गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी GST की काउंसिल ने कुछ दिनों पहले रेट कटौती पर मुहर लगाई थी. अब ज्यादातर चीजों और सेवाओं पर 5% और 18% टैक्स लगेगा. सरकार को उम्मीद है कि उनके इस कदम से आम जनता को महंगाई से राहत मिलेगी, लोग ज्यादा चीजें खरीदेंगे और अर्थव्यवस्था में रफ्तार आएगी. अमेरिका जैसे देशों के टैरिफ का असर भी कुछ हद तक कम होगा.
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इंडिया टुडे ग्रुप के तक चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने अपने साप्ताहिक सीरीज 'हिसाब-किताब' में इस हफ्ते GST पर बात की है. इस दौरान उन्होंने एक अहम सवाल और वो ये कि क्या कंपनियां सच में इसका फायदा ग्राहकों को देंगी? इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं
क्या पहले भी ऐसा हुआ था?
साल 2017 के जुलाई महीने में देश में पहली बार GST को लागू किया गया था. उस वक्त भी ये प्रचार बहुत जोर-शोर से हुआ था. फिर नवंबर 2017 में पहली बार टैक्स रेट कम किए गए. उस समय 175 से ज़्यादा चीज़ों को 28% टैक्स स्लैब से हटाकर 18% में लाया गया था. यानी ये कोई पहली बार नहीं है कि टैक्स कटौती हुई हो, जैसा कि इस बार बताया जा रहा है.
केरल के पूर्व वित्त मंत्री थॉमस आयजेक ने दावा किया है कि साल 2018 में GST का औसत रेट 15% से घटकर 12% हो गया था. लेकिन इसका फायदा आम आदमी को नहीं मिला. केरल सरकार ने 25 बड़ी कंपनियों का अध्ययन किया और ये पाया कि टैक्स कटौती का पैसा कंपनियों ने खुद रख लिया न कि ग्राहकों को सस्ते दामों पर चीज़ें दी.
पहले सरकार ने निगरानी रखी थी
जब GST शुरू हुआ था तो एक संस्था बनाई गई थी, जिसका नाम था National Anti Profiteering Agency (NAA). इसका काम था ये देखना कि कंपनियां टैक्स कटौती का फायदा ग्राहकों तक पहुंचा रही हैं या नहीं. NAA ने हिंदुस्तान यूनिलीवर, P&G, Domino’s, KFC, Pizza Hut और Samsung जैसी बड़ी कंपनियों की जाँच की थी. और पाया कि कई कंपनियों ने टैक्स तो घटा लिया लेकिन दाम नहीं घटाए. कुछ पर तो जुर्माना भी लगा.
लेकिन अब वो संस्था ही नहीं है. यानी अब कोई सख्त निगरानी वाला सिस्टम मौजूद नहीं है. सरकार ने कहा है कि CBIC यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ इन डायरेक्ट टैक्स एंड कस्टम कुछ समय तक कंपनियों पर नज़र रखेगा, लेकिन यह कितना कारगर होगा, कहना मुश्किल है.
बाजार को भरोसा नहीं
सिर्फ सरकार ही नहीं, बाजार को भी कंपनियों पर भरोसा नहीं है. मोतीलाल ओसवाल जैसी ब्रोकरेज कंपनी की रिपोर्ट कहती है कि यह साफ नहीं है कि रेट कट का फायदा ग्राहकों को मिलेगा या नहीं. दूसरी ब्रोकरेज कंपनियों का भी यही कहना है कि FMCG, व्हाइट गुड्स (जैसे फ्रिज, वॉशिंग मशीन), और ऑटो सेक्टर की कंपनियाँ शायद इस टैक्स कट का फायदा अपने मार्जिन बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें.
सीमेंट कंपनियों को लेकर भी ऐसा ही शक है. अगर ऐसा हुआ, तो सरकार की सारी कोशिश बेकार हो जाएगी. सरकार चाहती है कि लोग ज़्यादा खरीदारी करें ताकि अर्थव्यवस्था में तेजी आए. लेकिन अगर चीज़ें सस्ती नहीं हुईं, तो खरीदारी कैसे बढ़ेगी?
नतीजा क्या होगा?
सरकार की मंशा सही हो सकती है. लेकिन ज़रूरी ये है कि कंपनियाँ भी ईमानदारी दिखाएं. अगर टैक्स घटा है तो दाम भी घटने चाहिए. सिर्फ सरकार की निगरानी नहीं, जनता की भी नज़र ज़रूरी है.
मिलिंद खांडेकर ने 'हिसाब-किताब' में साफ कहा कि सरकार को कंपनियों पर सख्ती से नज़र रखनी होगी. वरना ये GST रेट कट सिर्फ कागज़ों में ही अच्छा लगेगा, असल ज़िंदगी में नहीं.
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