दिल्ली में हाईकोर्ट के जज के ऑफिशियल रेंसीडेंस में अनकाउंटेट कैश मिला. करप्शन का बड़ा दाग लगा. दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में पनिशमेंट पोस्टिंग हुई. जज साहब का रुतबा ऐसा कि एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई. एक वकील साहब मैथ्यूज नेदुमपारा चीफ जस्टिस बीआर गवई की अदालत में तीसरी बार याचिका लेकर पहुंच गए कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर होनी चाहिए. याचिकाकर्ता ने सोचा कि महाभियोग की चौखट तक पहुंचे जज को क्या ही सम्मान देना.
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चीफ जस्टिस के सामने जस्टिस वर्मा को केवल वर्मा कहकर संबोधित कर दिया. फिर क्या था. चीफ जस्टिस गवई बिगड़ गए. कहा क्या जस्टिस वर्मा आपके दोस्त हैं? वो अभी भी हाईकोर्ट के जज हैं. आप इस तरह कैसे संबोधित कर सकते हैं? सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता भी सहमत हुए कि जब तक कोई जज पद पर है, तब तक सम्मानजनक संबोधन होना चाहिए.
भारत के जस्टिस सिस्टम का बहुत पुराना प्रिंसिपल है-Innocent until proven guilty. जस्टिस वर्मा के खिलाफ कोर्ट कचहरी में तो आज तक केस नहीं चला, लेकिन हाई लेवल जांच में दोषी साबित हो चुके हैं. हाईकोर्ट जज हैं इसलिए दोषी साबित होने पर भी पद पर बने हैं. पद पर इसलिए बने हैं क्योंकि सिस्टम ऐसा है कि लाख ख्वाहिशों के बाद भी कोई पद से हटा नहीं पा रहा. जज वर्मा भी हटने के लिए तैयार नहीं हैं.
जजों की नियुक्ति की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का कॉलेजियम करता है. सरकार फाइल बढ़ाती तो राष्ट्रपति के साइन से नियुक्ति होती है, लेकिन एक बार जज बन जाए तो राष्ट्रपति, पीएम, चीफ जस्टिस भी हटा नहीं सकते. ये अधिकार सिर्फ और सिर्फ संसद के पास है. सासद में कानून बनाने के लिए बिल पास कराने के लिए बहुमत की जरूरत पड़ती है. जज को हटाने के लिए महाभियोग पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत जरूरी होता है.
543 की लोकसभा में ये नंबर करीब 362 का बनता है. मतलब जब जस्टिस वर्मा के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव पास होना होगा तो कम से कम 362 सांसदों की मंजूरी जरूरी होगी. अगर महाभियोग राज्यसभा में आया तो 245 में से कम से कम 163 सांसदों की मंजूरी चाहिए होगी.
तो क्या जस्टिस वर्मा का बचना तय है?
लोकसभा में सरकार के पास अपने 293 सांसद हैं, विपक्ष के 234. राज्यसभा में सरकार के 133 सांसद हैं. विपक्ष के 107 सांसद हैं. जब तक विपक्ष के सांसद सरकार के साथ नहीं होंगे. सरकार जस्टिस यशवंत वर्मा को महाभियोग के जरिए हटाने का प्रस्ताव पारित करा नहीं पाएगी. सरकार का दावा है कि विपक्ष सरकार का साथ देने वाला है. अगर इस नंबर में कमी बेसी हुई तो जज का बचना तय है.
जज को हटाने के लिए महाभियोग ही ऑप्शन है
जज को हटाने की प्रक्रिया Judges Inquiry Act में लिखी हुई है जिसमें महाभियोग ही ऑप्शन है. जज को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव का पहला नियम है कि लोकसभा के 100 और राज्यसभा के 50 सांसदों का प्रस्ताव के पक्ष में साइन करना जरूरी है. सरकार सिगनेचर ड्राइव का दावा कर रही है. सांसदों के साइन करने के बाद महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा चेयरमैन के पास जाएगा. महाभियोग या तो लोकसभा में चलेगा या राज्यसभा में.
लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा चेयरमैन एक और तीन सदस्यों की जांच कमेटी बनाएंगे जिसके एक सदस्य सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक distinguished jurist होंगे. कमेटी तीन महीने की जांच करती है. अगर समिति ने पाया कि आरोप बेबुनियाद है तो मामला खत्म, नहीं तो जांच रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों पर संसद में बहस होती है. इस प्रक्रिया में आरोपी जज को सफाई देने का मौका मिलता है. नियम ये भी है जिस संसद सत्र में प्रस्ताव पेश किया उसी में फैसला हो जाना चाहिए.
राष्ट्रपति की मंजूरी भी जरूरी
सुप्रीम कोर्ट की एक इंटरनल कमेटी जस्टिस वर्मा केस की जांच कर चुकी है. सरकार और संसद में ये मंथन चल रहा है कि ऐसे में ये तीन मेंबर कमेटी वाला प्रोसेस चलाने की जरूरत है या नहीं. अगर कमेटी बनती है तो इसमें कम से कम और तीन महीने लगेंगे. महाभियोग के लिए एक नियम ये है कि जिस संसद सत्र में प्रस्ताव पेश हुआ उसी में उस पर फैसला हो जाना चाहिए. महाभियोग प्रस्ताव तब पास होगा जब दो तिहाई बहुमत से मंजूर हो. संसद से पास होकर महाभियोग प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जज को हटाया जा सकता है.
Judges Inquiry Act में जज को हटाने के नियम
- संसद से दो तिहाई बहुमत से महाभियोग पास होना जरूरी.
- दो तिहाई बहुमत नहीं तो महाभियोग फेल.
- लोकसभा के 100, राज्यसभा के 50 सांसदों के प्रस्ताव जरूरी.
- महाभियोग प्रस्ताव मंजूर करना स्पीकर/चेयरमैन के हाथ में.
- संसद से तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनेगी.
- कमेटी में SC जज, हाईकोर्ट के CJI, संविधान एक्सपर्ट सदस्य.
- कमेटी के पास 3 महीने जांच का समय.
- जज को अपना पक्ष रखने का मौका.
- महाभियोग की प्रक्रिया भी संसद के उसी सत्र में पूरी करनी होगी जिसमें ये प्रस्ताव लाया जाएगा.
जस्टिस यशवंत वर्मा को समझ आ रहा होगा कि जो कुछ चल रहा है उसमें बचना आसान नहीं. चीफ जस्टिस रहते हुए संजीव खन्ना ने इस्तीफा देने के लिए कहा था लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा अड़े हुए हैं कि चाहे कुछ हो जाए, न इस्तीफा नहीं देना है, न वीआरएस लेना है. इसी से आज महाभियोग की नौबत आई है.
महाभियोग की प्रक्रिया जस्टिस वर्मा के करियर के लिए घातक भी है और इसमें बच जाने की संजीवनी भी छिपी है. भारत में जज को हटाने वाले महाभियोग का इतिहास कुछ ऐसा रहा है, हो सकता है उसे देख-समझकर जस्टिस यशवंत वर्मा ने भी बचने के लिए अड़ जाने की स्ट्रैटजी अपनाई हो.
भारत में जज को हटाने के लिए एक ही हथियार है महाभियोग. अब तक 6 बार इस हथियार को चलाया गया, लेकिन एक भी जज महाभियोग से हटाया नहीं जा सका. सबसे चर्चित दो जजेस के केस रहे. जस्टिस रामास्वामी महाभियोग के बाद भी सरवाइव कर गए. जस्टिस सौमित्र सेन ने बिलकुल 11th आवर पर जलालत से बचने के लिए इस्तीफा देकर महाभियोग टाल दिया. 1970 में सुप्रीम कोर्ट के जज रहे जेसी शाह के खिलाफ करीब 200 सांसदों का महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा स्पीकर जीएस ढिल्लों ने स्वीकार ही नहीं किया था.
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