नेपाल में युवाओं के आक्रामक आंदोलन के दौरान 'Gen-Z' शब्द काफी पापुलर हुआ. लोग पूछने लगे...ये जेन-जी क्या है? ये ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस आंदोलन में उन युवाओं ने जिन्हें Gen-Z कहा जा रहा है... सड़क पर वित्त मंत्री को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा. पूर्व PM झालानाथ खनाल की पत्नी को जिंदा जला दिया गया, पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी की कुटाई कर दी.
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संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, राजनैतिक दलों के दफ्तर, प्रधानमंत्री, मंत्रियों के आवास और काठमांडू का सिंह दरबार समेत कई बल्डिंग्स को आग के हवाले कर दिया. काठमांडू के आसमान में धुआं-धुआं हो गया. महज 2 दिन में 22 मौतें हो गईं. केपी ओली ने प्रधानमंत्री पद पर इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति ने भी त्यागपत्र सौंप दिया. अब कमान सेना के पास है.
ये सब कुछ किया है 20-25 एज ग्रुप के लड़के-लड़कियों ने जिन्हें Gen-Z कहा जा रहा है. राजशाही खत्म हुई थी, तब 19 दिन आंदोलन चला था. तब भी इतनी मौतें नहीं हुई थीं, जितनी महज 2 दिनों में हो गईं. इतना उग्र आंदोलन की पूरी दुनिया की निगाहें नेपाल पर टिकी हुई हैं. नेपाल में हुई इस क्रांति से खास एज ग्रुप वाले युवाओं (Gen-Z) पर छिड़ गई. कोई इनका सपोर्ट करता दिख रहा है तो कई विरोध. कमोबेश यही हाल सोशल मीडिया पर भी है. आइए समझे है इस एज ग्रुप के बारे में और ये भी जानते हैं कि इन्हें 'Gen-Z' क्यों कहा जा रहा है?
Gen-Z नाम क्यों पड़ा
Gen-Z यानी जेनरेशन Z या जेनरेशन-G. ये वो जेनरेशन है जिसे डिजिटल दुनिया की संतानें कहा जा रहा है. जो होश संभालते ही स्मार्ट फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया और रील्स के साथ ये बड़े हुए हैं. इस एज ग्रुप में 1997 से लेकर 2012-15 के एज ग्रुप को रखा गया है.
बाकी लोगों से कैसे अलग हैं ये?
ये युवा TikTok, Instagram, YouTube और ऑनलाइन गेमिंग के जरिए दुनिया से जुड़े रहते हैं. जेंडर इक्वैलिटी, क्लाइमेट चेंज, जस्टिस, एलजीबीटीक्यू+ जैसे मुद्दों पर खुलकर बोलते हैं. फ्रीलांसिंग, गिग इकॉनमी, क्रिप्टो, स्टार्टअप, सोशल मीडिया जैसे गैरपारंपरिक इनकम सोर्स में दिलचस्पी लेती है.
भारत-नेपाल में इनके प्रति सोच अलग
अमेरिका-यूरोप में जहां जेन-जी को टेक सेवी, आउट स्पोकन, सोशली प्रोग्रेसिव माना जाता है वहीं एशिया में इन्हें सोशल मीडिया एडिक्टेड, कॅरियर एंक्सस, कल्चरल रिबेल कहा जा रहा है. आजकल की कंपनियों के लिए ये एज ग्रुप सबसे बड़ा कंज्यूमर ग्रुप और ट्रेंड सेटर बन चुकी है.
भारत-नेपाल में Gen Z और सोशल मीडिया
- ये एज ग्रुप रोजाना 4-6 घंटे सोशल मीडिया पर बिताता है.
- भारत में Instagram, YouTube और WhatsApp इनके बीच पॉपुलर हैं.
- नेपाल में TikTok और Facebook सबसे बड़े प्लेटफॉर्म हैं.
- नेपाल में एक बड़ा हिस्सा TikTok पर लाइक, फॉलो और कमेंट को ही स्टेटस सिंबल मानता है.
- पर्सनल आइडेंटिटी अब सोशल मीडिया प्रोफाइल से तय होने लगी है.
- फॉलोअर्स की संख्या और वायरल वीडियो युवाओं की सफलता का मानक बन गया है.
कमाई का साधन भी
- भारत में लाखों Gen जी YouTube, Insta reels, freelancing और e-sports से कमाई कर रहे हैं.
- नेपाल में भी TikTok और Facebook reels से माइक्रो-इन्फ्लुएंसर कल्चर तेजी से बढ़ रहा है.
- नेपाल में जेन जी के आंकड़े
- डिजिटल सलाहकार फर्म केपियोस के मुताबिक 2025 की शुरुआत में नेपाल में 4.3 मिलियन एक्टिव सोशल मीडिया यूजर्स थे. ये देश की लगभग आधी आबादी हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में करीब 2.47 अरब हैं. एक दूसरी रिपोर्ट बताती है 94 फीसदी जेनजी रोजाना सोशल मीडिया पर समय बिताती है. ये समय औसतन 3-4 घंटे होता है.
सोशल मीडिया बढ़ा रहा डिप्रेशन-एंग्जाइटी ?
McKinsey Health Institute dh 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक 26 देशों में 42,000 लोगों पर सर्वे के बाद पता चलता है कि अन्य पीढ़ियों की बजाय Gen Z में सोशल मीडिया से नकारात्मक भावनाएं, अवसाद, एंग्जाइटी जैसी समस्या ज्यादा है. US सर्जन जनरल एडवाइजरी ऑन यूथ मेंटल हेल्थ की एक रिपोर्ट बताती है कि 2 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया उपयोग वाले किशोरों में डिप्रेशन और एंग्जायटी की संभावना दो गुना ज्यादा होती है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी बताती है कि 60% किशोर (उम्र 16–18 वर्ष) सोशल मीडिया पर रोजाना 2–4 घंटे बिताते हैं. इनमें एंग्जायटी और डिप्रेशन के उच्च स्तर पाया गया है खासतौर से लड़कियों में.
एक तरफ माना जा रहा है कि Gen Z क्रिएटिव, डिजिटल स्किल्स वाले और ग्लोबल कनेक्टिविटी के साथ सबसे पावरफुल जेनरेशन बन सकती है, वहीं अगर वर्चुअल लाइफ और असली लाइफ का बैलेंस बिगड़ा तो डिप्रेशन, बेरोजगारी के बीच सोशल इन्हें विद्रोही बना सकता है.
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