सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार यानी 17 सितंबर को एक रक्षा समझौते हस्ताक्षर किया है. समझौते में कहा गया- 'किसी एक देश पर हमला दोनों देश पर माना जाएगा.' न्यूज रॉयटर के मुताबिक वहां के अधिकार का कहना है कि इस डील व्यापक है जिसमें सभी तरह के हथियार हैं. यानी परमाणु हथियार भी शामिल हैं. यानी सऊदी अरब जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है.
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इस समझौते ने वैश्विक परिदृश्य पर एक अलग चर्चा छेड़ दी है. इस समझौते के पीछे कई सवाल हैं जिनका जवाब खोजा जा रहा है. अचानक ये समझौता क्यों हुआ? सऊदी अरब को इस समझौते से क्या फायदा होगा? पाकिस्तान को इस समझौते का कितना फायदा होगा और और एक बड़ा सवाल...भारत के संदर्भ में...इसका भारत और दक्षिण एशिया पर क्या असर होगा? सवाल इसलिए भी क्योंकि...
भारत-पाक में तनाव जो अभी जारी है....
अप्रैल 2025 में पहलगाम अटैक के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च कर पाकिस्तान को इस आतंकवाद का करारा जवाब दिया था. पाकिस्तानी की नापाक हरकत को भारत वैश्विक मंचों पर भी ले गया और वहां खूब किरकिरी हुई. चीन में हुए SCO शिखर सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही खूब घेरा.
भारत और पाक के बीच रिश्ते अभी भी तनावपूर्ण हैं. क्रिकेट पिच पर भले ही दोनों देश एशिया कप में आमने-सामने हुए पर वहां भी हैंडशेक विवाद हो गया. अब सवाल ये है कि आतंकवाद को पनाह देने वाले पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब के समझौता का भारत पर कितना असर होगा. इस एक्सप्लेनर में हम इसी को समझते हैं.
ये डील अचानक क्यों हुई?
सऊदी अरब के प्रिंस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को न्यौता भेजकर इस डील की पहल की. सवाल ये है कि सऊदी ने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई? इसके पीछे इजराइल है जो इस्मालिक देशों के टेंशन बना हुआ है. उसने महज 72 घंटे में 6 इस्लामिक देशों पर अटैक किया. इसमें सैकड़ों लोग मारे गए. बात यहीं खत्म नहीं हुई...इजराइल के कतर की राजधानी दोहा पर अटैक किया तो इस्लामिक देशों के कान खड़े हो गए. वजह है यहां अमेरिकी सेंट्रल कमांड का फारवर्ड हेडक्वार्टर और मिडिल ईस्ट का सबसे बड़ा मिलिट्री बेस है.
अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर अब भरोसा नहीं?
अमेरिका अपने मिलिट्री बेस के जरिए कतर को सुरक्षा की गारंटी देता है. इस हमले से अमेरिकी 'गारंटी' से इस्लामिक राष्ट्रों का भरोसा उठ गया. आनन-फानन में15 से 16 सितंबर के बीच कतर में 50 इस्लामिक देशों की मीटिंग बुलाई गई. इस बैठक में इजराइल का मुकाबला करने को लेकर खूब मंथन हुआ और आखिरकार ईस्लामिक नाटो बनाने की प्रस्ताव पर मुहर लगी.
जियो पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की मानें तो सऊदी अरब को कहीं न कहीं लग रहा है कि इजराइल का अगला निशाना वो खुद हो सकता है. इसी वजह से उसने पाकिस्तान के साथ ये डील की है. चूंकि सऊदी अरब का पाकिस्तान के साथ पुराने रिश्ते भी हैं.
यमन के हूथी विद्रोही भी सऊदी के लिए टेंशन
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से बताया गया है कि सऊदी अरब की एक और चुनौती यमन के हूथी विद्रोही हैं, जो अक्सर सऊदी पर मिसाइल हमले करते हैं.
ऐसे हालात में "एक पर हमला यानी दोनों पर हमला" की शर्त के तहत पाकिस्तानी सैनिकों को रियाद का साथ देना पड़ सकता है. यह नया नहीं है. 1967 से पाकिस्तान 8,000 से ज्यादा सऊदी सैनिकों को ट्रेनिंग दे चुका है और कई बार अपनी सेना को सऊदी भेज चुका है. हालांकि, 2015 में यमन युद्ध में सेना भेजने से इनकार करने पर दोनों देशों के रिश्तों में खटास भी आई थी.
कुल पाकिस्तान के साथ इस रक्षा समझौते से सऊदी अरब इजराइल के खिलाफ पाकिस्तान के परमाणु हथियार के जरिए अपने लिए एक शील्ड बनाने की कोशिश करेगा और यमन के हूथी विद्रोहियों से निपटने के लिए उसके सेना का इस्तेमाल कर सकता है.
इस डील से पाकिस्तान को कितना फायदा?
विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान की सबसे बड़ी जरूरत 'पैसा और हथियार' है. हथियार तो अमेरिका, चीन और तुर्की से भी उसे मिल रहे हैं पर मामला इकोनॉमिक क्राइसिस का है जिससे निपटने में सऊदी अरब से बड़ी मदद मिल सकती है. दूसरी तरफ दक्षिण एशिया में पाकिस्तान की धाक बढ़ेगी क्योंकि पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर के बाद से वैश्विक पटल पर उसकी फजीहत हुई है.
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल इसे अलग नजरिए से देखते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया X पर भारत के रिएक्शन को रिट्वीट करते हुए लिखा- 'इस समझौते का मतलब है कि सऊदी अरब का पैसा पाकिस्तान को की सेना को मज़बूत करने के लिए होगा. पाकिस्तान का रणनीतिक रूप से पुनर्वास किया जा रहा है. इसकी शुरुआत ट्रंप द्वारा पाकिस्तानी सेना प्रमुख को खुश करने से हुई थी. पाकिस्तान खुलेआम अरब देशों को इज़राइल के खिलाफ परमाणु सुरक्षा की पेशकश कर रहा है.'
भारत के लिए इस समझौते के क्या मायने हैं?
एक्सपर्ट्स और भू-राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस समझौते का मतलब यह नहीं है कि सऊदी अरब पाकिस्तान के लिए भारत के साथ युद्ध करेगा. जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है, और घोषणा का समय भी अलग है.
एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया, "यह समझौता किसी विशिष्ट देश या विशिष्ट घटनाओं की प्रतिक्रिया नहीं है... भारत के साथ हमारे संबंध पहले से कहीं अधिक मज़बूत हैं. हम इस संबंध को आगे बढ़ाते रहेंगे और क्षेत्रीय शांति में हर संभव योगदान देने का प्रयास करेंगे."
भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार
सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वहीं भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वित्त वर्ष 2024-25 में, द्विपक्षीय व्यापार 41.88 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध हैं.
पाकिस्तान और सऊदी के कितना व्यापार
दूसरी ओर, पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच व्यापार मुश्किल से 3-4 अरब अमेरिकी डॉलर का है. इसलिए, यह संभावना नहीं है कि सऊदी अरब भारत के खिलाफ जाएगा.
एक भू-राजनीतिक रणनीतिकार, वेलिना चाकारोवा ने कहा कि यह दो दक्षिण एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के बीच सऊदी अरब के संतुलन को दर्शाता है.
इस समझौते पर अलग नजरिया भी
BBC से बातचीत के दौरान सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे तलमीज अहमद का मानना है कि यह भारत के लिए बहुत बड़ा झटका है नहीं है. हालांकि जब वे इसे लंबी अवधि में देखते हैं तो ये भारत के लिए इसे झटका मानते हैं. उनका कहना है कि खाड़ी के देश अपनी सुरक्षा के लिए पाकिस्तान, तुर्की और चीन की तरफ देख रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी तीनों देश कहीं न कहीं भारत के खिलाफ नजर आए.
दक्षिण एशिया के जियो पॉलिटिल एक्सपर्ट माइकल कुगलमैन इस समझौते को भारत के संदर्भ में अलग नजरिए से देखते हैं. सोशल मीडिया X पर लिखते हैं- 'पाकिस्तान ने न केवल एक नया पारस्परिक रक्षा समझौता किया है, बल्कि उसने एक ऐसे करीबी सहयोगी के साथ भी समझौता किया है जो भारत का एक शीर्ष सहयोगी भी है. यह समझौता भारत को पाकिस्तान पर हमला करने से नहीं रोकेगा लेकिन तीन प्रमुख शक्तियों - चीन, तुर्की और अब सऊदी अरब के पूरी तरह से पाकिस्तान के पक्ष में होने से वो बहुत अच्छी स्थिति में है.'
समझौते पर भारत का रिएक्शन
सऊदी अरब और पाकिस्तान के रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार को इसकी जानकारी पहले से थी. भारत ने गुरुवार को कहा कि वह इस घटनाक्रम पर कड़ी नजर रख रहा है और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और सभी क्षेत्रों में व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा.
निष्कर्ष
देखा जाए तो ये समझौता पाकिस्तान को मध्य पूर्व में सऊदी अरब की क्षेत्रीय लड़ाइयों से जोड़े रखने के लिए है जिसका सीधा फायदा सऊदी अरब को मिलेगा. वहीं भारत-पाकिस्तान के तनाव के मामले में सऊदी अरब से इस गहरी दोस्ती पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में मजबूत बनाने का काम कर सकती है. 1947 से अब तक के इतिहास पर नजर डालें तो सऊदी अरब ने हमेशा पाकिस्तान का ही फेवर लिया है चाहे भारत-पाकिस्तान के 1965 के वार से लेकर कारगिल युद्ध तक...सऊदी अरब ने पाकिस्तान से ही कंधा मिलाया. हालांकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सऊदी के विदेश मंत्री ने भारत और पाक में दौरा कर कहीं न कहीं शांति की पहल की. चूंकि भारत के इजराइल से अच्छे रिश्ते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सऊदी अरब सीधे भारत-पाक टेंशन में कूदने की बजाय शांति की पहल करेगा. वहीं दोस्ती निभाने के लिए पर्दे के पीछे से हथियार और पैसे का सपोर्ट पाकिस्तान को दे सकता है जैसे चीन करता आया है. कुल मिलाकर ये समझौता पाकिस्तान को ज्यादा फायदा पहुंचाने के बजाय मध्य पूर्व के लंबे संघर्षों में उसे उलझाकर रख सकता है.
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