्ज लेने में कोई बुराई नहीं है खासकर भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए. असली मुद्दा इस बात का है कि आप कर्ज लेकर कर क्या रहे हैं? कर्ज के पैसों को आप किन कार्यों में लगा रहे हैं? अगर कर्ज का इस्तेमाल उत्पादक कार्यों में हो रहा है यानी देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले कामों में हो रहा है, जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने, सड़कें बन रही हो, पोर्ट, एयरपोर्ट बन रहा हो, सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च हो रहा हो यानी स्कूल, कॉलेज और हॉस्पिटल बन रहे हों तो उससे देश की अर्थव्यवस्था की तरक्की ही होगी. लोगों के लिए नए रोजगार के अवसर होंगे जिससे उनके पास ज्यादा पैसे आएंगे तो वे समान ज्यादा खरीदेंगे. सरकार को ज्यादा टैक्स मिलेगा तो आप कर्ज का भुगतान आसानी से कर सकते हैं.’
प्रोफेसर प्रधान आगे कहते हैं, ‘अगर आप अनुत्पादक कार्यों में कर्ज के पैसों को लगाएंगे तो उसका खामियाजा भविष्य की पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा. अगर आप कही से कर्ज ले रहे हैं तो आपको कर्ज के मूल के साथ-साथ उसपर ब्याज भी चुकाना होता है. अगर आपके बजट का बड़ा हिस्सा कर्ज के ब्याज और मूल को चुकाने में खर्च हो जाएगा तो विकास के कार्यों के लिए पैसा ही नहीं रहेगा. इसीलिए ज्यादा कर्ज होना इस मामले में नुकसानदेह है क्योंकि भविष्य की पीढ़ियों को उसे चुकाना पड़ता है.’
ज्यादा कर्ज लेने पर रेटिंग एजेंसियों के देश के रेटिंग घटाने के सवाल पर आनंद प्रधान ने कहा कि, ‘रेटिंग एजेंसियां भी ये देखती हैं कि आप कर्ज किस लिए ले रहे हैं. वर्तमान में दुनिया के बहुत सारे ऐसे देश हैं जो इतना कर्ज ले चुके हैं कि कर्ज के ब्याज के भुगतान करने के लिए नया कर्ज ले रहे हैं. जिसे ‘डेब्ट ट्रैप’ यानी ‘कर्ज का जाल’ कहते हैं. अगर आप इसमे फंस जाते हैं तो फिर आपके लिए मुश्किल है. इसीलिए आप पैर उतना ही फैलाइए जितनी बड़ी चादर हो अर्थात आप उतना ही कर्ज लें जितने का भुगतान आसानी से कर सकते हों.’