लंदन से पढ़ाई, इंटरनेशनल कार्डियोलॉजिस्ट और सैकड़ों सफल सर्जरी का दावा, लेकिन हकीकत में ये सब एक फरेब था. मध्य प्रदेश के दमोह जिले में "डॉ. एन जॉन केम" के नाम से खुद को विदेशी कार्डियोलॉजिस्ट बताने वाला नरेंद्र विक्रमादित्य यादव आखिरकार प्रयागराज से गिरफ्तार कर लिया गया है. इस फर्जी डॉक्टर पर आरोप है कि उसने दमोह के मिशन अस्पताल में 15 दिल के ऑपरेशन किए, जिनमें 7 मरीजों की मौत हो गई.
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बता दें कि इस बड़े मामले में खुद सीएम मोहन यादव ने गहरी चिंता जताते हुए कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए थे, जिसके बाद एक्शन में आई एमपी पुलिस ने प्रयागराज से फर्जी डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया है. पुलिस आरोपी डॉक्टर एमपी ला रही है, जहां उसे कोर्ट में पेश किया जाएगा.
लंदन के डॉक्टर का नाम चुराया, मरीजों की ले ली जान
नरेंद्र यादव खुद को UK के प्रसिद्ध हार्ट सर्जन प्रोफेसर जॉन केम बता रहा था. लेकिन जब इस मामले की पड़ताल की गई तो असली प्रोफेसर ने साफ किया कि उसका इस व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है. यानी नरेंद्र ने न केवल लोगों की जान के साथ खिलवाड़ किया, बल्कि विदेशी डॉक्टर की पहचान भी चुराई.
दीपक तिवारी की शिकायत से खुला राज
दमोह निवासी दीपक तिवारी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और प्रशासन को चिट्ठी लिखकर पूरे मामले की शिकायत की थी. उन्होंने आरोप लगाया कि जनवरी-फरवरी 2024 में मिशन अस्पताल में भर्ती मरीजों की दिल की सर्जरी फर्जी डॉक्टर ने की, और इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूली गई. 7 मौतों के बाद भी अस्पताल ने न FIR दर्ज कराई, न पोस्टमार्टम कराया.
2006 में भी एक VIP की मौत से जुड़ा है नाम
चौंकाने वाली बात यह है कि आरोपी डॉक्टर पर 2006 में छत्तीसगढ़ के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की मौत से भी जुड़ा होने का आरोप है. यानी यह फर्जीवाड़ा सालों से चल रहा था. दीपक तिवारी की मांग है कि मौतों की जांच हो, अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जाए और हत्या की धाराएं जोड़ी जाएं.
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CMHO की शिकायत पर दर्ज हुई FIR, गिरफ्तारी प्रयागराज से
दमोह के CMHO डॉ. एमके जैन की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 315 (गर्भपात से संबंधित अपराध), 338 (जानलेवा लापरवाही), और धोखाधड़ी की धाराओं में केस दर्ज हुआ. दमोह के SP श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने बताया कि एक स्पेशल टीम ने प्रयागराज में दबिश देकर आरोपी को गिरफ्तार किया है और उसे दमोह लाया जा रहा है.
अब सवाल अस्पताल प्रशासन पर भी है...
क्या अस्पताल को आरोपी की फर्जी डिग्रियों की भनक नहीं थी?
बिना पोस्टमार्टम शव क्यों सौंपे गए?
क्या अस्पताल प्रबंधन भी इस साजिश में शामिल था?
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