देश आजाद हुआ और भारतीय वायुसेना को पहला 'ध्वनि की गति' से भी से दोगुनी तेजी से उड़ने वाला फाइटर जेट मिला. रुतबा ऐसा कि पूरे एशिया में इसकी धाक थी. पश्चिमी देशों के मुकाबले किफायती, हल्का और दमदार, छोटा आकार और हवाई कलाबाजियों के मास्टर को दुनिया MiG-21 के नाम से जानती है...लेकिन इसका नाम है- 'मिकोयन ग्युरेविच'.
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साल 1963...देश के लिए बेहद गर्व का पल था जब पहला सुपर सोनिक लड़ाकू विमान आया था. जब ये इंडियन एयरफोर्स में शामिल हुआ तब इसे एशिया के सबसे तेज और अत्याधुनिक एयरक्रॉफ्ट का दर्जा मिला. इसने कई युद्ध देखे...युद्ध में अपने शौर्य की वीरगाथाएं लिखी.
उम्र बीता तो तोहमत भी लगे
उम्र बीतता गया...टेक्नोलॉजी बदली और मिग धीरे-धीरे बुजुर्ग हो चला. इसकी तकनीक पुरानी कही जाने लगी...दुर्घटनाएं होने लगीं और फिर बूढ़े हो रहे मिग को 'फ्लाइंग कौफिन' और 'विडो मेकर' कहा जाने लगा. फिर भी मिग ने हार नहीं मानी और 2019 में बालाकोट स्ट्राइक तक दुश्मन देश के सीने पर बमबारी करता रहा. अब ये 60 साल का हो गया है. आसमान में आखिरी और उन्मुक्त उड़ानों के बाद इतिहास के पन्नों पर चस्पा होने वाला है. यानी अब ये रिटायर हो रहा है.
इस एक्सप्लेनर में हम आपको भारत में MiG-21 के आने की पूरी कहानी और शौर्य गाथा से लेकर इसपर लगने वाले कलंक तक की कहानी को तफ्सील से बता रहे हैं....
मिग के बनने की कहानी
बात 1950 के दशक की है. तब सोवियत संघ को एक हल्का, तेज और सुपरसोनिक फाइटर जेट की जरूरत थी. अमेरिकी F-104 स्टार फाइटर जैसी तेज विमानों को देखते हुए सोवियत इंजीनियरों ने अपने विमानन उद्योग को चुनौती दी. मिकोयान-गुरेविच डिजाइन ब्यूरो ने इसका डिजाइन तैयार किया.
MiG-21 की सबसे खास बात थी डेल्टा विंग जो सुपरसोनिक उड़ान और हाई-ऑल्टिट्यूड स्टेबिलिटी के लिए उस वक्त की जरूरी थी. शुरुआती परीक्षणों में इंजीनियरों को एयरोडायनामिक के अस्थिर होने, इंजन ओवरहीटिंग और कंट्रोल सिस्टम में प्रॉब्लम मिली. इसे सुधारकर 1959 तक पहला प्रोटोटाइप पूरी तरह से तैयार कर उत्पादन शुरू किया गया.
ध्वनि की गति से भी दोगुना तेज उड़ने वाले मिग ने सबके दिलों को जीत लिया. उस वक्त से दुनिया का सबसे ज्यादा निर्यात होने वाला सुपरसोनिक जेट साबित हुआ. लगभग 60 देशों ने इस सुपरसोनिक जेट लड़ाकू विमान को उड़ाया.
भारत में कैसे आया MiG-21?
देश के आजाद होने के बाद 1950 के दशक में एक हल्का, तेज और भरोसेमंद लड़ाकू विमान की जरूरत हुई. भारत उस समय पश्चिमी देशों (ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका) से भी लड़ाकू विमान खरीदने की कोशिश कर रहा था. हालांकि 1950 के दशक के अंत तक पश्चिमी सप्लायर्स की शर्तें कड़ी और महंगी हो गईं. तब 1958-59 में भारत ने सोवियत संघ (USSR) के साथ बातचीत शुरू की. सोवियत संघ ने ना केवल MiG-21 विमान सप्लाई करने की पेशकश की बल्कि भारत को लाइसेंस प्रोडक्शन की अनुमति भी दे दी.
- 1963 में पहली बार MiG-21 भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ.
- सोवियत यूनियन से लाइसेंस प्रोडक्शन का अधिकार भी मिला.
- बाद में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) में मिग-21 का निर्माण होने लगा.
मिग-21 ने जब दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए
जिस काम के लिए मिग को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था उसने वो काम कर करना शुरू कर दिया. 1965 का युद्ध हुआ. मिग ने पाकिस्तानी विमानों को कड़ी टक्कर दी. हालांकि इस युद्ध में इसका सीमित इस्तेमाल किया गया. 1971 के भारत-पाक युद्ध में MiG-21 ने पाकिस्तान के कई साबर और स्टारफाइटर जेट्स को मार गिराया.
IAF का बैकबोन बना मिग
इन लड़ाइयों में मिग की ताकत को पूरी दुनिया ने देखा. ये एयफोर्स का बैकबोन कहा जाने लगा. 1998 में कारगिल वार और 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक में भी मिग ने दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए.
सैकड़ों दुर्घटनाएं हुईं...विडो मेकर बना मिग
फर्स्टपोर्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1963 से अब तक सैकड़ों दुर्घटनाएं हुईं. पिछले पांच दशकों में 400 से अधिक क्रैश हुए और 200 से ज्यादा पायलटों की मौत हुई. तकनीकी खामियां, पुरानी हो चुकी तकनीक और ट्रेनिंग के दौरान मुश्किल मैन्युवरिंग, हादसों की बड़ी वजह रहीं. फिर...मिग को फ्लाइंग कौफीन, विडो मेकर का तमगा मिलने लगा.
नई टेक्नोलॉजी ने जगह ली
नई तकनीक और चौथी-पांचवीं पीढ़ी के जेट्स (Su-30MKI, राफेल, और तेजस) ने इसकी जगह ले ली. मेंटेनेंस और सुरक्षा चुनौतियों के कारण वायुसेना अब इसे हटाना चाहती है. ये जेट 26 सितंबर 2025 को रिटायर होने जा रहा है, और इसके साथ भारतीय वायुसेना का एक 62 वर्षों के स्वर्णिम अध्याय का अंत हो जाएगा.
इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक मिग-21 विमानों की सेवानिवृत्ति के साथ, भारतीय वायु सेना की लड़ाकू क्षमता घटकर 29 स्क्वाड्रन रह जाएगी, जो 1960 के दशक के बाद से सबसे कम है. यह संख्या 1965 के युद्ध के दौरान की संख्या से भी कम है और भारतीय वायु सेना की स्वीकृत 42 स्क्वाड्रन की संख्या से भी कम है.
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