Nitish Kumar: 2025 नीतीश कुमार का साल रहा, साल के आखिर में हुए बिहार चुनाव और उसके नतीजों ने एक बार फिर दिखा दिया कि बिहार की राजनीति आज भी नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही घूमती है. गठबंधन बदले, हालात बदले, सियासत की हवाएं बदलीं, लेकिन सत्ता के केंद्र में नीतीश कुमार बने रहे. हालांकि चुनाव के बाद हिजाब विवाद ने राजनीति में हलचल मचाई. केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके रिश्ते भी चर्चा में रहे. इसलिए ईयर एंडर शो में आज बात बिहार के चाणक्य के कहे जाने वाले नीतीश कुमार की. पटना के एक छोटे कस्बे से निकलकर इंजीनियर बने नीतीश कुमार ने सरकारी नौकरी छोड़ राजनीति की राह अपनाई. जेपी आंदोलन से शुरू हुई उनकी यात्रा में दोस्ती भी है, दुश्मनी भी, संघर्ष भी और सत्ता भी. लालू से रिश्तों के उतार-चढ़ाव हों या बीजेपी के साथ सियासी संतुलन, नीतीश हर मोड़ पर चर्चा में रहे.
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चर्चित चेहरा के इस खास एपिसोड में आज जानेंगे क्या है नीतीश कुमार की असली ताकत, कैसे 20 सालों तक सत्ता में बने रहे और क्या है राजनीति के सबसे अनुभवी खिलाड़ी नीतीश कुमार की कहानी...
बिहार की राजनीति के चाणक्य है नीतीश
पूरा साल लगभग बीत जाने के बाद जब बिहार में चुनाव हुए तो नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति के धुरंधर आज भी नीतीश कुमार ही बने हुए हैं, वो भी बीते 20 सालों से. तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव, गठबंधन बदलने और आलोचनाओं के बावजूद नीतीश कुमार सत्ता के केंद्र में बने रहे. दो दशक से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिके रहना आसान नहीं होता, लेकिन नीतीश कुमार ने यह कर दिखाया. इसलिए आज बिहार की राजनीति के चाणक्य या बिहार की राजनीति के मैनेजर कहलाते हैं. जनता ने उनके नेतृत्व और गठबंधन को समर्थन दिया, जिससे जेडीयू और उनके सहयोगी दलों को स्पष्ट बहुमत मिला और बिहार में नीतीश ने अपनी हुकूमत दोहराई.
सत्ता में आने के बाद हिजाब विवाद से गरमाई राजनीति
चुनाव के बाद नीतीश कुमार की राजनीति कई मुद्दों को लेकर चर्चा में रही. एक तो सत्ता संभालने के बाद उनका राजनीतिक संतुलन और दूसरा बीते दिनों उठा हिजाब विवाद जो देश भर में चर्चा में राजनीति का केंद्र बना, जिसमें नीतीश कुमार निशाने पर रहे. मामला 15 दिसंबर का है जब 1283 आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र(Appointment letter) देने के लिए इवेंट रखा गया. यहां डॉक्टर नुसरत परवीन जब मंच पर आईं तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके हिजाब पर सवाल उठाया और उसे नीचे खींच दिया. डिप्टी सीएम ने रोकने की कोशिश की, लेकिन देर हो चुकी थी.
वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही राजनीति गरमा गई. विपक्ष ने इस्तीफे की मांग की और इसे महिलाओं और अल्पसंख्यकों का अपमान बताया. मामला इतना बढ़ा कि नुसरत परवीन ने आहत होकर जॉइन करने से भी इनकार कर दिया. जेडीयू ने सफाई में कहा कि मुख्यमंत्री का इरादा देश को एक सफल बेटी का चेहरा दिखाना था. वहीं अल्पसंख्यक मंत्री ने इसे बच्ची के प्रति दुलार बताया. विपक्षी नेताओं जैसे अखिलेश यादव और महबूबा मुफ्ती ने इस कदम की कड़ी आलोचना की.
