बिहार चुनाव से पहले आज यानी 1 अगस्त को नीतीश कुमार ने बिहार के शिक्षा विभाग में काम कर रहें 3 वर्ग को एक खास सौगात दी. सीएम नीतीश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X के माध्यम से आज सुबह-सुबह एक पोस्ट के जरिए बताया कि शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में रसोइयों, रात्रि प्रहरियों तथा शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य अनुदेशकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसलिए इन्हें मिलने वाले मानदेय राशि में को दोगुना करने का निर्णय लिया गया है.
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लेकिन चुनावी से पहले नीतीश कुमार का यह दांव उलटा पड़ता ही नजर आ रहा है. बिहार तक की टीम ने समस्तीपुर में चौपाल के तहत जब रसोइयों से इस घोषणा के बारे में उनकी राय पूछी तो उन्होंने अलग ही राग अलपना शुरू कर दिया. वहां मौजूद रसोइया नीतीश सरकार की इस योजना से बिलकुल भी खुश नहीं नजर आए. साथ ही इस घोषणा पर सरकार को बहुत कुछ सुना भी दिया. आइए जानते है आखिर मानदेय दोगुना होने के बाद भी समस्तीपुर के रसोइयों में क्यों इतना गुस्सा भरा हुआ है.
3300 नहीं 26000 चाहिए
जब बिहार तक के संवाददाता समस्तीपुर पहुंच वहां के रसोइयों से मानदेय में हुई बढ़ोतरी के बाद खुशी के बारे में पूछा तो उनका जवाब था- खुशी तो यही मिला है कि हम लोग को कुछ नहीं मिला है. यहां मौजूद एक रसोइया ने कहा कि 3300 रुपए में घर का पालन पोषण कैसे होगा. मेरे 4 बच्चों का पालन पोषण इन पैसों से कैसे करूंगी मैं. मेरी मांग यह है कि हमें न्यूनतम मजदूरी जो कि 26000 रुपए है वो मिले.
आगे इस महिला ने भड़कते हुए कहा कि हम साल में 12 महीना काम करते है लेकिन हमें सैलेरी सिर्फ 10 महीने की ही मिलती है. अगर 12 महीना काम करेंगे तो 12 महीना का ही पैसा चाहिए. नीतीश जी हमको बहुत दिए लेकिन कुछ नहीं दिए रसोइया को साफ नहीं दिए.
काम करने में होता है जान का खतरा
वहां मौजूद महिलाओं ने नीतीश सरकार पर जमकर हमला बोला है. एक महिला का कहना है कि हम लोग 10 बजे से लेकर शाम 6 बजे का काम करते रहते है. गैस सिलेंडर के पास काम करने में बहुत ज्यादा खतरा होता है लेकिन सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है. स्कूल के हेडमास्टर को 1 लाख से ज्यादा की सैलेरी मिलती है वहीं हम लोगों को 10 हजार रुपए भी नहीं मिलते. यहां काम करने वाली टीचर को कई सुविधाएं मिलती है वो सुविधाएं हमें भी चाहिए.
वेतन नहीं तो वोट नहीं
रसोइयों में साफ तौर पर कहा है कि नीतीश कुमार मानदेय दोगुना कर उत्साह बढ़ा रहे है लेकिन इससे घर नहीं चलता. अगर हमें 12 महीने का पैसा और 26000 वेतन नहीं मिलेगा तो वोट नहीं देंगे. इस 3300 रुपए से हमलोगों का कुछ नहीं होने वाला है.
चुनाव से पहले नीतीश बाबू झुनझुना थमा दिए
वहीं मौजूद एक युवक से जब इस विषय पर पूछा गया तो उनका कहना था कि रसोइया जितनी मेहनत करते है उस हिसाब से मजदूरी नहीं मिल रहीं है. बहुत ही संघर्ष करते है और नीतीश बाबू चुनाव से पहले झुनझुना थमा दिए है. लेकिन इनके परिश्रम के हिसाब से इन्हें 26000 रुपए मिलने ही चाहिए. साथ ही मातृत्व अवकाश लाभ और इंश्योरेंस होनी चाहिए, पेंशन मिलना चाहिए.
रसोइयों को मिले सरकारी कर्मचारी का दर्जा
वहीं मौजूद एक शख्स ने कहा कि पूरे देश में सिर्फ तमिलनाडु में ही रसोइयों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिला हुआ है.इसलिए हमारा मांग है की इसको चतुर्थ वर्गीय सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए दीजिए. साथ ही महिलाओं को जितनी भी छुट्टियां मिलनी चाहिए वो भी मिले. नीतीश जी ने मुंह में जीरा डालना वाला काम किया है. साथ ही इन रसोइयों से खाना बनवाने के अलावा करवाए जाने वाले कामों को भी बंद कराना चाहिए.
"रसोइया का काम घटिया है"
वहां मौजूद कुछ महिलाओं ने तो इस काम को ही घटिया बता दिया. महिलाओं का कहना था कि 3300 रुपए में हमारा गुजर-बसर करना बहुत ही मुश्किल होता है. खाना बनाने के साथ-साथ वहां जूठन भी उठाना पड़ता और बच्चा लोग मारता भी है, गाली देता है लेकिन सब सहना पड़ता है.
एक महिला तो इतनी गुस्सा हो गई कि उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की बहु-बेटी इतने पैसों में कही काम करेगी क्या. एसी में बैठकर फरमान निकाल देना आसान होता है लेकिन यहां पर चीजें बहुत ही अलग है.
यहां देखें चौपाल का वीडियो
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