'वोटर्स फर्जी हैं तो मोदी सरकार की जीत भी फर्जी", बिहार की वोटर लिस्ट में 'विदेशी' नाम आने पर तेजस्वी ने NDA पर साधा निशाना

बिहार में वोटर लिस्ट की समीक्षा के दौरान विदेशी नागरिकों के नाम सामने आने पर सियासी घमासान मच गया है. विपक्ष ने चुनाव आयोग और सरकार पर पक्षपात और लोकतंत्र से खिलवाड़ का आरोप लगाया है.

NewsTak

न्यूज तक

14 Jul 2025 (अपडेटेड: 14 Jul 2025, 01:36 PM)

follow google news

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है. चुनाव आयोग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने दावा किया है कि SIR के दौरान घर-घर जाकर सर्वे करने वाले बीएलओ यानी बूथ लेवल ऑफिसर को बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिले हैं जो नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध रूप से भारत में आए हैं और उनके नाम नाम वोटर लिस्ट में शामिल हैं. इस दावे ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है और विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर तीखे सवाल उठाए हैं.

Read more!

तेजस्वी यादव का तीखा पलटवार

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने इन "सूत्रों" के दावे पर कड़ी आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा, "ये सूत्र कौन हैं? ये वही सूत्र हैं जिन्होंने कहा था कि इस्लामाबाद, कराची और लाहौर पर कब्जा कर लिया गया है. इन सूत्रों को हम मूत्र समझते हैं."

यादव ने इस बात पर जोर दिया कि SIR आखिरी बार 2003 में यूपीए सरकार के दौरान हुआ था और तब से कई चुनाव हुए हैं जिनमें एनडीए को जीत मिली है. उन्होंने पूछा कि क्या इसका मतलब यह है कि इन कथित "विदेशियों" ने पीएम मोदी को वोट दिया? अगर ऐसा है तो मतदाता सूची में किसी भी संदिग्ध नाम के लिए एनडीए सरकार जिम्मेदार है और उनकी जीत धोखाधड़ी वाली है.

नेपाल के साथ बिहार के "रोटी और बेटी" के संबंधों का हवाला देते हुए, तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार पुलिस और सेना में भी नेपाली नागरिक हैं. उन्होंने चुनाव आयोग पर हमला करते हुए कहा कि जब से सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया है और आयोग को सलाह दी है, तब से उनके ''हाथ-पांव फूले हुए हैं." यादव ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि चुनाव आयोग एक राजनीतिक दल के प्रकोष्ठ की तरह काम कर रहा है और अगर फर्जी वोटर हैं, तो इसकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग और एनडीए सरकार की है.

तेजस्वी यादव का पोस्ट.

ओवैसी ने भी उठाए सवाल

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इलेक्शन कमीशन के इस "सूत्रों के माध्यम से संवाद" करने के तरीके पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इसे शर्मनाक बताते हुए पूछा कि चुनाव आयोग को वोटर्स की नागरिकता तय करने का अधिकार किसने दिया. ओवैसी ने चिंता व्यक्त की कि यह "गहन संशोधन" एक महत्वपूर्ण चुनाव से ठीक पहले हो रहा है, जिससे गरीब लोगों को ऐसे दस्तावेज बनवाने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो उनके पास शायद होंगे ही नहीं. उनका मानना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य कुछ मतदाताओं की शक्तियों को छीनना है.

असदुद्दीन ओवैसी का पोस्ट.

बीजेपी का विपक्ष पर पलटवार

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इस मामले को लेकर विपक्षी दलों पर पलटवार किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि आरजेडी, कांग्रेस, वामपंथी और उनके समर्थक लगातार ऐसे नामों को मतदाता सूची में शामिल करवाने का दबाव बना रहे थे. मालवीय ने इसे विपक्ष का "वोट बैंक मॉडल" बताते हुए कहा कि अब सच सामने आ गया है.

सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला

चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया के लिए 11 दस्तावेजों को मान्यता दी है, जिसमें आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को शामिल नहीं किया गया था. विपक्षी दलों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी, आरोप लगाया था कि इससे करोड़ों मतदाताओं के नाम सूची से कट जाएंगे और आगामी विधानसभा चुनाव प्रभावित होंगे.

इस मामले को लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें अलग अलग राजनीतिक दल, एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे. 10 जुलाई को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने एसआईआर प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वे 11 दस्तावेजों में आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को भी शामिल करें. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि आयोग ऐसा नहीं करने का फैसला लेता है, तो उसे अदालत को इसका कारण बताना होगा. इस मामले पर अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी.

ये भी पढें: कानून व्यवस्था पर चुप क्यों हैं डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी? सवाल सुनते ही बोले-मैं वित्त मंत्री हूं

    follow google newsfollow whatsapp