SCO-BRICS Summit: मोदी-पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती से वैश्विक राजनीति में क्या-क्या बदलेगा?

तिआंजिन में हुए SCO सम्मेलन में मोदी, पुतिन और जिनपिंग की गर्मजोशी से मुलाकात ने रूस-भारत-चीन के संभावित नए गठबंधन की ओर इशारा किया. अमेरिका की कठोर नीतियों के बीच भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखते हुए वैश्विक समीकरणों को नया रूप दे रहा है.

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अलका कुमारी

01 Sep 2025 (अपडेटेड: 01 Sep 2025, 05:45 PM)

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SCO-BRICS Summit: दुनिया की राजनीति तेजी से बदल रही है. देश नए दोस्त ढूंढ रहे हैं और पुराने रिश्तों पर फिर से सोचने की जरूरत महसूस कर रहे हैं. ऐसी ही एक अहम घटना हुई चीन के शहर तिआंजिन में, जहां शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक साथ मिले.

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इस नजारे ने दुनिया की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. इस सम्मेलन में मिले तीनों नेताओं ने सिर्फ औपचारिकता नहीं निभाई, बल्कि आपसी गर्मजोशी दिखाते हुए गले मिले, हाथ मिलाया और मुस्कराते हुए बातें भी कीं. इससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या रूस-भारत-चीन (RIC) मिलकर कोई नया भू-राजनीतिक गठबंधन बना रहे हैं?

तीन महाशक्तियों की मुलाकात

तिआंजिन में हुए SCO सम्मेलन में जब भारत के प्रधानमंत्री मोदी, रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग मिले तो वह केवल एक औपचारिक मुलाकात नहीं थी बल्कि तीनों नेताओं की बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि इनके बीच कुछ गहरा चल रहा है. पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच तो 50 मिनट तक बातचीत भी हुई.

प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इन मुलाकातों की तस्वीरें साझा कीं जिसमें तीनों नेता हंसते हुए नजर आए. इसके बाद पुतिन ने मोदी को एक ओर ले जाकर कुछ देर तक अकेले बातचीत की और वह भी हाथ में हाथ डालकर. यह नजारा बहुत कुछ कहता है यह सिर्फ फोटो-ऑप नहीं, बल्कि कुछ बड़ा संदेश था.

इतना ही नहीं SCO समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ साझा रुख की अपील की, जिसे चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने समर्थन भी दिया. यह भारत-पाकिस्तान तनाव के संदर्भ काफी अहम है. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम आतंकी हमले का भी जिक्र किया और SCO के साझा घोषणापत्र में इस हमले की सभी देशों ने मिलकर निंदा की है, जिससे भारत के आतंकवाद विरोधी रुख को मजबूती मिली है. 

मोदी-पुतिन के बीच क्या चर्चा हुई?

सम्मेलन के बाद में मोदी और पुतिन ने अलग से बैठक की, जिसमें दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल भी शामिल हुए. पीएम ने बताया कि बातचीत में व्यापार, रक्षा, खाद, अंतरिक्ष, सुरक्षा और संस्कृति जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि दोनों नेताओं ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा की. मोदी ने कहा कि उन्होंने और पुतिन ने "क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाक्रमों पर विचार साझा किए, जिसमें यूक्रेन संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान भी शामिल है.

क्या बन रहा है रूस-भारत-चीन का नया गठबंधन?

कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों की मानें तो यह मुलाकात केवल दिखावा नहीं थी. बल्कि यह संकेत है कि रूस, भारत और चीन एक साथ आ सकते हैं, एक नई भू-राजनीतिक शक्ति बनाकर. इस तरह का तीन देशों का गठबंधन सिर्फ एशिया नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति को प्रभावित कर सकता है.

ऐसे में यह सवाल उठता है कि भारत, जो अब तक अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भी संबंध मजबूत करता आ रहा था, अब रूस और चीन के करीब क्यों आता दिख रहा है?

भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में भारत पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है. खासकर रूस से सस्ता तेल खरीदने को लेकर, अमेरिका ने भारत पर 25% अतिरिक्त शुल्क तक लगा दिया, जो पहले से 25% के टैरिफ के साथ मिलकर कुल 50% हो गया.

इसके अलावा ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत की रूस से नजदीकी को लेकर कहा कि, "यह मोदी की जंग है." यानी भारत को रूस से व्यापार करने के लिए सार्वजनिक रूप से दोषी ठहराया जा रहा है.

भारत का जवाब: राष्ट्रीय हित सर्वोपरि

अमेरिका के इस तरह के बर्ताव और धमकियों के बावजूद भारत ने झुकने से इनकार कर दिया. भारत ने साफ कहा कि वह वहां से तेल खरीदेगा, जहां उसे सबसे बेहतर सौदा मिलेगा.

इसके बाद भारत की सरकारी कंपनियों IOCL और BPCL ने एक बार फिर से रूस से कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दिया. रूस ने भी भारत को भरोसा दिलाया कि वह अपने बाजार को भारतीय उत्पादों के लिए और ज्यादा खोलेगा.

