Explainer: एथिलीन ग्लाइकॉल जहरीला, फिर कफ सिरप में क्यों किया जाता है इस्तेमाल, बिक्री पर क्यों नहीं लग पा रही रोक?

कुछ दवा कंपनियां मुनाफे के लिए कफ सिरप में जहरीले केमिकल EG और DEG मिला देती हैं. ये केमिकल बच्चों की किडनी और शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं.

कफ सिरप ने ली मासूमों की जान
कफ सिरप ने ली मासूमों की जान

अलका कुमारी

07 Oct 2025 (अपडेटेड: 07 Oct 2025, 09:07 AM)

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हाल ही में मध्यप्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत ने पूरे देश में हंगामा मचा दिया है. इस घोर लापरवाही में अब तक 16 से ज्यादा मासूमों की जान जा चुकी है, लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. 

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पिछले कुछ सालों में भारत और कई देशों में जहरीले कफ सिरप से 300 से ज्यादा बच्चों की जानें जा चुकी हैं. इनमें से ज्यादातर बच्चे पांच साल से कम उम्र के थे. 

दरअसल ये सिरप जहरीले केमिकल एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) और डाई-एथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) से मिलावट के कारण खतरनाक साबित हुए है. ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर ये जहरीले केमिकल कफ सिरप में क्यों होते हैं और सरकार इतनी बड़ी समस्या के बावजूद इसे रोकने में क्यों नाकाम है? आइए, इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं.

कफ सिरप में क्या होता है खास?

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार जब बच्चा खांसता है तो डॉक्टर अलग-अलग दवाएं देते हैं, जो खांसी की वजह और उम्र के हिसाब से अलग होती हैं. छोटे बच्चों को (4 साल से नीचे) ज़्यादातर क्लोरफेनिरामाइन और फेनिलफ्राइन नाम की दवाएं दी जाती हैं.

ये दवाएं पाउडर (सूखे रूप) में आती हैं, इसलिए उन्हें घोलने के लिए किसी तरल पदार्थ की जरूरत होती है. वहीं बच्चों को दवा देने में आसानी हो इसलिए इसे मीठा और गाढ़ा बनाने के लिए ग्लिसरीन, सोर्बिटॉल या प्रोपिलीन ग्लाइकॉल जैसे सुरक्षित और मीठे सॉल्वेंट मिलाए जाते हैं. ये सॉल्वेंट दवाई को गाढ़ा बनाते हैं ताकि बच्चे इसे आसानी से पी सके और उन्हें कड़वा भी न लगे.

अब दिक्कत तब आती है जब कुछ कंपनियां ज्यादा पैसा कमाने के लिए कफ सिरप में महंगे और सेफ सॉल्वेंट छोड़कर सस्ते और खतरनाक केमिकल डाल देती हैं. ये केमिकल होते हैं:

  • एथिलीन ग्लाइकॉल (EG)
  • डाई-एथिलीन ग्लाइकॉल (DEG)

ये दोनों केमिकल रंगहीन और बिना किसी गंध के होते हैं, जिससे इन्हें ग्लिसरीन के बजाय आसानी से दवा में मिला दिया जाता है. मतलब, देखने में ये बिल्कुल ग्लिसरीन जैसे लगते हैं.

लेकिन ये केमिकल बच्चों के लिए काफी ज़हरीले होते हैं. जब बच्चा ये सिरप पीता है तो ये केमिकल उसके शरीर में घुलकर नुकसान पहुंचाते हैं, खासकर किडनी और नर्व सिस्टम को. ये खून में जहरीला एसिड बनाते हैं, जिससे बच्चा बीमार पड़ जाता है और कई बार उसकी जान भी जा सकती है. 

0.1% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए केमिकल की मात्रा 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार EG और DEG इंडस्ट्री में पेंट, ब्रेक फ्लूड, स्याही आदि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता और शरीर के लिए ये बेहद जहरीले होते हैं. WHO और भारत का सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) दोनों के नियमों के मुताबिक किसी भी दवा में इन दोनों केमिकल की मात्रा 0.1% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. लेकिन कई दवा कंपनियां इस लिमिट का उल्लंघन कर ये केमिकल सिरप में मिलाती हैं.

शरीर पर क्या असर डालते हैं ये जहरीले केमिकल?

