आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की राजनीति की एक खास पहचान रही है. उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई, लेकिन कभी किसी के साथ औपचारिक गठबंधन नहीं किया. न जीत के वक्त, न हार के बाद. केंद्र में मोदी सरकार के साथ मुद्दों के आधार पर तालमेल जरूर रखा, लेकिन एनडीए में शामिल होने से दूरी बनाए रखी.
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दूसरी तरफ तेलंगाना में केसीआर की पार्टी बीआरएस ने समय-समय पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों के साथ सियासी समीकरण साधे, लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं कि उन्हें अपने साथ लेने को कोई तैयार नहीं दिखता. आज स्थिति यह है कि जगन रेड्डी और केसीआर दोनों अपनी राजनीति के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या दोनों तेलुगू नेता अब एक-दूसरे का सहारा बनने की सोच रहे हैं?
जगन का जन्मदिन और सियासी संकेत
21 दिसंबर को जगन मोहन रेड्डी का जन्मदिन था. 2024 में चुनाव हारने के बाद यह पहला मौका था, जब समर्थकों ने इस बार जोर-शोर से उनका जन्मदिन मनाया. खास बात यह रही कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, डिप्टी सीएम पवन कल्याण और नारा लोकेश ने सोशल मीडिया पर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी जबकि जगन और नायडू परिवार के रिश्ते हमेशा तल्ख रहे हैं.
सबसे ज्यादा चर्चा तब हुई जब जगन की बहन वाई एस शर्मिला ने भी उन्हें बधाई दी. यह इसलिए अहम माना गया क्योंकि दोनों के बीच संपत्ति को लेकर कोर्ट केस चल रहा है और खुद जगन अदालत में कह चुके हैं कि बहन के लिए उनके दिल में अब कोई प्यार नहीं बचा. इससे पहले शर्मिला के जन्मदिन पर जगन ने उन्हें सार्वजनिक रूप से विश तक नहीं किया था. ऐसे में सवाल उठे क्या यह सुलह का संकेत है या सिर्फ पारिवारिक औपचारिकता?
कटआउट से शुरू हुई नई चर्चाएं
जगन के जन्मदिन पर एक और चीज ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी. पहली बार टेडापल्ली में जगन रेड्डी के घर के पास उनके साथ-साथ केसीआर और केटीआर के बड़े-बड़े कटआउट लगाए गए. समर्थकों ने इसे दोस्ती के जश्न की तरह पेश किया. यह नजारा आंध्र और तेलंगाना दोनों राज्यों में चर्चा का विषय बन गया.
हालांकि केटीआर ने हैदराबाद से ही जगन को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, लेकिन आंध्र के नेता के जन्मदिन पर तेलंगाना के नेताओं की दोस्ती का प्रदर्शन कई सियासी संकेत दे गया. कुछ तेलुगू मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि कटआउट लगाने की पहल बीआरएस की तरफ से की गई थी, ताकि यह दिखाया जा सके कि दोनों परिवारों के बीच मजबूत रिश्ते और राजनीतिक समझ है.
दोस्ती पुरानी, हालात नए
जगन रेड्डी और केटीआर एक ही पीढ़ी के नेता हैं और उनकी दोस्ती कोई नई बात नहीं है. दोनों कई मुद्दों पर एक जैसी भाषा बोलते रहे हैं और निजी स्तर पर भी एक-दूसरे के घर आना-जाना रहा है. लेकिन सवाल यह है कि अब अचानक इस दोस्ती को खुले तौर पर दिखाने की जरूरत क्यों पड़ी?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह सब भविष्य के किसी सियासी रिअलाइनमेंट की जमीन तैयार करने की कोशिश हो सकती है. हालांकि अभी कोई औपचारिक गठबंधन संभव नहीं दिखता, लेकिन संकेत जरूर दिए जा रहे हैं.
तेलुगू राजनीति की सीमाएं
जगन रेड्डी और केसीआर दोनों तेलुगू राज्यों के बड़े चेहरे हैं, लेकिन दोनों की राजनीति की दिशा अलग रही है. जगन आंध्र के विभाजन के पक्ष में नहीं थे, जबकि केसीआर ने लंबी लड़ाई लड़कर तेलंगाना राज्य हासिल किया. यही वजह है कि बीआरएस ने कभी आंध्र की राजनीति में कदम नहीं रखा और आंध्र की बड़ी पार्टियों टीडीपी और वाईएसआरसीपी ने भी तेलंगाना में अपना आधार नहीं बनाया.
बीजेपी ने दोनों राज्यों को बराबर तौलने की कोशिश की, लेकिन खास फायदा नहीं मिला. कांग्रेस को विभाजन के बाद आंध्र में भारी नुकसान हुआ, हालांकि करीब 10 साल बाद वह तेलंगाना में सत्ता में लौट पाई.
केटीआर की बढ़ती सक्रियता
आज बीआरएस के सर्वेसर्वा भले ही केसीआर हों, लेकिन पार्टी की कमान धीरे-धीरे केटीआर के हाथ में आती दिख रही है. हाल ही में केटीआर की मुलाकात समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से भी हुई. हैदराबाद में दोनों ने साथ लंच किया और सियासी हलकों में इस मुलाकात के भी मायने निकाले गए.
अखिलेश यादव वही नेता हैं, जो दिल्ली में जंतर-मंतर पर जगन रेड्डी के विरोध कार्यक्रम के दौरान उनके साथ खड़े नजर आए थे. हालांकि केटीआर और सपा के बीच किसी ठोस राजनीतिक गठजोड़ की संभावना फिलहाल कम ही दिखती है.
पार्टी को जिंदा रखना
आंध्र और तेलंगाना दोनों में अगले विधानसभा चुनाव 2028-29 से पहले नहीं हैं. लेकिन चुनाव हारने के बाद जगन रेड्डी और केसीआर दोनों को बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ है. उनकी पार्टियों के कई विधायक और सांसद टूट चुके हैं. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती अगले कुछ साल तक पार्टी को संभालकर रखना और फिर से वापसी की जमीन तैयार करना है.
इसी संदर्भ में जगन और केटीआर की दोस्ती का सार्वजनिक प्रदर्शन सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं, बल्कि आने वाले समय की राजनीति का ट्रेलर भी माना जा रहा है. अब देखना यह होगा कि यह दोस्ती सिर्फ तस्वीरों और कटआउट तक सीमित रहती है या भविष्य में किसी बड़े सियासी खेल की भूमिका बनती है.
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