भारत-चीन संबंधों में सुधार की शुरुआत

एक तरफ जहां भारत और अमेरिका के रिश्ते खराब हो रहे हैं, वहीं भारत और चीन के बीच भी कुछ सकारात्मक संकेत देखने को मिले हैं. SCO सम्मेलन से कुछ दिन पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए थे. उन्होंने दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को हल करने की बात कही.

इतना ही नहीं, चीन ने कुछ दिन पहले ही भारत पर लगे रेयर अर्थ मिनरल्स और मैग्नेट्स के निर्यात पर प्रतिबंध भी हटा लिया है. इसके साथ ही भारत-चीन के बीच सीधी उड़ाने फिर से शुरू करने पर सहमति बनी है.

हालांकि, ये संबंध अब भी संवेदनशील हैं क्योंकि गलवान घाटी में 2020 की झड़प अब भी ताजा है, जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे.

क्या अमेरिका की नीतियां बना रही हैं नए गठबंधन?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अमेरिका की कड़ी नीतियों ने भारत, रूस और चीन को एक-दूसरे के करीब ला दिया है. खासकर ट्रंप सरकार का रुख भारत के खिलाफ सख्त रहा है और इससे भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाना पड़ा है।

अब भारत ‘गुटनिरपेक्षता 2.0’ की ओर बढ़ता दिख रहा है. न पूरी तरह अमेरिका के साथ, न पूरी तरह रूस-चीन के साथ, लेकिन अपने हितों के अनुसार फैसले लेने वाला एक स्वतंत्र देश.

8 प्वाइंट में समझिए तीनों देशों की दोस्ती से क्या क्या बदलेगा 

1. अमेरिका को चुनौती देने की तैयारी?

रूस, चीन और भारत मिलकर एक ऐसा गठबंधन बनाना चाहते हैं जो अमेरिका की एकतरफा ताकत को संतुलित कर सके. अमेरिका की टैरिफ और आर्थिक नीतियों से ये देश लंबे समय से परेशान हैं. अब ये मिलकर एक नई वैश्विक व्यवस्था (World Order) की नींव रखना चाहते हैं.

2. ब्रिक्स और SCO की ताकत

BRICS और SCO अब केवल औपचारिक संगठन नहीं है, बल्कि एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में उभर रहे हैं. BRICS की अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा हो चुकी है और यह आधी दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है. SCO भी एशिया में सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारी का बड़ा मंच बन गया है. 

3. डॉलर की बादशाहत को चुनौती

रूस और चीन अब व्यापार के लिए डॉलर की जगह अपनी करेंसी (रूबल और युआन) का इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर BRICS देश मिलकर एक साझा मुद्रा लाते हैं तो डॉलर की ताकत कमजोर पड़ सकती है. इससे अमेरिका की वैश्विक आर्थिक पकड़ को सीधा झटका लगेगा.

4. भारत की स्थिति: मौका भी है, खतरा भी

भारत के लिए रूस एक भरोसेमंद दोस्त रहा है, लेकिन चीन के साथ संबंध अभी भी संवेदनशील हैं. गलवान घाटी की झड़प के बाद चीन से दूरी बढ़ी थी, लेकिन हालिया बातचीत से सुधार के संकेत मिले हैं. भारत को बहुत सोच-समझकर फैसले लेने होंगे ताकि उसका फायदा बना रहे.

5. भारत की रणनीति: बैलेंस बनाना ज़रूरी

भारत को अमेरिका, रूस और चीन तीनों के साथ संतुलन बनाकर चलना है. वह न तो किसी एक गुट का हिस्सा बनना चाहता है, न ही किसी के खिलाफ जाना चाहता है. इसकी विदेश नीति ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ यानी स्वतंत्र निर्णय लेने की परंपरा पर टिकी है.

6. IMF और वर्ल्ड बैंक को चुनौती मिलेगी

रूस और चीन जैसे देश IMF और वर्ल्ड बैंक को पश्चिमी देशों के पक्ष में झुका हुआ मानते हैं. BRICS अपना अलग विकास बैंक और फाइनेंशियल सिस्टम बना रहा है. इससे विकासशील देशों को बिना शर्तों के कर्ज मिल सकेगाय

7. दुनिया में नया पावर सेंटर उभरेगा

अब तक अमेरिका और यूरोपीय देश ही सबसे बड़े निर्णायक थे. लेकिन BRICS और SCO जैसे मंच दुनिया में नया पावर सेंटर बना सकते हैं. इससे वैश्विक राजनीति में ज्यादा संतुलन आएगा.

8. भारत के लिए यह ऐतिहासिक मौका

अब भारत सिर्फ एक विकासशील देश नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभर रहा है. मोदी, पुतिन और जिनपिंग की दोस्ती भारत को ग्लोबल लीडरशिप की ओर ले जा सकती है, लेकिन इसके लिए भारत को बेहद सावधानी और दूरदृष्टि के साथ हर कदम रखना होगा

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