क्या आपने कभी गौर किया है कि एक जैसा हेयरकट करवाने के बावजूद महिला का बिल पुरुष से ज़्यादा आता है. या फिर, महिलाओं के लिए बने रेजर, शैंपू और डियोडरेंट्स पुरुषों की तुलना में महंगे होते हैं, जबकि दोनो का काम वही है? ये कोई संयोग नहीं है और न ही महज ब्रांडिंग का कमाल है.
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ये है एक अनदेखा और अनकहा आर्थिक भेदभाव जिसे कहा जाता है "पिंक टैक्स". पिंक टैक्स कोई सरकारी टैक्स नहीं है, बल्कि एक ऐसी चुपचाप वसूली जाने वाली एकस्ट्रा चार्ज है जो महिलाओं से सिर्फ इसलिए ली जाती है क्योंकि उस प्रोडक्ट को 'फीमेल फ्रेंडली' बना दिया गया है.
इस टैक्स का असर सिर्फ महिलाओं के बजट पर ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की जेब पर पड़ता है. खासकर उन घरों में जहां महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हैं. यह एक ऐसा बोझ है, जिसे महिलाएं जाने-अनजाने हर दिन उठाती हैं. बिना सवाल पूछे, बिना आवाज उठाए.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये पिंक टैक्स है क्या, यह कैसे हमारी जिंदगी को प्रभावित करता है और इससे कैसे बचा जा सकता है.
क्या है ये पिंक टैक्स
पिंक टैक्स को हिंदी में गुलाबी टैक्स भी कहा जाता है, जो खासतौर पर महिलाओं से जुड़ा होता है. ये कोई आधिकारिक टैक्स नहीं होता, मतलब इसे सरकार या कंपनियों को देना जरूरी नहीं होता. दरअसल, ये एक तरह का एक्स्ट्रा चार्ज होता है जो महिलाओं के लिए बने सामान पर लगाया जाता है.
यही कारण है कि महिलाओं के प्रोडक्ट अक्सर पुरुषों के मुकाबले महंगे होते हैं. जैसे अगर ऑयल की बात करें, तो पुरुषों वाला ऑयल महिलाओं के ऑयल से सस्ता होता है. यानी महिलाओं को अपने सामान पर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं, सिर्फ इसलिए कि ये प्रोडक्ट उनके लिए खास बनाए गए होते हैं.
दुनियाभर में पिंक टैक्स की स्थिति
द हिंदू की एक रिपोर्ट की मानें तो पिंक टैक्स की बात सबसे पहले 1994 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में उठी थी. एक रिसर्च में पाया गया कि महिलाओं के पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स, जैसे शैंपू और लोशन, पुरुषों की तुलना में लगभग 13% महंगे होते हैं. महिलाओं के कपड़े और गहनों की कीमत भी 7-8% ज्यादा होती है.
ड्राई क्लीनिंग में भी महिलाओं की शर्ट्स की कीमत पुरुषों की शर्ट से करीब 90% ज्यादा होती है. यही हाल यूके में भी है, जहां महिलाओं का डियोडरेंट 8.9% और फेस क्रीम 34% से ज्यादा महंगी मिलती है. साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों से इस तरह के जेंडर आधारित कीमत भेदभाव को खत्म करने की अपील की थी.
भारत में पिंक टैक्स का हाल
अब बात भारत की करें तो वर्तमान में पिंक टैक्स को लेकर हमारी देश की महिलाएं ज़्यादा जागरूक नहीं है. इंटरनेशनल फाइनेंस स्टूडेंट्स एसोसिएशन (IFSA) की एक रिपोर्ट की मानें तो देश में लगभग 67% भारतीयों ने कभी पिंक टैक्स का नाम तक नहीं सुना है.
हालांकि, साल 2018 के जुलाई महीने में जब भारत सरकार ने सैनिटरी नैपकिन और टैम्पोन पर GST हटा दिया, तब पहली बार महिलाओं ने महसूस किया कि वो एक ऐसी चीज़ पर टैक्स दे रही थीं जो उनके लिए जरूरी है. इससे पिंक टैक्स पर बातचीत शुरू हुई.
लेकिन आज भी महिलाएं शैंपू, रेज़र, स्किन केयर, सलून सेवाएं और कपड़ों जैसी चीज़ों पर चुपचाप ज्यादा कीमत चुकाती हैं, वो भी बिना सवाल पूछे.
महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है?
आर्थिक बोझ- महिलाओं की औसत आमदनी पुरुषों से कम होती है. ऐसे में जब उन्हें रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी ज़्यादा पैसा देना पड़ता है, तो उनका बजट और भी खराब हो जाता है.
परिवार की बचत पर असर- अगर किसी घर में महिलाएं काम नहीं करतीं, तो उनकी जरूरतों पर होने वाला अतिरिक्त खर्च परिवार की बचत को धीरे-धीरे खत्म करता है.
लंबे समय का नुकसान- एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी ज़िंदगी में महिलाएं हज़ारों रुपये ज्यादा खर्च कर देती हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि प्रोडक्ट उनके लिए "ब्रांडेड" थे.
इस टैक्स से कैसे बच सकती हैं महिलाएं
- जेंडर न्यूट्रल प्रोडक्ट चुनें- कई बार पुरुषों और महिलाओं के प्रोडक्ट्स में फर्क मात्र उसके पैकेजिंग का होता है, न कि गुणवत्ता का. पुरुषों के रेजर या शैंपू का इस्तेमाल करके आप पैसे बचा सकती हैं.
- यूनिट प्राइस की तुलना करें- पैक की कुल कीमत नहीं, बल्कि प्रति ml या gram कीमत देखें. इससे सही प्रोडक्ट चुनने में मदद मिलेगी.
- सैलून में मोलभाव करें- छोटे बालों की कटिंग अगर लड़के और लड़की दोनों की एक जैसी है, तो कीमत में फर्क क्यों? खुलकर पूछें और जेंडर-न्यूट्रल प्राइस की मांग करें.
- ऑनलाइन तुलना करें- ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर महिलाओं और पुरुषों के प्रोडक्ट्स की कीमतों की तुलना करें और स्मार्ट चॉइस बनाएं.
- जागरूक ब्रांड्स को सपोर्ट करें- भारत में कुछ स्टार्टअप्स जेंडर-न्यूट्रल और वाजिब कीमतों वाले प्रोडक्ट्स बना रहे हैं. इन्हें अपनाकर न सिर्फ आप बचत कर सकती हैं, बल्कि बदलाव का हिस्सा भी बन सकती हैं.
क्या भारत में पिंक टैक्स को रोकने के लिए कोई कानून है?
भारत में फिलहाल पिंक टैक्स को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है, लेकिन नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन (NCDRC) ने यह जरूर कहा है कि कंपनियों को फेयर प्राइसिंग का पालन करना चाहिए और जेंडर के आधार पर कीमत में भेदभाव नहीं करना चाहिए.
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