भारतीय रेलवे के इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का अंत होने जा रहा है. एशिया की पहली महिला लोकोमोटिव पायलट सुरेखा यादव 30 सितंबर को अपने 36 सालों के सुनहरे करियर के बाद रिटायर होंगी. इस मौके पर न केवल रेलवे परिवार, बल्कि देशभर से लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं. उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने भी उन्हें भावभीनी शुभकामनाएं दी हैं.
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36 साल की सेवा, अनगिनत प्रेरणाएं
महाराष्ट्र के सतारा जिले में जन्मीं सुरेखा यादव ने उस दौर में रेलवे में कदम रखा, जब यह क्षेत्र लगभग पूरी तरह से पुरुषों का गढ़ माना जाता था. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने बतौर प्रशिक्षु सहायक चालक अपने करियर की शुरुआत की. शुरुआती दिनों की चुनौतियों को पार करते हुए सुरेखा ने न सिर्फ खुद को स्थापित किया, बल्कि भारतीय रेलवे में महिलाओं के लिए नई राहें भी खोलीं.
वंदे भारत की पहली महिला ड्राइवर भी रहीं
2023 में सुरेखा यादव एक बार फिर सुर्खियों में आईं, जब उन्होंने वंदे भारत एक्सप्रेस को सोलापुर से मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) तक सफलतापूर्वक चलाया. वे इस ट्रेन की पहली महिला लोको पायलट बनीं जो देश की सबसे आधुनिक ट्रेनों में से एक है.
CSMT पर हुआ जोरदार स्वागत
हाल ही में जब वे राजधानी एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 22222) को चलाकर CSMT पहुंचीं तो वहां उनके सहकर्मियों और रेलवे स्टाफ ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया. यह पल केवल एक ड्राइवर की विदाई नहीं, बल्कि एक युग के समापन जैसा था.
आनंद महिंद्रा ने कही दिल छू लेने वाली बात
महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने सुरेखा यादव को “प्रेरणादायक परिवर्तनकर्ता” बताते हुए एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक खास संदेश साझा किया. उन्होंने लिखा, "सुरेखा जी, एक अग्रणी बनने के लिए आपको बधाई. सेवा के इतने गौरवशाली सालों के बाद सेवानिवृत्ति के लिए मेरी शुभकामनाएं. आपने हमें यह याद दिलाया है कि ऐसे महान बदलाव लाने वाले लोगों को सलाम किया जाना चाहिए और उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जाना चाहिए."
महिलाओं के लिए मिसाल
मध्य रेलवे ने सुरेखा यादव को “सच्ची पथप्रदर्शक” कहते हुए लिखा कि उन्होंने न केवल सामाजिक बाधाओं को तोड़ा, बल्कि महिलाओं के लिए एक मजबूत उदाहरण भी प्रस्तुत किया. उनका करियर महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनकर हमेशा याद रखा जाएगा.
पुरस्कार और सम्मान
अपने करियर के दौरान सुरेखा यादव को कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से नवाजा गया. वे हमेशा अपनी सादगी, समर्पण और मजबूत इरादों के लिए जानी गईं.
सुरेखा यादव सिर्फ एक ट्रेन ड्राइवर नहीं हैं, वे एक आंदोलन हैं, जो यह दिखाता है कि जब संकल्प मजबूत हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती. 30 सितंबर को जब वे अंतिम बार रेल इंजन की सीट से उतरेंगी तो उनके पीछे प्रेरणा की एक लंबी पटरी छूट जाएगी, जिस पर अगली पीढ़ियां आगे बढ़ेंगी.
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