AIIMS रायपुर से डॉक्टरों का पलायन तेज, तीन साल में 35 डॉक्टरों का इस्तीफा, 40% फैकल्टी पद खाली

सुमी राजाप्पन

AIIMS रायपुर गंभीर स्टाफ संकट से जूझ रहा है, जहां पिछले तीन सालों में 35 डॉक्टरों ने इस्तीफा दिया और लगभग 40% फैकल्टी पद खाली हैं. डॉक्टरों के पलायन के पीछे करियर अवसर, निजी क्षेत्र का आकर्षण और राज्य को लेकर नकारात्मक धारणा जैसी वजहें सामने आई हैं.

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छत्तीसगढ़ की रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) इन दिनों गहरे संकट से गुजर रहा है. एक ओर जहां यह संस्थान पूरे मध्य भारत के लिए सबसे बेहतरीन चिकित्सा सेवाओं का केंद्र माना जाता है, वहीं दूसरी ओर यहां डॉक्टरों और फैकल्टी की भारी कमी संस्थान की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही है.

बीते तीन सालों में 35 डॉक्टरों ने छोड़ी नौकरी

AIIMS रायपुर में हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि पिछले तीन वर्षों में 35 डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ दी है. इन इस्तीफों के पीछे डॉक्टरों ने मुख्य रूप से परिवार के ट्रांसफर, करियर में बेहतर अवसर और प्राइवेट हेल्थ सेक्टर में आकर्षक वेतन को वजह बताया है. हालांकि, इनमें से कोई भी सार्वजनिक रूप से बोलने को तैयार नहीं हुआ, जिससे स्थिति की संवेदनशीलता और गंभीरता स्पष्ट होती है.

फैकल्टी पदों का 40% खाली रहना गंभीर चिंता का विषय

आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि संस्थान में लगभग 40% फैकल्टी पद खाली हैं. मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता और मरीजों को मिलने वाली चिकित्सा सेवाओं पर इसका सीधा असर पड़ रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कमी सिर्फ संस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र की एक बड़ी कमजोरी को उजागर करती है.

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सरकार की प्रतिक्रिया और प्रयास

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने संकट को स्वीकार करते हुए बताया कि सरकार डॉक्टरों को संस्थान से जोड़ने और उन्हें बनाए रखने के लिए प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि एक समिति का गठन किया गया है जो ट्रांसफर पॉलिसी, अनुकंपा नियुक्ति और वेतन ग्रेड संशोधन जैसे मुद्दों पर तीन महीने में रिपोर्ट देगी.

इसके अलावा, उन्होंने बताया कि राज्यभर में कई एनएचएम (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं, जो 10 प्रमुख मांगें लेकर बैठे हैं. सरकार ने इनमें से चार मांगों को स्वीकार कर लिया है, जिनमें 27% वेतनवृद्धि, ₹5 लाख तक का कैशलेस इलाज, मनमानी बर्खास्तगी से सुरक्षा और 30 दिन का सवेतन वार्षिक अवकाश शामिल हैं.

पूर्व मंत्री का बयान: धारणा बदलने की ज़रूरत

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव ने डॉक्टरों के इस पलायन के पीछे कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि बेहतर करियर अवसर, निजी अस्पतालों में अधिक वेतन और जीवनसाथी की नियुक्ति के कारण राज्य से बाहर जाना एक सामान्य प्रवृत्ति बन चुकी है. साथ ही, उन्होंने इस बात पर बल दिया कि छत्तीसगढ़ को नक्सल प्रभावित राज्य के रूप में देखे जाने की नकारात्मक धारणा को दूर करना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि यह युवा डॉक्टरों को यहां आने से रोकती है.

क्या है आगे का रास्ता?

स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और भी गहराता जाएगा. AIIMS रायपुर जैसे संस्थान में फैकल्टी की कमी न सिर्फ मेडिकल छात्रों की शिक्षा को प्रभावित करती है, बल्कि लाखों मरीजों को मिलने वाली उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं पर भी प्रतिकूल असर डालती है.

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