कौन हैं कमल ताई जिनकी चिट्‌ठी की है खूब चर्चा, बेटे ने CJI बनते छुए थे पांव

चीफ जस्टिस की मां कमल ताई गवई ने आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया. 100 साल पूरे होने पर अमरावती में हो रहे समारोह में बुलाए जाने पर विवाद हुआ. कमल ताई ने कहा कि उन्होंने जीवन अंबेडकरवादी विचारधारा के साथ जिया है और किसी भी विवाद में नहीं पड़ना चाहतीं.

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तस्वीर: न्यूज तक.

रूपक प्रियदर्शी

• 05:54 PM • 02 Oct 2025

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बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट के जज तो 2019 में बन गए थे.  चीफ जस्टिस पद पर प्रमोशन इसी साल हुआ. जब राष्ट्रपति भवन में उन्हें चीफ जस्टिस की शपथ दिलाई गई. शपथ समारोह में कमल ताई गवई सफेद साड़ी पहनकर समारोह हॉल में पहली पंक्ति में बैठी थीं. कौन मां गर्व नहीं करेगी कि उसका बेटा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बना है. 

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सबको इमोशनल करने वाला मौका था जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनते ही गवई ने मां कमल ताई के पैर छूकर आशीर्वाद लिया कि जो जिम्मेदारी मिली है उसे अच्छे से निभा सकूं. मां ने कहा मेरे बेटा डेयरडेविल है. अपने घर में एकदम डाउन टू अर्थ...लगता नहीं है कि इतना बड़ा जज है.

चर्चा में क्यों हैं कमलताई 

चीफ जस्टिस की मां कमल ताई गवई इन दिनों चर्चा में हैं. कुछ विवाद भी हैं. 100 साल पूरा होने पर आरएसएस गवई के होम टाउन महाराष्ट्र के अमरावती में बड़ा कार्यक्रम कर रहा है. आरएसएस के कार्यक्रमों में अक्सर ऐसे लोगों को मुख्य अतिथि बनाकर भेजा जाता है जो आरएसएस से नहीं जुड़े रहे हैं. 

RSS ने कमल ताई को बुलाया तो मचा हंगामा 

आरएसएस ने कमल ताई को बुलाया तो हंगामा मच गया. आरएसएस को लेकर वैसे ही हमेशा विवाद चलता रहता है. ऊपर से आरएसएस के कार्यक्रम में जब चीफ जस्टिस की मां को बुलाया जाए तो हंगामे के लिए और क्या चाहिए. बेटे गवई के चीफ जस्टिस बनने के बाद 84 साल की कमल ताई कई मौकों पर उनके साथ कार्यक्रमों में देखी गईं. 

5 अक्तूबर के कार्यक्रम में जाने के लिए पहले कमल ताई ने हां कर दी, लेकिन विवाद और हंगामा इतना हुआ कि उन्होंने जाने से मना कर दिया. कहा कि उनपर और मेरे दिवंगत पति आरएस गवई पर लगाए गए आरोपों से आहत हुई हैं. 

अंबेडकरवादी विचारधारा को जिया है- कमल ताई 

जीवन अंबेडकरवादी विचारधारा पर जिया है. दादासाहेब गवई ने अपना जीवन अंबेडकर आंदोलन को समर्पित किया था.  वो विपरीत विचारधारा वाले संगठनों के मंच पर भी जाकर वंचित वर्गों की आवाज उठाते थे. आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होते थे, लेकिन उन्होंने कभी उसके हिंदुत्व को स्वीकार नहीं किया. अगर मैं आरएसएस समारोह के मंच पर होती, तो अंबेडकरवादी विचारधारा की ही बात करती, लेकिन एक कार्यक्रम को लेकर बदनाम किया गया जैसे पूरी विचारधारा ही बदल गई हो. न जाने का फैसला करके विवाद खत्म करने की कोशिश की है. एक और कारण ये बताया गया है कि उनकी सेहत भी ठीक नहीं रहती. अब वे किसी भी विवाद में उलझना नहीं चाहतीं.  

