Sonia Gandhi Viral Truth:इटली में जन्मीं सोनिया गांधी राजीव गांधी से शादी करके देश के सबसे ताकतवर परिवार की बहू तो बन गईं, लेकिन राजनीति को दिल से स्वीकार नहीं कर पाईं. कहा जाता है कि वो तो राजीव गांधी के भी राजनीति में आने के खिलाफ थीं. चाहने और होने में बहुत फर्क होता है. राजीव गांधी से शादी सोनिया गांधी की डेस्टिनी थी. राजनीति भी सोनिया गांधी की डेस्टिनी बनी. जैसे मां के जाने के बाद राजीव गांधी एक्सीडेंटली राजनीति में आए वैसे ही राजीव गांधी के जाने के बाद सोनिया गांधी को भी राजनीति में आना ही पड़ा. इस बात को 25 साल से ज्यादा हो चुके हैं.
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चर्चित चेहरा का ये एपिसोड Sonia Gandhi के बारे में है जिनका जन्मदिन है. 1998 में जब सोनिया गांधी राजनीति में आईं, कांग्रेस अध्यक्ष बनीं, पहला चुनाव लड़ा तब 52 साल की थीं. आज 78 साल की हो गईं. इन 26 सालों में सोनिया गांधी का राजनीतिक मुकाम इतना ऊपर उठ चुका है कि वो अब सिर्फ कांग्रेस पार्टी की नेता नहीं, हर पार्टी के लिए सम्मानित हैं. विपक्ष की राजनीति में तो उनका दर्जा राजमाता जैसा है. सब कह रहे हैं Happy Birthday सोनियाजी. हमारी तरफ से भी जन्मदिन की शुभकामनाएं. हर जन्मदिन एक किस्सा बार-बार याद दिलाता है कि ये वही सोनिया गांधी हैं जो प्रधानमंत्री बन सकती थीं, लेकिन बनी नहीं.
1998 में सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली तब पार्टी ढलान पर थी. कई दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस 26 परसेंट वोट शेयर और 141 सीटों वाली पार्टी बन चुकी थी. कांग्रेस की सेंटर स्टेज वाली पोजिशन बीजेपी ले रही थी. बीजेपी के Atal Bihari Vajpayee प्रधानमंत्री बन गए थे. राजनीति में आते ही सोनिया गांधी को झटका लगा जब बीजेपी ने 1998 और 1999 के चुनावों के बाद सरकार बना ली. 1999 से 2004 के बीच BJP-NDA, अटल-आडवाणी ने इंडिया शाइनिंग का ऐसा शोर मचाया कि कांग्रेस बहुत पीछे छूटने लगी. कहीं किसी को कल्पना भी नहीं थी कि बीजेपी हार भी सकती है.
2004 का लोकसभा चुनाव बड़ा टर्निंग प्वाइंट बना
2004 के लोकसभा चुनाव से सोनिया गांधी का दौर शुरू हुआ. उस चुनाव में न तो मनमोहन सिंह कहीं थे, न राहुल गांधी, प्रियंका गांधी. फेस भी सोनिया गांधी थीं, लीडर भी सोनिया गांधी थीं, इलेक्शन स्ट्रैटजी भी उन्हीं की थी. सोनिया गांधी ने अकेले बीजेपी के भारत उदय विजय रथ को रोकने का करिश्मा किया था. अछूत मानने वाली पार्टियां मैग्नेट की तरह वापस कांग्रेस से चिपकने लगीं. सबसे बड़ा यूटर्न कांग्रेस की प्रचंड विरोधी लेफ्ट पार्टियों ने लिया था.
राजीव गांधी से शादी के बाद सोनिया गांधी तेजी से भारतीयता में ढलीं. उतनी ही तेजी से भारतीय राजनीति में भी ढलने लगीं. विदेशी मूल की सोनिया गांधी का इतना भारतीय बनना बीजेपी को चुभने लगा. कांग्रेस के अंदर शरद पवार, पीए संगमा, तारिक अनवर भी सोनिया को अपना अध्यक्ष कबूल नहीं कर पाए. सोनिया गांधी के कांग्रेस में आते ही पार्टी में बड़ी टूट हुई.
