बिहार वोटर लिस्ट विवाद: सुप्रीम कोर्ट में योगेंद्र यादव ने चुनाव आयोग की लिस्ट में ‘डेड’ बताए गए दो वोटर्स को पेश किया जिंदा, SIR प्रक्रिया पर उठाए गंभीर सवाल

सुप्रीम कोर्ट में योगेंद्र यादव ने बिहार वोटर लिस्ट विवाद पर खुद दलीलें पेश कीं. इस दौरान उन्होंने चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट में 'मृत' बताए गए दो लोगों को जिंदा पेश कर सनसनी मचा दी.

Yogendra Yadav
Yogendra Yadav

रूपक प्रियदर्शी

12 Aug 2025 (अपडेटेड: 12 Aug 2025, 10:05 PM)

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सुप्रीम कोर्ट में बिहार वोटर लिस्ट विवाद को लेकर सुनवाई के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने दलीलें पेश कर सनसनी मचा दी. उन्होंने चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया पर सवाल उठाए. इस दौरान योगेंद्र यादव ने कोर्ट में दो ऐसे लोगों को जिंदा पेश किया जिन्हें आयोग ने मृत मानकर वोटर लिस्ट से उनका नाम हटा दिया था. इस सुनवाई ने सिर्फ कोर्ट रूम से लेकर सोशल मीडिया पर तक हलचल मचा दी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है.

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योगेंद्र यादव खुद पेश कीं दलीलें

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में बिहार वोटर लिस्ट से जुड़े एक जनहित याचिका की सुनवाई हो रही थी. इस दौरान कोट रूम में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण और इंदिरा जय सिंह जैसे दिग्गज वकील मौजूद थे. लेकिन सबको चौंकाते हुए याचिकाकर्ता योगेंद्र यादव ने खुद दलीलें पेश कीं. जस्टिस सूर्यकांत और जयमॉल बागची की बेंच के सामने उन्होंने स्लाइड्स के जरिए तथ्य रखे और बताया कि कैसे चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया बिहार में लोगों के वोटिंग अधिकार छीन रही है. उनकी इस प्रस्तुति ने कोर्ट का ध्यान खींचा.

 'मृत' लोगों को कोर्ट में जिंदा पेश किया

सबसे चौंकाने वाला पल तब आया जब योगेंद्र यादव ने बिहार के दो वोटर्स इसमें एक महिला और एक पुरुष को कोर्ट में पेश किया. इन दोनों लोग चुनाव आयोग वोटर की 'डेड लिस्ट' में डाल चुका था. यानी आयोग ने इन्हें मृत मानकर वोटर लिस्ट से इनका नाम हटा दिया था. इस दौरान योगेंद्र यादव ने कोर्ट में साबित किया कि ये लोग जिंदा हैं और उनके मतदान के अधिकार को गलत तरीके से छीना गया है. इस घटना ने कोर्ट रूम में सनसनी मचा दी.

कोर्ट में ऐसा 'ड्रामा' नहीं चलता : चुनाव आयोग के वकील

चुनाव आयोग की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि कोर्ट में ऐसा 'ड्रामा' नहीं चलता. उन्होंने दावा किया कि मृतकों को जिंदा या जिंदा लोगों को मृत दिखाने की गलती को BLO  के पास ठीक किया जा सकता है और इसके लिए कोर्ट में याचिका की जरूरत नहीं. हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत ने योगेंद्र यादव की दलीलों को गंभीरता से लिया और कहा कि उनकी बातों से कोर्ट को मदद मिलेगी. बेंच ने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि भारतीय नागरिकों की ऐसी सक्रियता पर गर्व है. कोर्ट ने कोई आदेश पारित नहीं किया और सुनवाई अगले दिन तक टाल दी.

वोटर लिस्ट को लेकर ये हो रहो हैं विवाद

बात दें कि बिहार वोटर लिस्ट को लेकर कई तरह के विवाद चल रहे हैं. चुनाव आयोग मना कर चुका है कि उन 65 लाख लोगों की लिस्ट जारी नहीं करेगा जिनके नाम कटे हैं. दूसरा विवाद ये है कि मिंता का वोटर कार्ड, जिसमें उन्हें 124 साल की बुजुर्ग बना दिया गया था. जबकि दावा है मिंता देवी की उम्र 30 साल के आसपास होगी. तीसरा विवाद ये कि जिनको डेड लिस्ट में शामिल किया गया उनको जिंदा सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया. इस दौरान योगेंद्र यादव ने सिर्फ ये साबित करने की कोशिश की कि कैसे लोगों के वोट का अधिकार छीना जा रहा है.

इस पूरी सुनवाई में योगेंद्र यादव और बाकी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को यही बताने की कोशिश की कि बिहार में वोटर लिस्ट की SIR प्रक्रिया गैरकानूनी है. नागरिकों पर अपनी नागरिकता साबित करने का बोझ डाला जा रहा है. 65 लाख लोगों को मतदाता सूची से बिना उचित जांच के हटाया गया है.

बिहार भारत का हिस्सा है: जस्टिस सूर्यकांत

याचिकाकर्ता मनोज झा के वकील कपिल सिब्बल की दलील ने रखी कि जो दस्तावेज मांगे जा रहे हैं वो बिहार के लोगों के पास नहीं हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा बिहार भारत का हिस्सा है. अगर उनके पास नहीं है तो बाकी राज्यों के लोगों के पास भी नहीं होंगे. बेंच ने कहा कि नियम के मुताबिक जिनका नाम नहीं है वो नाम शामिल कराने के लिए आवेदन कर सकते हैं. उसके बाद भी आपत्ति पर विचार हो सकता है.

आधार नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है:SC

इसी बहसबाजी में सुप्रीम कोर्ट ने क्लियर कर दिया कि आधार नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है.चुनाव आयोग का कहना सही है. आधार ऐक्ट में ऐसा कहा गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से और फैक्ट्स देने को कहा है.

योगेंद्र यादव खुद हैं याचिकाकर्ता

सुप्रीम कोर्ट में योगेंद्र यादव खुद याचिकाकर्ता हैं. उन्होंने जनहित याचिका लगाकर सुप्रीम कोर्ट से SIR पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है. योगेंद्र यादव  ने SIR को मनमाना, अनुचित और चुनावी कानूनों का उल्लंघन करने वाला बताया है. सुप्रीम कोर्ट में जिस याचिका पर सुनवाई हो रही है उस केस का टाइटल है ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS AND ORS. Versus ELECTION COMMISSION OF INDIA. हालांकि इसके अलावा कई नेताओं और संगठनों ने भी याचिकाएं लगाई हुई है.

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