बिहार में 2005 से पहले प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का कोई ठोस इंतजाम नहीं था. उत्तर बिहार के लोग बाढ़ और दक्षिण-पश्चिम बिहार के लोग सूखे से परेशान रहते थे, लेकिन राहत के नाम पर सरकारी खजाने में ही लूट होती थी. बाढ़ पीड़ितों को जो थोड़ा बहुत मिलता, उसके लिए उन्हें महीनों तक मेहनत करनी पड़ती थी.
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24 नवंबर 2005 को नई सरकार बनने के बाद राज्य में आपदा प्रबंधन को प्राथमिकता दी गई. सबसे पहले अलग आपदा प्रबंधन विभाग बनाया गया, ताकि बाढ़, सूखा, आग या भूकंप जैसी आपदाओं से निपटने के काम एक ही छत के नीचे हो सकें.
तुरंत राहत और बचाव के इंतजाम
साल 2010 में मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार की गई, जिससे बाढ़ और सूखे की पूर्व तैयारी, राहत एवं बचाव और आपदा के बाद की कार्रवाई स्पष्ट हो गई. संकट के समय प्रभावित लोगों तक तुरंत राहत सामग्री पहुंचाई जाती है. राहत सामग्री में चूड़ा, गुड़, आटा, चावल, दाल, पानी, दवाइयां, तिरपाल, साबुन, बाल्टी, मोमबत्ती, कपड़े जैसी बुनियादी चीजें शामिल हैं. बाढ़ पीड़ित परिवारों को तत्काल एक क्विंटल अनाज भी दिया जाता है.
2007 से बाढ़ पीड़ितों को आनुग्रहिक अनुदान देना शुरू किया गया, जो अब 7,000 रुपए हो चुका है और सीधे बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से जाता है. राहत शिविरों में सुरक्षित रहने के लिए रसोई, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं का पूरा इंतजाम होता है. बच्चों के लिए दूध, महिलाओं के लिए सैनेटरी नैपकिन, और चिकित्सक-led चिकित्सा शिविर भी लगाए जाते हैं.
बच्चों और पशुओं का ध्यान भी
राहत शिविरों में जन्म लेने वाले नवजात बच्चों के लिए 10 हजार रुपए और नवजात बच्चियों के लिए 15 हजार रुपए दिए जाते हैं. साथ ही बाढ़ से प्रभावित पशुओं के लिए पशु राहत शिविर और चलंत पशु चिकित्सा दल की व्यवस्था की गई है.
आपदा पूर्व चेतावनी और सूखा प्रबंधन
बरसात में उत्तर बिहार की नदियों कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती और महानंदा पर नजर रखी जाती है. दक्षिण-पश्चिम बिहार में सूखे से निपटने के लिए जल संकट की स्थिति का अनुमान लगाकर उपाय किए जाते हैं. 2011 में सूखा प्रबंधन नीति बनाई गई, जिसमें जल संरक्षण और सूखा-रोधी फसलों पर ध्यान दिया गया.
बाढ़ और सिंचाई के लिए बड़े प्रोजेक्ट्स
2025 तक 370 किलोमीटर नए तटबंध बनाकर लगभग 14 लाख हेक्टेयर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र को सुरक्षित किया गया. लगभग 600 किलोमीटर तटबंध का उन्नयन और सुदृढ़ीकरण भी किया गया. पश्चिमी कोसी नहर परियोजना, कमला बराज परियोजना, टाल क्षेत्र विकास योजना और अन्य परियोजनाओं से न सिर्फ बाढ़ की समस्या कम हुई, बल्कि किसानों को सिंचाई की सुविधा भी मिली.
राज्य में SDRF और BSDMA का गठन
2007 में बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (BSDMA) और 2010 में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (SDRF) का गठन किया गया, जो बाढ़, भूकंप, आग और अन्य आपदाओं में खोज, बचाव और राहत कार्य में सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
बिहार में अब प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की पूरी तैयारी है. सरकार लगातार नए उपाय और योजनाएं लागू कर रही है, ताकि लोग सुरक्षित रहें और आपदा की घड़ी में राहत तुरंत मिल सके.
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