Awadh Ojha on Quitting Politics: अपने पढ़ाने के अंदाज के कारण मशहूर और दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी जॉइन करने वाले शख्सियत अवध ओझा आज कल सुर्खियों में चल रहें है. सुर्खियों में रहने की वजह है एक साल में ही आम आदमी पार्टी और राजनीति को अलविदा कह देना. अवध ओझा के राजनीति छोड़ने के बाद तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन अब उन्होंने खुद इसकी वजह बता दी है. अवध ओझा ने एक पॉडकास्ट में साफतौर पर कहा है कि राजनीति में भी थ्योरी और प्रैक्टिल दोनों ही चीजें होती है और मेरी प्रैक्टिल अभी कमजोर है. आइए विस्तार से जानते है पूरी कहानी.
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मनीष सिसोदिया ने छोड़ दी थी अपनी सीट
2 दिसंबर 2024 यानी आज से लगभग 1 साल पहले देश के मशहूर टीचर अवध ओझा ने आम आदमी पार्टी जॉइन की थी. उनके चुनाव लड़ने के फैसले के बाद मनीष सिसोदिया ने अपनी पटपड़गंज वाली सीट छोड़ दी थी, लेकिन वहां पर उनकी करारी हार हुई. पटपड़गंज सीट वहीं सीट है जिसपर 10 साल से आप का कब्जा था लेकिन 2025 में भाजपा के रवि नेगी ने यह सीट अपने कब्जे में ले ली और विधायक बने. लेकिन हाल के दिनों में अवध ओझा के पार्टी छोड़ने के बाद लोगों के मन में सवाल गूंज रहा था कि राजनीति की बात करने वाले का अचानक मोह भंग कैसा हो गया, जिसका उन्होंने खुद जवाब दिया है.
अवध ओझा ने क्यों छोड़ी राजनीति?
बीते दिनों अवध ओझा एक पॉडकास्ट में शामिल हुए थे. इस दौरान उनसे राजनीति छोड़ने को लेकर सवाल किया गया, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि, प्रैक्टिल और थ्योरी में काफी अंतर है. मेरा थ्योरी पार्ट काफी मजबूत है, लेकिन प्रैक्टिकल पार्ट में अभी कमजोरी है. मुझे लगा की अभी और होमवर्क करने की जरूरत है.
केसी सिन्हा के हार से लगा था झटका
अवध ओझा ने यह भी कहा कि, उन्हें बिहार के मशहूर टीचर और गणितज्ञ केसी सिन्हा की हार से भी तगड़ा झटका लगा है. उन्होंने कहा कि, जब मेरी हार हुई थी तो मैंने सोचा की चलो जनता ने मुझे स्वीकार नहीं किया है, अभी मास्टर साहब नए हैं, अभी रमो फिर सोचेंगे. लेकिन जब बिहार का चुनाव हुआ और डॉक्टर केसी सिन्हा चुनाव हार गए तो यह मेरे लिए बहुत शॉकिंग बात थी. डॉक्टर केसी सिन्हा ने 70 किताबें लिखी है और फिर भी जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया.
कर्पूरी ठाकुर का भी दिया एग्जांपल
अवध ओझा ने केसी सिन्हा के अलावा बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर का एग्जांपल देते हुए कहा कि, बिहार में 1951 में हुए चुनाव की बात करें तो कर्पूरी ठाकुर तब शिक्षक थे. वे नाई समाज से थे लेकिन किसी ने कोई समाज नहीं देखा, सिर्फ यह देखा कि वह बहुत अच्छे शिक्षक है. इसलिए वह चुनाव भी जीते और बिहार के सीएम भी बने. वह 1951 का भारत था, लेकिन 2025 के भारत में अवध ओझा चुनाव हार जाते हैं. यानी कि अवध ओझा ने साफ कहा है कि आज हो शिक्षा की बात करेगा वह चुनाव हार जाता है.
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