MP सरकार की आरक्षण वाली कथित रिपोर्ट सोशल मीडिया पर हो गई वायरल, भड़के लोग!

मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 8 अक्टूबर से सुनवाई शुरू होगी. इस बीच सोशल मीडिया पर एक रिपोर्ट की प्रतियां वायरल हुईं, जिन्हें एमपी सरकार ने असत्य और भ्रामक बताया है.

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वायरल रिपोर्ट पर एमपी सरकार ने दिया रिएक्शन.

आशुतोष शुक्ला

• 04:26 PM • 01 Oct 2025

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मध्य प्रदेश में 27 फीसदी आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है. इस बीच सोशल मीडिया पर कुछ रिपोर्ट की प्रतियां वायरल हो गई हैं. वायरल प्रतियों को लेकर अब सोशल मीडिया के यूजर्स एमपी की बीजेपी सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं और एमपी की बीजेपी सरकार को हिंदू विरोधी बता रहे हैं. 

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सोशल मीडिया रिपोर्ट की जो प्रतियां वायरल हुई हैं उनमें लिखा गया है कि ऋषि शंभूक को मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम ने इस लिए मार दिया क्यों कि वो जाति-पांत नहीं मान रहे थे. इस रिपोर्ट में आगे लिखा है कि भील बालक एकलव्य का अंगूठा आचार्य द्रोणाचार्य ने इसलिए काट लिया क्योंकि वो छोटी जाति का था. 

80 फीसदी बहुजन सालों से हुए प्रताड़ित-रिपोर्ट 

कथित रिपोर्ट में लिखा गया है कि 80 फीसदी बहुजनों को हजारों साल से जाति के नाम पर प्रताड़ित किया गया. इस रिपोर्ट को सोशल मीडिया पर एमपी सरकार के हलफनामे के नाम पर शेयर किया जा रहा है, लेकिन इसको लेकर अब बीजेपी और एमपी सरकार की तरफ अब चेतावनी भरी सफाई आई है. 

सरकार का रिएक्शन 

एमपी सरकार की इस सफाई में कई बातों का जिक्र किया गया है.एमपी सरकार की तरफ से जारी सफाई की मानें तो रिपोर्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, वो रिपोर्ट राज्य पिछड़ा आयोग के लिए बने महाजन आयोग की है और इसे 1983 में बनाया गया था. 

वायरल सामग्री पूर्णतः असत्य, मिथ्या और भ्रामक है. यह केवल भ्रम और दुष्प्रचार फैलाने के लिए की गई है. यह सामग्री न तो शासन के हलफनामे का हिस्सा है, और न ही किसी नीति या निर्णय का हिस्सा. यह अंश मध्यप्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (महाजन आयोग) 1983 की रिपोर्ट का है, न कि वर्तमान शासन का. 

राज्य सरकार का निर्णय महाजन आयोग की अनुशंसा पर नहीं 

शासन ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण प्रकरण में विभिन्न आयोगों की रिपोर्ट प्रस्तुत की है. इसमें महाजन आयोग की रिपोर्ट, 1994–2011 के वार्षिक प्रतिवेदन, वर्ष 2022 का राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का प्रतिवेदन आदि शामिल हैं. महाजन आयोग ने 35% आरक्षण की अनुशंसा की थी, जबकि मध्यप्रदेश शासन ने केवल 27% आरक्षण लागू किया. 

इससे स्पष्ट है कि शासन का निर्णय आयोग की अनुशंसा पर आधारित नहीं है. आरक्षण विषयक आयोगों और समितियों की रिपोर्ट्स न्यायालयीन अभिलेख का हिस्सा रही हैं. इन्हें पेश करना केवल कानूनी प्रक्रिया है, न कि राजनीतिक टिप्पणी. किसी रिपोर्ट के हिस्से को संदर्भ से अलग कर सोशल मीडिया पर फैलाना निंदनीय, आपराधिक और समाज में वैमनस्य फैलाने वाला प्रयास है. राज्य शासन इसकी गंभीरता से जांच करेगा और आवश्यक कार्रवाई करेगा. 

8 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में है सुनवाई

आपको बता दें कि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं और 8 अक्टूबर से सुप्रीम कोर्ट इस मामले को लेकर नियमित सुनवाई करने वाली है. हालांकि राज्य सरकार बार-बार दावा कर रही है कि ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण हर हाल में मिलेगा और इसके लिए सरकार पूरी तरह से प्रतिवद्ध है. 

मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 8 अक्टूबर से सुनवाई शुरू होगी. इस बीच सोशल मीडिया पर एक रिपोर्ट की प्रतियां वायरल हुईं, जिन्हें एमपी सरकार ने असत्य और भ्रामक बताया है.

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