नीतीश और पीएम की दोस्ती
वैसे इसी दौर में केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार के रिश्ते भी चर्चा में रहे. मोदी और नीतीश की दोस्ती नई नहीं है, दोनों अलग-अलग विचारधाराओं से आते हैं, लेकिन सत्ता और प्रशासन के लेवल पर दोनों के बीच एक व्यावहारिक समझ बनी रही है. कई मौकों पर नीतीश ने केंद्र सरकार की नीतियों का समर्थन किया, तो कुछ मुद्दों पर अपनी असहमति भी जताई. लेकिन उन्होंने कभी ऐसा कदम नहीं उठाया जिससे रिश्ते पूरी तरह टूट जाएं. यही संतुलन नीतीश कुमार की राजनीति की असली पहचान है और इसी संतुलन को समझने के लिए जरूरी है उनकी पूरी कहानी.
मैकेनिकल इंजीनियर से राजनेता बनने की कहानी
नीतीश कुमार की कहानी बिहार की राजनीति की सबसे दिलचस्प कहानियों में से एक है. एक छोटे से कस्बे में जन्मा वह लड़का, जिसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, सरकारी नौकरी पाई, लेकिन फिर सब कुछ छोड़कर राजनीति की राह चुन ली. आगे चलकर वही लड़का बिहार का चाणक्य और राजनीति का जादूगर कहलाया. 1 मार्च 1951 को पटना जिले के बख्तियारपुर में जन्मे नीतीश कुमार को घर में प्यार से मुन्ना कहा जाता था. उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी और मां एक होम मेकर थी. बचपन से ही पढ़ाई में तेज नीतीश ने पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी होते ही उन्हें बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी मिल गई. परिवार को लगा कि अब जिंदगी सुरक्षित हो गई है.
लेकिन उसी दौर में बिहार की राजनीति उफान पर थी, जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन पूरे राज्य में फैल चुका था. हजारों युवा सड़कों पर उतर आए थे, नीतीश कुमार ने नौकरी छोड़ दी और आंदोलन में कूद पड़े. यही से उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हुई. जेपी आंदोलन ने बिहार को दो बड़े नेता दिए जिसमें एक लालू प्रसाद यादव और दूसरे नीतीश कुमार है. दोनों साथ-साथ राजनीति सीखते रहे, दोस्ती गहरी थी और सोच भी मिलती-जुलती थी. लेकिन समय के साथ दोनों के रास्ते अलग होते गए और लालू और नीतीश का रिश्ता बिहार की राजनीति का सबसे चर्चित अध्याय बन गया.
हार को हराकर आज बने हैं राजनीति के धुरंधर
नीतीश कुमार ने 1977 और 1980 में हरनौत से चुनाव लड़ा लेकिन हार मिली, लगातार हार के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. 1985 में पहली बार विधायक बने और यहीं से उनकी राजनीतिक गाड़ी चल पड़ी. 1989 में वो बाढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने और दिल्ली की राजनीति में पहचान बनाने लगे. केंद्र सरकार में वो कृषि राज्यमंत्री बने, फिर रेल और सड़क परिवहन मंत्री भी रहे. रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने आम लोगों से जुड़े कई बड़े फैसले किए, जैसे ऑनलाइन टिकट बुकिंग और तत्काल टिकट जैसी सुविधाएं उसी दौर की देन हैं. 1999 में गैसल ट्रेन दुर्घटना के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया. इस फैसले ने उन्हें एक ईमानदार और सिद्धांतों वाले नेता के रूप में स्थापित किया.
1994 में उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई. 1995 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया. यह उनका पहला बड़ा राजनीतिक दांव था. 2000 में वो सात दिन के लिए मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत न होने के कारण इस्तीफा देना पड़ा. अक्टूबर 2005 में बिहार की राजनीति ने नया मोड़ लिया. जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. इसके बाद से बिहार की राजनीति काफी हद तक उनके इर्द-गिर्द घूमती रही.
नीतीश कुमार की व्यक्तिगत जिंदगी
व्यक्तिगत जीवन में नीतीश कुमार बेहद सादगी पसंद रहे, उन्होंने दहेज लेने से इनकार किया. जेपी आंदोलन के दौरान वो जेल गए और पत्नी मंजू से जेल की जाली के पीछे मुलाकात होती थी. 2007 में पत्नी के निधन ने उन्हें गहरा झटका दिया. उनका इकलौता बेटा निशांत राजनीति से दूर रहा. आज बिहार चुनाव जीतने के बाद हिजाब विवाद और केंद्र सरकार के साथ संतुलन बनाते हुए नीतीश कुमार फिर सुर्खियों में हैं.
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