जब EG और DEG हमारे शरीर में पहुंचते हैं तो ये टॉक्सिक मेटाबोलाइट्स में बदल जाते हैं. EG से ऑक्सैलिक एसिड और DEG से HEAA नाम का एसिड बनता है. इससे खून में खतरनाक एसिड बढ़ जाता है, जिसे मेटाबॉलिक एसिडोसिस कहते हैं. इससे किडनी और नर्व सिस्टम को बड़ा नुकसान होता है, साथ ही ये केमिकल खून में ऑक्सीजन के फ्लो को भी रोक देते हैं. नतीजतन, शरीर की कोशिकाएं मरने लगती हैं और बच्चे की जान पर बन आती है.

मौतों की सच्चाई

पिछले 3 सालों में भारत और विदेशों में जहरीले कफ सिरप पीने से 300 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. साल 2022 में अफ्रीकी देश गाम्बिया में ही 66 बच्चे मारे गए थे. 

इन देशों में भी इस्तेमाल किए गए जहरीले केमिकल

भारत की कंपनियों के सिरप में ये जहरीले केमिकल पाए गए. लेकिन इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, कैमरून, जम्मू-कश्मीर जैसे जगहों पर भी ऐसे मामले सामने आए.

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में कोल्ड्रिफ नामक कफ सिरप से 32 दिन में 16 बच्चों की मौत हुई, जिनमें से 11 की पुष्टि हो चुकी है. इस सिरप में 48.6% डाईथाइलीन ग्लायकॉल पाया गया.

कंपनियां जहरीला सिरप क्यों बनाती हैं?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस जहरीले पदार्थ के मिलाने की सबसे बड़ी वजह गै मुनाफाखोरी. ग्लिसरीन या प्रोपिलीन ग्लाइकॉल जैसे सेफ केमिकल महंगे होते हैं. जबकि EG और DEG सस्ते इंडस्ट्रियल केमिकल हैं. ये दिखने में बिल्कुल ग्लिसरीन जैसे ही रंगहीन और गंधहीन होते हैं, इसलिए कंपनियां इन्हें मिक्स कर देती हैं ताकि लागत कम हो और मुनाफा ज्यादा हो.

इसके अलावा, कई बार उचित लैब टेस्टिंग न होने के कारण भी इन जहरीले पदार्थों की मौजूदगी को पकड़ा नहीं जाता.  

सरकार क्यों नहीं रोक पा रही है?

इस गंभीर समस्या के बावजूद सरकार के कदम कमजोर क्यों नजर आते हैं, इसकी वजहें तीन बड़ी हैं:

1. आसान लाइसेंसिंग प्रक्रिया: भारत में दवा बनाने वाली लगभग 13,000 कंपनियां हैं. नई कंपनियों को दवा बनाने का लाइसेंस आसानी से मिल जाता है, खासकर अगर दवा का फॉर्मूला पुराना हो. इसके चलते बाजार में कई अनजानी और बिना गुणवत्ता वाले दवाएं आती हैं.

2. मिलीभगत और लापरवाही: राज्य स्तर पर दवा नियंत्रण अधिकारी और ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट दवाओं की क्वालिटी जांचते हैं. लेकिन कई बार अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी या खराब क्वालिटी की दवाओं को मंजूरी मिल जाती है. 

मध्यप्रदेश में अब तक क्या- क्या हुआ 

मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा के बच्चों की मौत के मामले में प्रशासन ने 15 सितंबर को कोल्ड्रिफ सिरप पर बैन लगा दिया. तमिलनाडु सरकार से जांच कराकर डाईथाइलीन ग्लाइकॉल की मौजूदगी की पुष्टि हुई. इसके बाद तमिलनाडु और केरल में भी इस सिरप की बिक्री पर रोक लगाई गई.

4 अक्टूबर को पुलिस ने दवा कंपनी और डॉक्टर प्रवीण सोनी के खिलाफ FIR दर्ज की और डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया. वहीं मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मृत बच्चों के परिवारों को 4-4 लाख रुपये की आर्थिक मदद का ऐलान किया।

राजस्थान में भी इसी तरह के जहरीले सिरप से तीन बच्चों की मौत हुई. वहां केसंस फार्मा कंपनी की 19 दवाओं पर रोक लगाई गई और ड्रग कंट्रोलर को निलंबित कर दिया गया.

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