चुनाव आयोग ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लगातार आरोपों के अब भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 10 सितंबर को एक बेहद अहम बैठक करने जा रहा है. माना जा रहा है बैठक में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने पर चर्चा हो सकती है. बता दें कि अभी तक बिहार में 11 दस्तावेजों को मान्यता दी गई थी, लेकिन माना जा रहा है कि आयोग अब नए दस्तावेजों के विकल्पों पर विचार कर रहा है. ऐसे अब सवाल उठ रहे हैं क्या ये राहुल गांधी के 'एटम बम' का असर है? आइए जानते हैं क्या है पूरी कहानी.
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ECI की बैठक में SIR पर मंथन!
दरअसल, चुनाव आयोग ने 10 सितंबर को दिल्ली में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों की बैठक बुलाई है. सूत्रों के अनुसार इस बैठक में SIR प्रक्रिया को बिहार के बाद पूरे देश में लागू करने को लेकर चर्चा हो सकती है. आपको बता दें कि बिहार में SIR के तहत 11 दस्तावेजों की मांगे गए थे. हालांकि, इस दौरान कई लोगों के पास ये दस्तावेज नहीं थे. बड़ी बात ये है कि इसमें आधार कार्ड, और राशन कार्ड जैसे अन्य दस्तावेजों को शामिल नहीं किया गया था. माना जा रहा है कि बैठक में इसी पर मंथन हो सकता है.
राहुल गांधी के आरोप और आयोग का फैसला
इससे पहले राहुल गांधी ने कर्नाटक के महादेवापुरा की विधानसभा सीट का उदाहरण देकर आयोग पर सवाल खड़े किए थे. यहां हजारों वोटरों के पते 0000 , 9999, 777 या 666 जैसे नंबरों पर दर्ज थे. इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने सफाई दी थी कि बेघर लोगों के लिए यह मजबूरी है. उन्होंने कहा था कि इसके भरे बिना फॉर्म एक्सेप्ट ही नहीं हो पाता, ऐसे में कुछ न कुछ भरना होता है. लेकिन इस पर मचे बवाल के बाद अब आयोग ने फॉर्मेट बदलने का फैसला किया. अब जीरो एंट्री बंद होगी और इसके बजाय कुछ और लिखा जाएगा.
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प्रधानमंत्री आवास योजना पर उठे सवाल!
बता दें 2011 की जनगणना में देश में 17 लाख 73 हजार के करीब बेघर थे. ऐसे में 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी और 2016 ग्रामीण की शुरुआत की गई थी. इसके तहत देशभर में 3.32 करोड़ मकानों का लक्ष्य था और 19 नवंबर, 2024 तक 3.21 करोड़ घरों को मंजूरी मिल गई थी और 2.67 करोड़ घर बनकर तैयार हो गए थे.
वहीं बिहार की वोटर लिस्ट में वर्तमान में करीब 2 लाख 90 हजार मतदाताओं के घर के पते के सामने शून्य दर्ज है. ऐसे अब सवाल उठ रहें हैं कि बिहार में 20 साल से नीतीश कुमार के सुशासन है और कई साल से डबल इंजन की सरकार चल रही है, फिर इसके बाद भी अभी तक बेघर लोगों को आवास क्यों नहीं मिल पाया है? चुनाव आयोग का ये आंकड़ा कहीं न कहीं सरकार की उपलब्धियों पर सवाल खड़े कर रहा हैं.
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