कांग्रेस के लिए कब-कब चुनौती बना राम मंदिर का मुद्दा, प्राण प्रतिष्ठा में न जाने से कितना नुकसान?

अभिषेक

ADVERTISEMENT

Congress
Congress
social share
google news

Congress: अयोध्या में बन रहा राम मंदिर एक धार्मिक मसले के साथ-साथ देश का बड़ा सियासी मसला बना हुआ है. वैसे राम मंदिर पर सियासत कोई नई बात नहीं है. आजादी के बाद से ही पहले जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे अपना चुनावी मुद्दा बना रखा है. आज जब अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है, तो बीजेपी इसे अपनी जीत के रूप में पेश कर रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस एक बार फिर राम मंदिर की सियासत में उलझती नजर आ रही है. असल में 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है और कांग्रेस ने इसमें शामिल होने का न्योता ठुकरा दिया है. सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी इसमें शामिल नहीं होंगे. कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी का इवेंट बताया है और कहा है कि राम मंदिर के नाम पर हो रही सियासत को देखते हुए ससम्मान न्योता ठुकरा रही है. इसके बाद से सियासत तेज है और बीजेपी का हमला भी.

वैसे ये कोई पहली बार नहीं होगा जब बात राम मंदिर की हो और कांग्रेस पर हमले न हुए हों. यह मुद्दा ही ऐसा है, जो जब-जब तीखा हुआ, कांग्रेस के लिए रास्ते चुनौतीपूर्ण दिखाई दिए. सवाल यह है कि 2024 के चुनावों के ठीक पहले क्या राम मंदिर का न्योता ठुकरा कांग्रेस ने कोई सियासी भूल की है? ऐसी क्या वजह है कि कांग्रेस ने आलोचनाओं की परवाह नहीं करते हुए इस मामले में बिल्कुल एक स्पष्ट राह चुन ली है? क्या उसे चुनावी खतरे का अंदाजा नहीं? आइए समझते हैं.

पहले जानिए राम मंदिर से जुड़े वो 4 इवेंट जो कांग्रेस के लिए बने चुनौती

1. 1949 में जब विवादित स्थल पर मूर्ति रखी गई: वैसे तो राम मंदिर का विवाद मुगल बादशाह बाबर से जुड़ा बताया जाता है, लेकिन आजाद भारत में 23 दिसंबर 1949 का तारीख इसमें अहम है. इस दिन यहां अचानक से रामलला की मूर्ति रखी गई. राम भक्तों का दावा है कि यह ‘मूर्ति प्रकट’ हुई जबकि मामले की FIR कुछ और कहती है. हमारे सहयोगी Aaj Tak की रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की किताब ‘अयोध्या: 6 दिसंबर 1992’ के हवाले से उस FIR का ब्योरा छापा गया है. इसके मुताबिक कुछ लोगों ने घुसकर ताला तोड़ा और मूर्ति रख दी. खैर, इस घटना के समय देश और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. पीएम थे पंडित जवाहरलाल नेहरू और सीएम गोविंद बल्लभ पंत. कांग्रेस इस घटना के बाद मामले को नियंत्रित नहीं कर पाई और यह विवाद आजाद भारत में कोर्ट-कानून के चक्कर तक पहुंच गया.

2- 1986 में जब बाबरी-राम जन्मभूमि का ताला खुलवाया गया: यह घटना एक फरवरी 1986 की है. इस दिन तत्कालीन जिला न्यायाधीश केएम पांडेय ने एक आदेश देकर 1949 के विवाद बाद बाबरी-राम जन्मभूमि के गेट पर लगा ताला खुलवा दिया. तब केंद्र में राजीव गांधी और प्रदेश में वी बहादुर सिंह की कांग्रेस की सरकार थी. ऐसा माना गया कि कांग्रेस सरकार ने राम मंदिर को लेकर खड़े हो रहे आंदोलन की धार को कम करने के लिए प्रोएक्टिव अप्रोच दिखाया, जो उलटा पड़ गया.

ADVERTISEMENT

3- 1992 में जब बाबरी तोड़ी गई: 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए माना है कि यह कृत्या ‘गैरकानूनी’ था. इस दौरान भी कम से कम केंद्र में कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ही थी. इस वक्त भी कांग्रेस पर आरोप लगे कि वह मामले को ठीक से हैंडल नहीं कर पाई.