सुषमा बोलीं- सोनिया PM बनीं तो केश कटवा लूंगी
फिर भी सोनिया गांधी की राजनीति का रथ किसी के रोके नहीं रूक रहा था. तब बीजेपी ने भी विदेशी मूल का मुद्दा पकड़ लिया. सोनिया गांधी के विरोध की फेस बन गईं बीजेपी नेता सुषमा स्वराज. सुषमा स्वराज 1999 में सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी से चुनाव लड़ने चली गईं. प्रतिज्ञा ले ली कि विदेशी मूल की सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वो केश कटवा लेंगी, भिक्षुक बन जाएंगी. सफेद वस्त्र धारण करेंगी. फर्श पर लेटेंगी, सिर्फ सूखे चने खाएंगी. ऐसा माना गया कि सुषमा स्वराज की प्रतिज्ञा ने बहुत दूर तक सोनिया की राजनीति का पीछा किया.
UPA की सरकार बनी तो सोनिया का PM के लिए आया
2004 के लोकसभा चुनाव तक सोनिया गांधी के विदेशी मूल वाला मुद्दा आसमान से गिरकर जमीन पर आ चुका था. कांग्रेस चुनाव जीती तो विदेशी मूल की सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनने से रोकने वाला कोई नहीं था. कांग्रेस संसदीय दल ने सोनिया गांधी को पीएम बनने के लिए नेता चुन लिया. कांग्रेस की अगुवाई में आकार ले चुके यूपीए ने स्वीकार लिया. सबसे बड़े पार्टनर लेफ्ट ने भी कह दिया कि सोनिया गांधी के पीएम बनने पर कोई आपत्ति नहीं है. सोनिया गांधी के दो-दो बार सांसद बनने, विपक्ष का नेता बन जाने के बाद संवैधानिक अड़चनें भी खत्म हो चुकी थीं.
सोनिया ने पीएम की कुर्सी पर बैठने से किया इनकार
18 मई 2004 तक सोनिया गांधी देश की भावी प्रधानमंत्री थीं. उसी दिन सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने पहुंचीं. अब्दुल कलाम भी श्योर थे कि भावी प्रधानमंत्री मिलने आ रहीं हैं. उन्होंने राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी होने वाले प्रधानमंत्री की नियुक्त की चिट्ठी पर सोनिया गांधी का नाम लिखवा रखा था. सोनिया ने गठबंधन सरकार के लिए समर्थक पार्टियों की चिट्ठियां दिखाईं. कलाम ने कहा वो शपथ कराने के लिए तैयार हैं. तब सोनिया ने जो कहा उससे कलाम हक्के-बक्के रह गए. सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति कलाम से कहा मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनेंगे.
मनमोहन सिंह के नाम से तैयार हुआ लेटर
राष्ट्रपति भवन ने पीएम नियुक्ति की चिट्ठी फिर से तैयार हुईं. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बन गए. सब कुछ सेट होने के बाद भी सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने का मौका हाथ से जाने दिया. कहा जाता है कि विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर हो रहे विरोध के कारण सोनिया गांधी ने सरेंडर कर दिया. बात और आगे न बढ़े, इसलिए खुद ही प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया. सोनिया गांधी ने त्याग किया था-20 साल बाद भी इसे ऐसी ही पेश किया जाता है.
कलाम की टर्निंग प्वाइंट्स बुक में हुआ खुलासा
कलाम और सोनिया की उस मुलाकात का खुलासा तब हुआ जब 2012 में एपीजे अब्दुल कलाम के संस्मरणों पर किताब टर्निंग प्वाइंट्स आई. उससे पहले तक ये थ्योरी चलती रही कि राष्ट्रपति कलाम ने ही रोड़े अटकाए. विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कहा कि संवैधानिक मशविरा करना होगा. इसके बाद सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को पीएम बनाने की बात कही. किताब ने सच बताया कि सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए ही साथ लेकर आईं थीं.
नटवर सिंह की नई थ्योरी भी रही चर्चा में
कुंवर नटवर सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे. गांधी परिवार के बेहद करीबी लोगों में थे. उन्होंने भी एक किताब One Life Is Not Enough लिखी. सोनिया गांधी के पीएम न बनने वाली एक थ्योरी उन्होंने भी पेश किया. नटवर सिंह ने दावा किया कि राहुल गांधी की जिद से सोनिया गांधी पीएम नहीं बन पाईं. जिस दिन 18 मई 2004 को सोनिया गांधी मनमोहन सिंह के साथ राष्ट्रपति भवन मिलने गईं, उससे एक दिन पहले 17 मई 2004 को 10 जनपथ में राहुल ने सोनिया गांधी से कह दिया था-आपको प्रधानमंत्री नहीं बनना है. मेरे पिता की हत्या कर दी गई. दादी की हत्या कर दी गई. छह महीने में आपको भी मार देंगे.
मां के लिए प्रोएक्टिव दिखते हैं राहुल
नटवर के मुताबिक राहुल ने बात न मानने पर किसी हद तक जाने की धमकी दी थी. प्रियंका ने कहा था राहुल खिलाफ हैं और वो कुछ भी कर सकते हैं. वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने भी How Prime Ministers Decide
किताब में लिखा कि राहुल नहीं चाहते थे कि सोनिया प्रधानमंत्री बनें. अलग-अलग किताबों में विश्वनाथ प्रताप सिंह, सोमनाथ चटर्जी जैसे लोगों के हवाले से दावा किया गया कि सोनिया गांधी के बच्चे नहीं चाहते थे कि वो प्रधानमंत्री बनें.
सोनिया गांधी के जीवन पर खतरे के भय से डरे, सहमे थे. मां के लिए प्रोटेक्टिव आज तक दिखते हैं राहुल गांधी. बेटे की हर अचीवमेंट से झूम उठती हैं मां.
सत्ता जहर के समान है- सोनिया गांधी
राजनीति को लेकर कभी सोनिया गांधी आशंकित रहीं तो, कभी राहुल गांधी. फिर भी राजनीति में आए. राहुल जब 14 साल के थे, तब दादी इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी. 21 साल के हुए तो पिता की हत्या हुई. राहुल ने कभी छुपाया नहीं कि घटनाओं ने जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला. 2013 में कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने पहले भाषण में मां से हुई बातचीत का जिक्र किया था. कहा कि बीती रात मां सोनिया गांधी मेरे पास आईं और कहा कि सत्ता जहर के समान है, जो ताकत के साथ खतरे भी लाती है।
2004 में सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनीं. नेशनल एडवायजरी काउंसिल की चेयरपर्सन बनकर एक्टिव रहीं. उनपर मनमोहन सिंह को सामने रखकर बैकडोर से सरकार चलाने के आरोप लगे. मनमोहन सिंह पर रिमोट से चलने वाले प्रधानमंत्री, मौन मोहन सिंह जैसे टैग लग गए. 2009 चुनाव में यूपीए की जीत के बाद सोनिया गांधी के पास एक बार फिर मौका था पीएम बनने का. 2009 तक राहुल गांधी कांग्रेस में काफी एक्टिव हो चुके थे, लेकिन एक और टर्म मिला मनमोहन सिंह को.
2014 से शुरू हुआ राहुल का दौर
2014 से कांग्रेस में सोनिया गांधी के एक्टिव रहते राहुल गांधी का भी दौर शुरू हुआ. राहुल गांधी को पीएम बनाने की राजनीतिक लड़ाई शुरू हुई, लेकिन इस लड़ाई में आज तक कांग्रेस हार रही है. 2014, 2019 के बाद 2024 के चुनावों में कांग्रेस की हार हुई. राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का मिशन अधूरा रहा. बीजेपी आज तक आरोप लगाती है कि सोनिया गांधी बेटे को सेट नहीं करा पाईं. 2024 में नया अब ये है कि कांग्रेस की राजनीति में गांधी परिवार ने प्रियंका गांधी की भी एंट्री करा दी है.
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