लिकर से लेकर बायोटेक तक, कैसे किरण मजूमदार शॉ बनीं भारत की ‘बायोटेक क्वीन’

लिकर इंडस्ट्री से करियर शुरू करने वाली किरण मजूमदार शॉ ने संघर्ष और हिम्मत के दम पर बायोकॉन जैसी 50 हजार करोड़ की बायोटेक कंपनी खड़ी की. आज वो भारत की सबसे सफल सेल्फ-मेड वुमन एंटरप्रेन्योर और ‘बायोटेक क्वीन’ के नाम से जानी जाती हैं.

किरण मजूमदार
किरण मजूमदार

रूपक प्रियदर्शी

• 03:54 PM • 23 Oct 2025

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बेंगलुरू की सड़कों पर चल रही लड़ाई सिर्फ ट्रैफिक या गड्ढों की नहीं, बल्कि शहर के भविष्य की जंग बन चुकी है. इस जंग में एक तरफ है कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार, तो दूसरी ओर शहर की शानकिरण मजूमदार शॉ, जो बायोकॉन की फाउंडर और देश की सबसे सफल महिला उद्यमियों में गिनी जाती हैं.

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मामला तब गरमाया जब किरण मजूमदार शॉ ने सोशल मीडिया पर बेंगलुरू की हालत पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, “अगर सरकार सड़कों की मरम्मत नहीं कर सकती तो मैं खुद 10 सड़कें बनवा दूंगी.” 

मजूमदार के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया. डी.के. शिवकुमार ने पलटवार करते हुए कहा कि बीजेपी सरकार के वक्त किसी ने आवाज नहीं उठाई और अब अचानक सवाल क्यों?

यह बहस इतनी बढ़ी कि किरण के कन्नड़ होने तक पर सवाल उठने लगे. कुछ लोगों ने उन्हें 'गुजराती' कहकर निशाना बनाया. मगर दिवाली के अगले दिन तस्वीर बदल गई. दरअसल किरण मजूमदार शॉ डी.के. शिवकुमार के घर पहुंचीं. “दिवाली मिलन” के बहाने हुई इस मुलाकात को दोनों पक्षों के बीच सुलह का संकेत माना गया. बाद में सीएम सिद्धारमैया और मंत्री एम.बी. पाटिल से भी उनकी मुलाकात हुई.

क्या है किरण मजूमदार शॉ की कहानी

आज बायोकॉन की वैल्यू 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है, लेकिन इसकी शुरुआत एक छोटे से गैराज से हुई थी.

किरण का जन्म बेंगलुरू में एक गुजराती परिवार में हुआ. उनके पिता रसेंद्र मजूमदार यूनाइटेड ब्रेवरीज में ब्रूमास्टर थे. यानी वो व्यक्ति जो बीयर बनाने की पूरी प्रक्रिया संभालता है. शायद यही कारण था कि किरण को भी इस फील्ड में दिलचस्पी हुई.

बेंगलुरू यूनिवर्सिटी से जूलॉजी ऑनर्स में ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का सपना देखा, लेकिन मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं मिला. हार मानने के बजाय वो ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न चली गईं, जहां उन्होंने ब्रूइंग (लिकर प्रोडक्शन) में मास्टर्स किया. भारत लौटीं तो हकीकत ने झटका दिया कोई भी ब्रुअरी कंपनी महिला को नौकरी देने के लिए तैयार नहीं थी.

जब नौकरी नहीं मिली तो खुद का रास्ता बनाया

एक आयरिश बिजनेसमैन लेस्ली ऑचिनक्लॉस से मुलाकात ने किरण की किस्मत बदल दी. उनके कहने पर उन्होंने आयरलैंड जाकर बायोकॉन बायोकेमिकल्स में ट्रेनिंग ली और फिर 1978 में सिर्फ 10,000 रुपये के निवेश से बेंगलुरू में अपने घर के गैराज से बायोकॉन इंडिया की शुरुआत की.

कंपनी ने शुरुआत में लिकर इंडस्ट्री के लिए एंजाइम बनाए. जो पपीते के रस से तैयार होते थे और अमेरिका-यूरोप तक एक्सपोर्ट होते थे. बाद में उन्होंने बीयर को क्लियर करने वाले इसिंग्लास का प्रोडक्शन शुरू किया.

लेकिन रास्ता आसान नहीं था. महिला होने की वजह से बैंक लोन नहीं देते थे, कंपनियां बिजनेस करने से कतराती थीं, और प्रोफेशनल स्टाफ भी नहीं मिलता था. मजबूरन उन्होंने दो ट्रैक्टर मैकेनिक को ट्रेनिंग देकर अपने पहले कर्मचारी बनाया.

लगातार संघर्ष के बाद 1989 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. ये उनके कठिन सफर की पहली बड़ी सफलता थी.

लिकर से मेडिसिन तक का सफर

शुरुआती दिनों में बायोकॉन के आयरिश पार्टनर और बाद में यूनिलीवर ने अपने शेयर बेच दिए. तब किरण ने बायोकॉन को पूरी तरह से अपनी कंपनी बना लिया. धीरे-धीरे उन्होंने लिकर इंडस्ट्री छोड़कर मेडिसिन की दुनिया में कदम रखा.

आज बायोकॉन भारत की पहली ऐसी कंपनी है जिसने ह्यूमन इंसुलिन बनाया. उसकी दवाइयां कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारियों के इलाज में 120 देशों में इस्तेमाल होती हैं.

पर्सनल लाइफ 

किरण की मुलाकात स्कॉटलैंड के बिजनेसमैन जॉन शॉ से एक फंक्शन में हुई थी. पहले दोनों के बीच प्रोफेशनल रिश्ता था, फिर दोस्ती और 1998 में शादी हो गई. जॉन ने अपनी कंपनी से रिटायर होकर बायोकॉन जॉइन कर ली और वाइस चेयरमैन बने.

जब कंपनी मुश्किल में थी, जॉन ने अपनी निजी पूंजी लगाकर किरण की मदद की ताकि वह यूनिलीवर से बायोकॉन के शेयर वापस खरीद सकें. उनके सहयोग से बायोकॉन आज एक ग्लोबल ब्रांड बन गया.

दुर्भाग्य से जॉन शॉ का कुछ साल पहले निधन हो गया. किरण अब 72 साल की हैं, और उनके बाद बायोकॉन को कौन संभालेगा, यह सवाल अब भी खुला है.

कंपनी बेचने की उठी थी अफवाह

बीते साल ऐसी खबरें आईं कि किरण मजूमदार शॉ अपनी कंपनी बेच सकती हैं, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कहा कि बायोकॉन मैंने बेचने के लिए नहीं बनाई है

आज किरण मजूमदार शॉ सिर्फ एक सफल बिजनेसवुमन नहीं, बल्कि उन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जिन्होंने सपने देखने की हिम्मत की. शराब के फॉर्मूले से शुरू हुआ उनका सफर उन्हें दुनिया की बायोटेक क्वीन बना गया.

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