छत्तीसगढ़ की रायपुर में हाल ही में एक न्यूड पार्टी के इंविटेशन का लेटर काफी वायरल हो रहा था. अब इस पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में गर्मी ला दी है.
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इस आपत्तिजनक पार्टी को लेकर सत्ताधारी और विपक्षी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है. एक तरफ जहां कांग्रेस ने इस तरह की पार्टी को राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता पर हमला बताया है, तो वहीं बीजेपी ने भी मामले की निंदा करते हुए सख्त जांच की बात कही है.
क्या है मामला
रायपुर में 21 सितंबर को भाठागांव स्थित एसएस फार्म हाउस में एक न्यूड पार्टी आयोजित की जाने वाली थी. जिसमें युवाओं को अपनी शराब खुद लाने तक की अनुमति दी गई थी. इस पार्टी का पोस्टर 12 सितंबर को सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा जिसके बाद लोगों ने इस तरह की पार्टी को हमारी संस्कृति के खिलाफ बताया. इसके बाद पुलिस ने इस कार्रवाई करते हुए 7 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है.
कांग्रेस का बीजेपी सरकार पर सीधा हमला
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया देते हुए आरोप लगाया कि यह पूरा प्रकरण राज्य की संस्कृति को दूषित करने की साजिश है और इसकी जिम्मेदारी मौजूदा बीजेपी सरकार की है.
बैज आगे कहते हैं, ''ऐसी घटनाएं बिना सरकारी संरक्षण के संभव नहीं हैं. यह छत्तीसगढ़ की परंपरा और मर्यादा के खिलाफ है. सरकार को इस तरह के आयोजनों पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की कोई भी पार्टी का या पब्लिक आयोजन समाज में एक गलत संदेश फैलाते हैं और यह युवाओं के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं. कांग्रेस ने इसे "नग्न सोच की उपज" बताते हुए प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है.
बीजेपी ने जताई कड़ी आपत्ति
हालांकि इस मुद्दे पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने भी नाराज़गी जाहिर की है. उनका कहना है कि इस तरह की घटनाएं निंदनीय हैं और समाज में विकृति फैलाती हैं. सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है और संबंधित एजेंसियों को जांच के निर्देश दिए जा चुके हैं.
राजनीतिक बहस में बदला सामाजिक मुद्दा
इस मामले में अब पुलिस की भी एंट्री हो चुकी है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस विषय को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं. आम जनता में भी इस घटना को लेकर चिंता देखी जा रही है, खासकर राज्य की सांस्कृतिक छवि को लेकर.
क्या कहती है जनता और विशेषज्ञ?
सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस तरह की घटनाएं सिर्फ राजनीतिक लाभ-हानि का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों से भी जुड़ी हुई हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार और समाज दोनों को मिलकर इस तरह की प्रवृत्तियों पर लगाम लगाने की जरूरत है.
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