4- 22 जनवरी 2024 जब प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जा रही कांग्रेस: 22 जनवरी को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम है. देशभर के गणमान्य लोगों से लेकर, राम मंदिर के कारसेवकों, कलाकारों, सेलिब्रिटीज, राजनीतिक दलों के मुखियाओं को न्योता भेजा गया है. यही न्योता सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन को भी गया, जिसे अब पार्टी ने ठुकरा दिया है.

ADVERTISEMENT

तो क्या कांग्रेस को इसका नुकसान होगा? इस बात को समझने के लिए हमने बात की सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) के फेलो प्रोफेसर संजय कुमार से. प्रोफेसर संजय कुमार लंबे समय से देश की चुनावी राजनीति के तथ्यात्मक विश्लेषण की प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं.

ADVERTISEMENT

राम मंदिर के कार्यक्रम में कांग्रेस ने शामिल न होने का फैसला किया है, इसके पीछे की वजह क्या हो सकती है?

संजय कुमार इसका जबाब देते हुए कहते हैं कि, ‘राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में अगर कांग्रेस शामिल होती, तो यह एक तरह से बीजेपी की बनाई पिच पर खेलने जैसा होता. यह बात कांग्रेस के लिए नागवार है. यही वजह है कि पार्टी ने राम मंदिर के कार्यक्रम में शामिल न होने का फैसला किया है. यह उसकी राजनीतिक मजबूरी भी है. हालांकि कांग्रेस के सामने अब इसी बात की चुनौती है कि, वो अपने आपको सार्थक कैसे बनाए रखे.’

वह आगे कहते हैं, ‘वैसे राम मंदिर अब सिर्फ एक धार्मिक मुद्दा नहीं रह गया है. अब यह राजनैतिक मुद्दा बन गया है और इसी बात को हमें समझना होगा. बीजेपी ने जिस स्तर पर इसे प्रचारित किया है, कमोबेश उससे तो यही लग रहा है. रही बात निमंत्रण मिलने पर जाने और न जाने कि तो देश के चार शंकराचार्यों को भी न्योता मिला हुआ है. और हमे पता है कि देश में धार्मिक या सनातन के किसी कार्यक्रम उनकी भूमिका कैसी होती है, लेकिन इस बार उन्होंने शामिल होने से इनकार कर दिया है. उन्होंने तो इस संदर्भ में कुछ लॉजिक भी दिया है जैसे- मंदिर अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है, और अधूरे मंदिर में भगवान की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती. शंकराचार्य ये कहना चाह रहे हैं कि बीजेपी धार्मिक भावना के आधार पर ये काम नहीं कर रही है. वो सिर्फ वोटों और आगामी लोकसभा चुनाव के हिसाब से ये काम कर रही है.’

कांग्रेस मंदिर के मुद्दे पर हमेशा बैकफुट पर ही नजर आई है, इसके पीछे की क्या वजह है?

इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर संजय कुमार कहते हैं, ‘भारत में 140 करोड़ की जनसंख्या में 20-25 करोड़ के आसपास मुस्लिम हैं. परंपरागत तौर पर ये माना जाता रहा है कि वो हमेशा से कांग्रेस क साथ ही खड़े रहे हैं, वो कभी बीजेपी के साथ खड़े नहीं रहे. ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस ने 1990 के दशक में जो निर्णय लिया था उसका जमकर फायदा उसे मिलता रहा. वहीं भाजपा मुसलमानों के खिलाफ खड़ी थी. धीरे-धीरे देश की बहुसंख्यक जनता जो हिन्दू है वो बीजेपी के साथ जुड़ती चली गई. सबको ये लगने लगा कि भारत की संस्कृति और धर्म की रक्षा केवल बीजेपी ही कर सकती है. धर्म और भाजपा एकदूसरे के पर्याय बन गए और कांग्रेस पिछड़ते चली गई.’

संजय कुमार कहते हैं, ‘देश की जनता अब बीजेपी के धार्मिक मुद्दों से ज्यादा प्रभावित नजर आ रही है. भगवान राम के कभी मृदु व्यक्तित्व को पूजा जाता था, अब उनके भी स्वरूप को परिवर्तित कर रौद्र रूप को आदर्श माना जा रहा है. तो ये बदलते हुए राम के साथ-साथ बदलते हुए भारत की भी तस्वीर है. ये कब तक चलेगा इसका तो कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन हमें एक बात समझनी होगी कि जनता जनार्दन है. वर्तमान में बीजेपी, कांग्रेस के मुकाबले बहुत मजबूत में स्थिति में खड़ी है, लेकिन उसपर सवाल भी उठ रहे हैं.’

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT