राहुल गांधी की दुविधा केरल कांग्रेस ने दूर कर दी, राबरेली-वायनाड पर जल्द लेंगे फैसला

रूपक प्रियदर्शी

रायबरेली या वायनाड, राहुल गांधी की दुविधा दूर कर दी है केरल कांग्रेस अध्यक्ष के सुधाकरण ने. राहुल गांधी की सीट वाली दुविधा पर सुधाकरण ने कह दिया कि  राहुल गांधी को देश का नेतृत्व करना है इसलिए उनसे वायनाड में बने रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती.

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Rahul Gandhi: रायबरेली और वायनाड से चुनाव लड़े राहुल गांधी. दोनों सीटों पर बंपर जीत हासिल हुई. यही से ये दुविधा शुरू हुई कि राहुल गांधी एक सीट से सांसद रह सकते हैं लेकिन वो सीट वायनाड होगी या रायबरेली. रायबरेली जाकर राहुल गांधी ने वायनाड के लोगों से अपनी दुविधा बताई भी. धीरे-धीरे ये क्लियर हो रहा है कि राहुल की दुविधा दूर हो रही है. 

सुधाकरण ने राहुल की दुविधा दूर कर दी

रायबरेली या वायनाड, राहुल गांधी की दुविधा दूर कर दी है केरल कांग्रेस अध्यक्ष के सुधाकरण ने. राहुल गांधी की सीट वाली दुविधा पर सुधाकरण ने कह दिया कि  राहुल गांधी को देश का नेतृत्व करना है इसलिए उनसे वायनाड में बने रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती. हमें दुखी नहीं होना चाहिए. सभी को ये बात समझकर शुभकामनाएं और समर्थन देना चाहिए. करुणाकरन के बयान से साफ है कि राहुल की दुविधा खत्म हो चुकी है. वायनाड और रायबरेली को बैलेंस करने वाला फैसला कभी भी आ सकता है.  

राहुल गांधी जब वायनाड आए थे तब उन्होंने पहली बार ये जिक्र किया कि प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की बात चल तो रही थी. ये भी विचार हो रहा था कि वाराणसी में मोदी के खिलाफ लड़ाया जाए. फाइनली न तो प्रियंका वाराणसी आईं, न किसी और सीट से चुनाव लड़ीं. उन्होंने कांग्रेस के लिए सफल कैंपेन किया जिसका सबसे चमत्कारिक रिजल्ट निकला अमेठी में जहां स्मृति ईरानी सामान्य कांग्रेस कार्यकर्ता किशोरी लाल शर्मा से हारीं.

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वायनाड या रायबरेली-राहुल के लिए दुविधा स्वाभाविक है. यूपी में कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर बहुत बरसों बाद बहुत अच्छा किया इसलिए अब यूपी छोड़ना तो समझदारी होगी नहीं. अमेठी से हारने के बाद अगर जीतकर भी रायबरेली छोड़ दी तो मैसेज अच्छा नहीं जाने वाला. वैसे भी राहुल के वायनाड छोड़ने वाले फैसले से कोई राजनीतिक भूकंप आएगा नहीं. रायबरेली छोड़ देंगे तब जरूर ऐसा कुछ हो सकता है.

अमेठी राहुल के लिए लकी साबित हुआ 

राहुल गांधी के लिए वायनाड अमेठी से ज्यादा लकी रहा. 2019 में जब राहुल अमेठी से हार गए तब वायनाड के रास्ते संसद पहुंचे थे. पिछले साल मोदी सरनेम केस में सजा के कारण संसद सदस्यता खत्म हुई लेकिन सुप्रीम कोर्ट से स्टे के कारण संसद सदस्यता बहाल भी हुई. राहुल की स्ट्रगल वाली राजनीति में स्ट्रगल का छोटा सा हिस्सा था जो आया और चला गया. वायनाड की रैली में राहुल ने वायनाड को थैंक्यू कह दिया कि लोगों के प्रेम को जिंदगी भर याद रखूंगा.

राहुल गांधी ने अमेठी से 2004 में राजनीति शुरू की थी. चार चुनाव लड़े. तीन बार जीते. अमेठी के दिनों में राजनीति संघर्ष करके गुजरती रही. कोई ब्रेकथ्रू हुआ नहीं. वायनाड से एक ही बार 2019 से जीते लेकिन राजनीति में ऐसा कमबैक हुआ कि देश की राजनीति पलट गई. वायनाड के सांसद ने ही दो-दो भारत जोड़ो यात्रा करके बीजेपी को पहले बैकफुट पर भेजा. फिर बहुमत से नीचे रोका. वायनाड ने मुश्किल समय में साथ दिया और दुविधा वाली मुश्किल से भी उबारने के लिए तैयार है. कांग्रेस और राहुल के सामने अब पहले जैसा चैलेंज भी नहीं. दोनों का कायाकल्प हो चुका है. प्रियंका गांधी वायनाड से लड़कर जीत गईं तब भी वायनाड और राहुल एक-दूसरे के ही रहेंगे.

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