Shesh Bharat: तेलंगाना में दल-बदल पर बड़ा फैसला, बीआरएस को झटका, कांग्रेस गदगद!

तेलंगाना विधानसभा स्पीकर ने बीआरएस छोड़कर कांग्रेस में आए 5 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की याचिका खारिज कर दी है. इस फैसले से रेवंत रेड्डी सरकार मजबूत हुई है.

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रूपक प्रियदर्शी

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Telangana Politics: हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन-तीन बार पार्टियां न बदली होती तो आया राम गया राम मुहावरा न बनता और न नौबत आती दल-बदल कानून की. चुनाव जीतने के बाद सांसदों-विधायकों के दल-बदल करने से सभी पार्टियों को नुकसान भी होता रहा, फायदा भी. फिर भी किसी ने इसके लिए कुछ किया नहीं. 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने कांग्रेस के नफा-नुकसान की परवाह किए बिना दल-बदल कानून बना दिया. आगे जाकर कानून में बदलाव होते रहे. आज कानून ये है कि एक तिहाई से कम सांसदों-विधायकों ने पलटी मारी तो सदस्यता जाएगी. फिर भी दल-बदल खत्म नहीं हुआ. 

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सबसे ताजा मामला तेलंगाना में हुआ, जब 2023 में चुनाव जीतने के बाद किस्तों में बीआरएस के 10 विधायकों ने पाला बदलकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली. बीआरएस ने दल-बदल कानून खिलाफ बताकर विधायकों की सदस्यता खत्म करने के लिए स्पीकर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस मामले में पड़े बिना स्पीकर से फैसला लेने के लिए कहा. महीनों की जद्दोजहद के बाद अब आया फैसला तो रेवंत रेड्डी की सरकार को मजबूती मिल गई. बीआरएस के हाथ से 5 विधायक ऑफिशियली निकल गए.

बीआरएस छोड़कर कांग्रेस में आए थे 5 विधायक

तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर गद्दाम कुमार प्रसाद ने बीआरएस से दल-बदल करने वाले 10 में से 5 विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं को खारिज कर दिया. क्लीन चिट पाने वाले तेल्लम वेंकट राव, बंडला कृष्ण मोहन रेड्डी, टी प्रकाश गौड़, गुडेम महिपाल रेड्डी और अरेकापुड़ी गांधी को बड़ी राहत मिली है. सदस्यता भी बच गई, अब खुलकर कांग्रेस के कैंप में बैठ पाएंगे. दल बदल के दायरे में कुल 10 विधायक हैं. स्पीकर ने सभी 10 विधायकों को नोटिस दिया हुआ था. 8 ने अपना पक्ष रख दिया. 2 विधायकों ने और समय की मांग की है. दूसरे फेज में स्पीकर को और 5 विधायकों के भविष्य का फैसला करना है. 

स्पीकर गद्दाम प्रसाद कुमार कुछ ऐसा ही फैसला करेंगे, बीआरएस को पहले से आशंका थी. ऐसा इसलिए कि स्पीकर गद्दाम कुमार कांग्रेस के टिकट पर जीते विधायक हैं. सीएम रेवंत रेड्डी ने भी दल बदल करने वाले विधायकों की सीटों पर उपचुनाव से इनकार किया था. बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव ने एलान कर दिया कि स्पीकर का फैसला लोकतंत्र में क्रूर मजाक की तरह है जिसे कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा. 

2023 में जब रेवंत रेड्डी ने प्रचंड बहुमत की कांग्रेस की सरकार बनाई तब गद्दाम कुमार प्रसाद को विधानसभा स्पीकर बनाया गया. गद्दाम प्रसाद कुमार के पास बहुमत भी था, सम्मान भी था. स्पीकर चुनाव में बीआरएस, बीजेपी और AIMIM ने उम्मीदवार नहीं उतारे तो सर्वसम्मति से स्पीकर चुने गए. नामांकन भरवाने सीएम रेवंत रेड्डी और केटी रामाराव एक साथ बैठे थे. हो सकता है अब केटीआर को अफसोस हो रहा हो. 

क्या है पूरा मामला?

2023 में रेवंत रेड्डी की लीडरशिप में कांग्रेस ने बहुमत से चुनाव जीता था. और कहीं से समर्थन जुटाने की जरूरत नहीं थी. कांग्रेस सरकार को और मजबूत करने ओवैसी ने खुशी-खुशी अपने 7 विधायकों का समर्थन दे दिया. बीआरएस की करारी हार के बाद केसीआर पार्टी एकजुट नहीं रख पाए. एक-एक करके 10 विधायक बीआरएस छोड़कर कांग्रेस में चले गए. उन्होंने विधायकी नहीं छोड़ी. बस पार्टी बदल ली. तब से बीआरएस लगी थी कि दल-बदल कानून के उल्लंधन के आरोप में सदस्यता खत्म कराई जाए लेकिन स्पीकर का फैसला बीआरएस के खिलाफ आया.

क्या कहता है कानून?

दल बदल कानून के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद विधायक रहते हुए पार्टी नहीं बदल सकते. दो तिहाई विधायक एक साथ हों तब भी ऐसा किया जा सकता है. बीआरएस के बागियों ने 3 और 7 का ग्रुप बनाकर कांग्रेस में आकर अपनी विधायकी खतरे में डाल दी. स्पीकर के फैसले के बाद भी ये संभव है कि कोर्ट में दल बदल की पूरी प्रक्रिया का रिव्यू हो. सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ये क्लियर कर किया हुआ है कि स्पीकर के फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है. मतलब स्पीकर के आदेश को पलटने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास है. 

दल बदल करने वाले विधायकों की सदस्यता को लेकर संविधान में  दसवीं अनुसूची में व्यवस्थाएं बनी हैं. 1985 में दसवीं अनुसूची 52वें संविधान संशोधन के साथ जोड़ी गई. संविधान कहता है कि अगर दो तिहाई से कम विधायक या सांसद पार्टी बदलते हैं तो सदस्यता चली जाएगी. दसवीं अनुसूची में स्पीकर को सक्षम बनाया कि दल बदल के मामले में फैसला कर सकें ताकि कोर्ट की प्रक्रियाओं के कारण देरी न हो. पार्टी हित में स्पीकर का इस्तेमाल करने लगे तो विवाद होता रहा.

जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर स्पीकर ऐसे मामलों को लंबित रखते हैं तो ये दसवीं अनुसूची के मकसद को फेल कर देगा. सुप्रीम कोर्ट ने संसद से संविधान की दसवीं अनुसूची के उन प्रावधानों पर पुनर्विचार करने की सिफ़ारिश की, जिससे स्पीकर को दल बदल के आधार पर किसी विधायक की अयोग्यता पर फैसला लेने की जिम्मेदारी मिलती है. मामले विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने तक लंबित रह जाते हैं और दलबदलू बेखौफ बच निकलते हैं। सरकार ने इसको लेकर कोई एक्शन नहीं लिया है.

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