सुप्रीम कोर्ट और बीजेपी नेताओं के बीच तनाव बढ़ता नजर आ रहा है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे, बीएल संतोष और दिनेश शर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना के खिलाफ की गई टिप्पणियों ने विवाद को जन्म दिया है. इन टिप्पणियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी सामने आई है, और इसे लेकर अवमानना के मामले दर्ज करने की मांग उठ रही है.
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निशिकांत दुबे पर अवमानना की मांग
एक वकील ने अटॉर्नी जनरल वेंकट रमनी से अनुरोध किया है कि निशिकांत दुबे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला दर्ज किया जाए. दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई संजीव खन्ना पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि देश में गृह युद्ध और धार्मिक युद्ध जैसी स्थिति के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है. उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट संसद के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर कानून बनाने का काम कर रहा है, जो पूरी तरह गलत है. इन बयानों को मानहानि और अवमानना के दायरे में माना जा रहा है.
उपराष्ट्रपति धनखड़ पर भी सवाल
इसी तरह, केरल के एक वकील ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ भी अवमानना का मामला चलाने की मांग की है. हालांकि, अटॉर्नी जनरल भारत सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं, इसलिए इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई होने की संभावना कम मानी जा रही है. फिर भी, सुप्रीम कोर्ट के पास स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार है.
अदालत सब देख रही है- जस्टिस गवई
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई, जो अगले सीजेआई बनने वाले हैं, ने मुर्शिदाबाद हिंसा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान तंज भरी टिप्पणी की. उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा कि उन पर पहले ही विधायी और कार्यकारी क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का आरोप लग रहा है, ऐसे में क्या वह राज्य या केंद्र सरकार को निर्देश दें. जस्टिस गवई की इस टिप्पणी को धनखड़ और अन्य नेताओं के बयानों का जवाब माना जा रहा है. उन्होंने यह भी साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट सभी गतिविधियों पर नजर रखे हुए है और वह इन टिप्पणियों को अनदेखा नहीं करेगा.
जस्टिस गवई का न्यायिक रिकॉर्ड
जस्टिस गवई ने इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध घोषित करने, मनीष सिसोदिया को जमानत देने और राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाने जैसे कई अहम फैसलों में अहम भूमिका निभाई है. उनकी यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की साख और स्वतंत्रता को बनाए रखने की दिशा में एक मजबूत संदेश मानी जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी चुनौती
यह विवाद सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है. अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार के खिलाफ फैसला देता है, तो एक वर्ग इसे विपक्ष से सांठगांठ के रूप में देखता है, जबकि सरकार के पक्ष में फैसला आने पर दूसरा वर्ग इसे दबाव या सत्ता के हस्तक्षेप का नतीजा मानता है. सुप्रीम कोर्ट के सामने अब यह चुनौती है कि वह अपनी निष्पक्षता और संवैधानिक जिम्मेदारी को कैसे बरकरार रखता है.
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