बिल रोक विधानमंडल को वीटो नहीं कर सकते राज्यपाल… सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी?

देश में इस वक्त कई राज्यों की सरकारों और राज्यपाल के बीच के विवाद चर्चा का विषय बने हुए हैं. खासकर ऐसे राज्य जहां गैर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) सरकारें हैं.

Government-Governor conflict in Punjab
Government-Governor conflict in Punjab

देवराज गौर

• 04:14 AM • 25 Nov 2023

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Government-Governor conflict: देश में इस वक्त कई राज्यों की सरकारों और राज्यपाल के बीच के विवाद चर्चा का विषय बने हुए हैं. खासकर ऐसे राज्य जहां गैर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) सरकारें हैं. इनमें पंजाब, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्य हैं. यह विवाद शक्तियों के बंटवारे और एक दूसरे के अधिकारक्षेत्र में अतिक्रमण करने से खड़े हो रहे हैं. राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव के ये मामले सुप्रीम कोर्ट के सामने भी आए हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे विवाद पर अपनी टिप्पणी की है. केस की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सदन से कानून बनाने के लिए भेजे गए बिलों को राज्यपाल अनिश्चितकालीन समय तक अपने पास लटका कर नहीं रख सकते हैं.

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राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति करते हैं. राज्य की सरकारों को सीधे जनता चुनती है. संविधान ने राज्यपाल को राज्य के गैर निर्वाचित प्रतिनिधि के तौर पर शक्तियों से लैस किया है. सरकारें भी जनता से चुनकर आती हैं और संविधान से अपनी शक्तियां अर्जित करती हैं.

सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि राज्य के गैर निर्वाचित प्रमुख के तौर पर राज्यपाल संवैधानिक शक्तियों से संपन्न होते हैं. लेकिन, इन शक्तियों का इस्तेमाल राज्य विधानमंडलों से कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता. पीठ ने पंजाब सरकार की एक याचिका पर 10 नवंबर के अपने आदेश में कहा था कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को मंजूरी नहीं देना चाहते हैं तो उन्हें उसे पुनर्विचार के लिए विधानमंडल के पास वापस भेजना होता है.

क्या था विवाद?

जून महीने में पंजाब सरकार ने एक विशेष सत्र बुलाया था. इसमें कई बिलों को पारित किया गया. उन बिलों को कानून की शक्ल देने के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया. लेकिन, राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने उन पर अपनी मुहर लगाने के बजाए लटका दिया. उन्होंने सरकार की तरफ से बुलाए गए विशेष सत्र को अवैध घोषित करार दिया था. इसे लेकर पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसमें सु्प्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की है. 10 नवंबर को सुरक्षित रखे गए अपने आदेश में सु्प्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सत्र अवैध भी था तो बहुमत से पास हुए बिल कैसे अवैध हो सकते हैं. राज्यपाल के पास पंजाब सरकार के पांच बिल लंबित हैं.

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट तमिलनाड़ु सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे विवाद पर राज्यपाल आरएन रवि को लेकर कड़ी टिप्पणी कर चुका है. दिल्ली और केरल में भी राज्यपाल और सरकारों के बीच का यह सत्ता संघर्ष जारी है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पीणी के बाद से राज्यपाल-राज्य सरकारों की इस भिड़ंत में क्या अंतर आता है यह देखने वाली बात होगी.

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