तक्षशिला विश्वविद्यालय की प्रिंसिपल रही हैं- कमल ताई  

डॉ. कमला ताई गवई टीचिंग प्रोफेशन में रहीं. अमरावती के तक्षशिला विश्वविद्यालय की प्रिंसिपल बनकर रिटायर हुईं. अमरावती में ही रहती हैं. उनकी शादी आरएस गवई से हुई थी जो महाराष्ट्र की राजनीति में भी एक्टिव थे और समाज सुधार के लिए भी काम करते थे. अंबेडकरवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए काम करते थे. 

परिवार ने बौद्ध धर्म अपनाया हुआ है. आज भी उनका परिवार इसी काम में लगा है. अमरावती के श्री दादासाहेब गवई चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्ष हैं. नागपुर में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर स्मारक भूमि, दीक्षाभूमि, बौद्ध मेमोरियल के निर्माण में परिवार की भूमिका रही है. आज भी कमलताई गवई के एक और बेटे राजेंद्र गवई समिति के सदस्य हैं. कमल ताई ने महिलाओं और सामाजिक बदलाव के लिए काम किया. 

आरएस गवई कांग्रेस में शामिल नहीं हुए, लेकिन कांग्रेस से दूर नहीं भी रहे. कांग्रेस से संबंधों के कारण ही उन्हें बिहार, सिक्किम, केरल का राज्यपाल बनाया गया था. लोकसभा सांसद भी बने और करीब 30 साल महाराष्ट्र के MLC रहे. खुद की Republican Party of India Gavai नाम की पार्टी बनाई थी जो बहुत ज्यादा चली नहीं. 

उनके बेटे बीआर गवई जब सुप्रीम कोर्ट के जज हुआ करते थे तब राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किए जाने का केस आया था. तब सुनवाई से पहले उन्होंने ये डिस्क्लेमर देने में संकोच नहीं किया कि उनका परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है. 

खजुराहो में भगवान विष्णु को लेकर हुआ विवाद 

ज्यादा दिन बीते जब चीफ जस्टिस गवई को केस से जुड़े जजमेंट को लेकर क्या कुछ नहीं सुनना पड़ा. खजुराहो में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति को लेकर दायर याचिका खारिज करते हुए कह दिया कि जाओ भगवान से ही जाकर कुछ करने के लिए कहो. तुम कहते हो कि भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो तो जाओ  और अभी प्रार्थना करो. गवई की इस बात को हिंदू धर्म के खिलाफ माना गया. इतना विरोध हुआ कि उन्होंने कोर्ट रूम में सफाई देनी पड़ी कि वो सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. आरएसएस की विचारधारा विवाद कोई नया नहीं है. राहुल गांधी खुलकर संघ की विचारधारा के खिलाफ बोलते हैं. 

पीएम मोदी खुद को संघ का प्रचारक बताते रहे, लेकिन पीएम बनने के बाद संघ से संपर्क सीमित रहा. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को झटका लगा तो संबंध मजबूत दिखने लगे. अचानक इस साल मार्च में वो सरसंघचालक मोहन भागवत से मिले. 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से भी आरएसएस का तारीफ में भाषण दिया. फिर आरएसएस के 100 साल पूरे के जलसे में भी शामिल हुए. अब नागपुर में संघ मुख्यालय जाना ही बचा हुआ है.

संघ के कार्यक्रमों के मुख्य अतिथि को लेकर भी विवाद नया नहीं है. जीवन भर कांग्रेस की राजनीति करने वाले प्रणब मुखर्जी भी रिटायर होने के बाद 2008 में मुख्य अतिथि बनकर आरएसएस के कार्यक्रम में पहुंचे थे. रामनाथ कोविंद दूसरे पूर्व राष्ट्रपति बने जो RSS के किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बने. संघ विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मनाता है। इस साल तो 100 साल का जश्न भी मन रहा है.

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