केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए तो सरकार एक बार फिर से वेतन आयोग लाई है. वेतन आयोग कर्मचारियों की सैलरी स्ट्रक्चर को रिव्यू करेगा और सैलरी इंक्रीमेंट की सिफारिश देगा. सरकारी नौकरी में बहुत सारी सोशल सिक्योरिटी कवर होती है लेकिन प्राइवेट नौकरी करने वालों का एक ही सहारा है ईपीएफओ. अगर 10 साल नौकरी कर ली तो प्राइवेट सेक्टर वालों को भी पेंशन मिलती है. अगर 10 साल नौकरी कर ली तो पेंशन के हकदार हो जाते हैं. ये अलग बात है कि एम्प्लॉई प्रोविडेंट फंड ईपीएफ से मिलने वाली पेंशन बहुत कम होती है.
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सरकार ने अभी तक इतना किया है कि मिनिमम पेंशन एक हजार रुपये होगी. अरसे से मांग हो रही थी कि मिनिमम पेंशन 7500 रुपये होनी चाहिए. डीए भी मिलना चाहिए. सरकारी नौकरी कर चुके लोगों को सातवें वेतन आयोग के महम मिनिमम पेंशन 9 हजार मिलती है. संसद में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय से पूछा गया था कि क्या सरकार मिनिमम पेंशन एक हजार से 7500 करने पर विचार कर रही है?
EPS फंड भारी वित्तीय घाटे से जूझ रहा है- केंद्र सरकार
सरकार की ओर से श्रम और रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने टका सा जवाब दे दिया कि ऐसा कुछ नहीं करने जा रहे हैं. EPS फंड भारी वित्तीय घाटे से जूझ रहा है. ऐसे में मिनिमम पेंशन बढ़ाना संभव नहीं होगा. डीए का सिस्टम ईपीएफ में होता नहीं है. सरकार के ये साफ करने के बाद सरकारी और प्राइवेट पेंशनर्स के बीच मिनिमम पेंशन का फासला 9 टाइम बना रहेगा. सरकारी वाले 9 हजार से भी संतुष्ट नहीं है. सरकार ने मैसेज दे दिया कि प्राइवेट वालों को एक हजार से ही काम चलाना होगा.
तो...कितना मिलेगा पेंशन?
ईपीएफ की पेंशन एक हजार मिनिमम है. प्रॉविडेंट फंड के बैलेंस, लेंथ ऑफ सर्विस और पीएफ कॉन्ट्रीब्यूशन के हिसाब से पेंशन के नंबर हर कर्मचारी के अलग-अलग हो सकते हैं. चूंकि प्राइवेट नौकरी में सरकारी नौकरी की तरह ग्रेड या पे स्लैब नहीं होते इसलिए जिसका जितना पीएफ बैलेंस उसी हिसाब से रिटायरमेंट या 10 साल की नौकरी के बाद पेंशन फिक्स होगी. जो कंपनियां सरकारी नियमों का पालन करती हैं वहां पीएफ कटना मस्ट होता है.
सैलरी से हर महीने की बेसिक सैलरी का 12 परसेंट पीएफ फंड के लिए कटता है. इतना ही कंपनी भी देती है लेकिन दो टुकड़ों में. एक टुकड़ा कर्मचारी की बेसिक का 8.33 परसेंट ईपीएफ में जमा होता है. दूसरा 3.67 परसेंट EPS पेंशन में जमा होता है. इसी सब से जोड़कर पीएफ बैलेंस क्रिएट होता है. नियम तो है कि 58 साल में रिटायर होने पर पीएफ से पेंशन मिलती है.
अगर किसी ने 10 साल की नौकरी कर ली तब भी पेंशन मांग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं कि 30-55 साल में पेंशन का पैसा आने लगेगा. 58 साल की उम्र में पेंशन शुरू होगी. एक व्यवस्था 50 साल में भी पेंशन शुरू होने की है, लेकिन इसके लिए अलग नियम कानून हैं. अगर कोई पीएफ कॉन्ट्रीब्यूट कर रहा है लेकिन 10 साल के अंदर नौकरी छोड़ देता है तो पेंशन नहीं मिलेगी. जमा पैसे रिटायरमेंट एज में दिए जाएंगे.
नौकरी बदलने पर भी मिलेगी PF वाली पेंशन?
एक नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी ज्वाइन कर ली तब भी पेंशन मिल सकती है. बशर्ते दूसरी कंपनी में भी पीएफ कॉन्ट्रीब्यूशन हो रहा हो. अगर कोई कर्मचारी नौकरी बदलता है, तो उसे अपना EPF फंड नई कंपनी को ट्रांसफर कर देना चाहिए. इससे पिछली कंपनी में की गई नौकरी के साल जुड़ जाते हैं, जिससे कुल सर्विस पीरियड बढ़ जाता है। अगर कर्मचारी की बीच में मौत हो जाए तो परिवार यानी आश्रित पत्नी, बच्चों को पेंशन मिलेगी.
मैक्सिमम पेंशन 7500 से ज्यादा नहीं
इस व्यवस्था में सबसे बड़ी खामी है कि सैलरी कितनी भी हो, पेंशन के लिए बेसिक सैलरी 15 हजार से ज्यादा नहीं मिल सकती. 15 हजार बेसिक मानकर 35 साल भी नौकरी कर ली तो रिटायर होने पर मैक्सिमम पेंशन 7500 रुपये ही मिल सकती है. सरकारी नौकरी में ऐसी कोई कैपिंग नहीं है.
पेंशन के लिए क्या है फार्मूला...जान लीजिए
पेंशन के लिए ईपीएफ का अपना फॉर्मूला है. कर्मचारी ने किसने साल नौकरी की, कर्मचारी की 60 महीने की बेसिक सैलरी का एवरेज कितना है. दोनों को 70 से डिवाइड करके पेंशन फिक्स होती है. जितना ज्यादा सर्विस लेंथ होगी, जितना ज्यादा बेसिक सैलरी होगी, ज्यादा पेंशन की संभावना रहेगी. अगर बेसिक सैलरी 15 हजार बनी और सर्विस के ईयर 10 साल हुए तो 15 हजार गुना 10 किया जाएगा. फिर 70 से डिवाइड किया जाएगा. इससे मंथली पेंशन बनेगी 2 हजार 141 रुपये. हो सकता है कि किसी की पेंशन इतनी भी न बने इसलिए मिनिमम एक हजार की कैपिंग की गई. इसे ही बढ़ाने की मांग की जिसे सरकार ने खारिज कर दिया.
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