Hisab Kitab By Milind Khandekar: दिल्ली हाईकोर्ट में पिछले हफ्ते एक ऐसा मामला सामने आया जो AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के जमाने में हमें एक बड़ा सबक देता है. दरइसल गुरुग्राम के Greenopolis Welfare Association (GWA) ने याचिका दायर की थी कि बिल्डर ने खरीदारों को फ्लैट नहीं दिया.
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याचिका में एक खास जजमेंट का हवाला दिया गया, लेकिन उस जजमेंट का जो पैराग्राफ बताया गया, वह तो असल में था ही नहीं. जैसे कि राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी केस के जजमेंट में पैराग्राफ 73 का हवाला दिया गया, जबकि असल में वह जजमेंट सिर्फ 27 पैराग्राफ का था.
दूसरी पार्टी ने ये बात पकड़ ली कि ये याचिका ChatGPT ने लिखी है, मतलब AI ने झूठी जानकारी दे दी. इसे AI hallucination कहते हैं यानी AI ने झूठ बोल दिया. इसके बाद याचिका वापस लेनी पड़ी.
अब सोचिए, अमेरिकी कंपनियों ने पिछले कुछ सालों में AI पर करीब 328 बिलियन डॉलर लगाए हैं. इतनी बड़ी रकम से दिल्ली मेट्रो जैसे 40 नेटवर्क बनाए जा सकते थे. पर AI के मामले में अभी तक बड़ी सफलता नहीं मिली है, और सवाल उठ रहे हैं कि ये निवेश सही दिशा में जा रहा है या डूब जाएगा.इंडिया टुडे समूह के Tak चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने हिसाब किताब में इस मुद्दे पर चर्चा की है.
तीन साल पहले किया था Open AI लॉन्च
OpenAI ने ChatGPT तीन साल पहले लॉन्च किया था, उसके बाद से हर बड़ी टेक कंपनी AI में आगे निकलने की होड़ में लग गई है. सब AI पर भारी रकम खर्च कर रहे हैं, लेकिन हाल ही में आई दो रिपोर्ट ने AI की सफलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. MIT की रिपोर्ट में कहा गया है कि Generative AI के 95% पायलट प्रोजेक्ट कंपनियों में फेल हो गए. यानी ज्यादातर कंपनियां AI को बड़े स्तर पर लागू नहीं कर पाईं. वहीं, फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि अमेरिका की 500 बड़ी कंपनियों में AI की बातें खूब हो रही हैं, लेकिन असल काम में AI को अपनाने में कंपनियां अटक रही हैं.
AI के आने से नौकरी जाने का डर भी बना हुआ है. खासकर कस्टमर केयर और सॉफ्टवेयर कोडिंग के काम में AI का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. आजकल ग्राहकों के सवालों का जवाब चैटबोट या कॉल सेंटर के बजाय AI दे रहा है, और सॉफ्टवेयर कोडिंग में भी AI मददगार साबित हो रहा है.
IT कंपनियों ने नई हायरिंग कर दी है बंद
इस वजह से भारतीय IT कंपनियों ने नई हायरिंग लगभग बंद कर दी है, लेकिन OpenAI के संस्थापक सैम ऑल्टमैन का कहना है कि सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की जरूरत बनी रहेगी क्योंकि AI की वजह से सॉफ्टवेयर की मांग बढ़ेगी. बाकी सेक्टर में AI लोगों की मददगार बनकर रहेगा यानी लोग काम करेंगे और AI साथ देगा.
AI को लेकर सबसे बड़ी चिंता यही है कि कहीं यह इंसानों की नौकरियां छीन न ले. वकील, डॉक्टर, पत्रकार, टीचर जिनका काम कंटेंट बनाना और नॉलेज का इस्तेमाल करना है वे भी इस बदलाव से प्रभावित हो सकते हैं. पर अभी भी कहना मुश्किल है कि AI हमारी जिंदगी में कितनी और कैसी बड़ी बदलाव लाएगा.
आंख मूंदकर AI पर न करें भरोसा
दिल्ली हाईकोर्ट की इस मज़ेदार घटना से हमें ये सीख मिलती है कि AI पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए. जो जानकारी AI आपको दे रहा है, उसकी खुद जांच-पड़ताल जरूरी है, वरना आपकी मुश्किल बढ़ सकती है.
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