दिल्ली में दिसंबर की ठंड के साथ इस बार जहरीली हवा ने भी लोगों की मुश्किलें कई गुना बढ़ा दी हैं. हालात ऐसे बन गए हैं कि राजधानी में सांस लेना भी चुनौती जैसा महसूस हो रहा है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि दिसंबर 2024 की शुरुआत से ही दिल्ली की हवा लगातार खराब बनी हुई है और पहले 18 दिनों में ही इसने बीते आठ सालों का सबसे खराब रिकॉर्ड तोड़ दिया है. महीने की शुरुआत से ही हालात ऐसे रहे कि ज्यादातर दिनों में हवा 'बहुत खराब' से 'गंभीर' श्रेणी में बनी रही.
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दिसंबर के पहले आठ दिनों तक लगातार AQI 300 से ऊपर रहा जिससे पूरे महीने का औसत AQI करीब 343 तक पहुंच गया. हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 14 दिसंबर को AQI 461 दर्ज किया गया जो बीते आठ सालों में दिसंबर महीने का सबसे ऊंचा स्तर है. हवा के बिगड़ते हालात को देखते हुए 13 दिसंबर को दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) का सबसे सख्त चरण, यानी स्टेज-IV लागू करना पड़ा.
कचरा और बायोमास जलाने पर रोक
GRAP-IV के तहत दिल्ली में निर्माण और तोड़फोड़ के काम पूरी तरह बंद कर दिए गए खुले में कचरा और बायोमास जलाने पर रोक लगाई गई, दूसरे राज्यों में रजीस्टर्ड गैर-BS VI वाहनों की एंट्री पर प्रतिबंध लगाया गया और बिना वैध पॉल्यूशन सर्टिफिकेट वाले गीड़ियों को पेट्रोल न देने के निर्देश दिए गए है. इसके अलावा सरकारी और निजी दफ्तरों में 50 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम भी अनिवार्य किया गया. हालांकि, सख्त नियमों के बावजूद जमीनी स्तर पर इसका असर सीमित ही नजर आया.
आजतक की ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम के विश्लेषण में एक और चिंताजनक तस्वीर सामने आई. नासा के FIRMS सैटेलाइट डेटा के मुताबिक 13 से 19 दिसंबर के बीच दिल्ली और एनसीआर में लगातार आग की घटनाएं दर्ज की गईं. ये आग पराली, लैंडफिल साइट्स और खुले इलाकों में जलते कचरे से जुड़ी थीं. ग्राउंड रिपोर्ट में भी दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद, बागपत, खेकड़ा और खरखौदा जैसे इलाकों में खुले में आग जलती हुई पाई गई.
दिल्ली की भौगोलिक बनावट
विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली की भौगोलिक बनावट भी प्रदूषण को और खतरनाक बना देती है. कटोरे जैसी संरचना के कारण प्रदूषक हवा में फंस जाते हैं और हरियाणा व उत्तर प्रदेश से आने वाला धुआं भी राजधानी की हवा में घुलकर हालात बिगाड़ देता है. यही कारण है कि केवल राजधानी में लागू किए गए उपाय काफी नहीं साबित होते.
CPCB के आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि GRAP-IV लागू होने के बाद भी हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), पीएम2.5 और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के स्तर में कोई बड़ी गिरावट नहीं आई. हैरानी की बात यह है कि 14 दिसंबर को यानी GRAP-IV लागू होने के अगले ही दिन प्रदूषण अपने चरम पर पहुंच गया.
सैटेलाइट डेटा यह भी दिखाता है कि नवंबर से दिसंबर तक दिल्ली के कई इलाकों में NO₂ का स्तर लगातार ऊंचा बना रहा. साफ है कि प्रदूषण पर काबू पाने के लिए केवल आपातकालीन कदम या मौसम के बदलने का इंतजार काफी नहीं है. विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक प्रदूषण के मूल स्रोतों पर स्थायी और सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक दिल्ली की हवा यूं ही लोगों की सेहत से खिलवाड़ करती रहेगी.
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