देश की राजनीति में अक्सर कुछ-ना-कुछ ऐसा होते रहता है, जिससे की पक्ष और विपक्ष आमने-सामने होते है. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि पक्ष के सहयोगी दल ही उनके फैसलों पर सवाल उठा देते है. ऐसा ही कुछ मनरेगा का नाम बदलने को लेकर हुआ है. 2004 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे और सरकार से बाहर रहकर सोनिया गांधी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद NAC की चेयरपर्सन बनी थी. उसी दौर में गांवों में बेरोजगारी की समस्या खत्म करने के लिए मनरेगा का जन्म हुआ. MGNREGA यानी Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act को लाने के पीछे की वजह गारंटी के साथ रोजगार दिलाने के लिए थी. यह योजना मनमोहन सरकार की थी, लेकिन ब्रेन चाइल्ड सोनिया गांधी का माना गया. 2004 से 2009 तक उथल-पुथल वाली यूपीए की गठबंधन सरकार चलाने के बाद भी 2009 में जब कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई तो क्रेडिट मनरेगा को गया जिसने गांवों में रोजी-रोजगार की समस्या पर काबू पाया.
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11 साल बाद पीएम मोदी ने मनरेगा में लगाया हाथ
2014 के चुनावों में यूपीए की हार हुई. नई सरकार की कमान संभालते पीएम मोदी ने कांग्रेस की विफलताओं का स्मारक कहते हुए मनरेगा लागू रखा. करीब 11 साल बाद अब जाकर तीसरे टर्म में सरकार ने मनरेगा को हाथ लगाया है और अब मनरेगा की रीब्रैंडिंग हो रही है. इस योजना को लेकर कई वजहों से हंगामा हो रहा जिसमें एक हंगामा महात्मा गांधी के नाम को हटाने को लेकर हो रहा है.
वहीं दूसरा हंगामा बीजेपी की सहयोगी चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP की ओर से हो रहा है. दरअसल, 2006 से अब तक मनरेगा में गारंटी वाला रोजगार देने के लिए सारे पैसे केंद्र सरकार देती रही है और हर राज्य में मजदूरी के अलग-अलग रेट हैं. मनरेगा का नया नाम जब विकसित भारत जी राम जी होगा(VB- G RAM G) तब पैसे देने की पुरानी व्यवस्था भी बदल जाएगी. मोदी सरकार ने प्लान बनाया है कि मनरेगा की मजदूरी चुकाने के लिए केवल केंद्र सरकार पैसे नहीं देगी. राज्य सरकारों को भी अपनी जेब से पैसे देने होंगे.
TDP क्यों उठा रही सवाल?
टीडीपी शासित चंद्रबाबू नायडू की आंध्र प्रदेश सरकार ने इस प्रोविजन पर ऑब्जेक्शन उठाया है. इंडियन एक्सप्रेस से आंध्र प्रदेश के वित्त मंत्री पय्यावुला केशव ने कहा कि, 'फंड शेयर करने की शर्त चिंताजनक है. अगर हमें अपने हिस्से के तौर पर बड़ी रकम लगानी पड़ी तो इससे राज्य पर काफी बोझ पड़ेगा. आर्थिक तंगी से जूझ रहे आंध्र प्रदेश जैसे राज्य के लिए ये चिंता की बात है. हालांकि अभी हमने योजना की पूरी जानकारी नहीं देखी है.' केशव ने ये तो नहीं कहा कि वो नए बदलावों का विरोध किया जाएगा बल्कि कहा कि पहले स्टडी करेंगे. उन्होंने दो और प्रावधानों की तारीफ की है कि, एक साल में कम से कम 125 रोजगार की गारंटी मिलेगी. मजदूरी के पैसे हर हफ्ते मिल जाएंगे.
क्या होगा नए नियम का फॉर्मूला?
वीबी जी राम जी यानी विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन- ग्रामीण में फंडिंग को लेकर राज्यों के हिसाब से तीन अलग फॉर्मूले पर काम हो रहा है. उत्तर पूर्व के राज्यों, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में मजदूरी के लिए 90:10 का फॉर्मूला है, जिसमें केंद्र सरकार 90 परसेंट पैसे देगी और 10 परसेंट राज्यों को देने होंगे.
वहीं जहां विधानसभा नहीं है वहां सारा पैसा केंद्र सरकार देगी. बड़े राज्यों या विधानसभा वाले यूनियन टेरिटरीज में रेशियो 60:40 का होगा, जिसमें केंद्र सरकार 60 परसेंट और राज्य सरकार को 40-40 परसेंट चुकाने होंगे.
महात्मा गांधी के नाम हटाने को लेकर बवाल
मनरेगा कानून से लागू हुआ था. मोदी सरकार भी मनरेगा बदलने के लिए नया कानून लेकर आ रही है जिसके लिए संसद में बिल आ रहा है. सरकार नया कानून विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन-ग्रामीण ला रही है, हालांकि अभी साफ नहीं कि मनरेगा रहेगा या खत्म हो जाएगा. चूंकि नए बिल में महात्मा गांधी का नाम नहीं है लेकिन नए बिल का मॉडल मनरेगा जैसा है इसलिए कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटा रही. प्रियंका गांधी ने विरोध करने में लीड ली है. विपक्ष के तमाम बड़े नेता सरकार को घेर रहे हैं कि सरकार महात्मा गांधी का अपमान कर रही है.
नए और पुराने मनरेगा में कितना अंतर?
नए और पुराने मनरेगा में चार-पांच बुनियादी बदलाव होने जा रहे हैं. एक तो नाम बदल जाएगा. दूसरा गारंटी वाले रोजगार के दिन 100 से बढ़कर 125 दिन हो जाएंगे. मजदूरी का पैसा अब राज्यों को भी देना होगा. 15 दिन में मिलने वाले मजदूरी अब हर हफ्ते मिलेगी और सालों भर चलने वाले काम अब खेती के सीजन में बंद रहेगा. बुआई और कटाई के मौसम में 60 दिन काम बंद कर दिया जाएगा. इसका उद्देश्य बुआई और कटाई के समय मजदूरों की कमी नहीं होने देना है.
2006 से मनरेगा लागू होने के बाद से करीब पौने 12 लाख करोड़ खर्च हो चुके हैं. आधे से ज्यादा 7.8 लाख करोड़ तो मोदी सरकार के समय खर्च हुए. योजना में बदलाव के लिए सरकार का तर्क ये है कि 2011-12 के मुकाबले ग्रामीण बेरोजगारी 25.7% से घटकर 2023-24 में 4.86% रह गई. वहीं दूसरा तर्क फर्जीवाड़े को लेकर है कि इसमें सरकार के 194 करोड़ लूटे गए.
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