कैश कांड से संविधान तक, जस्टिस यशवंत वर्मा विवाद में क्यों फंसी संसद, सुप्रीम कोर्ट और सरकार?
जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े कथित कैश कांड ने संसद, सुप्रीम कोर्ट, सरकार और विपक्ष को आमने-सामने ला दिया है, लेकिन संवैधानिक जटिलताओं के कारण उन्हें हटाने की प्रक्रिया अटकी हुई है.

देश की न्यायिक और संवैधानिक व्यवस्था इन दिनों एक ऐसे विवाद में फंसी हुई है जैसा पहले कभी देखने को नहीं मिला. दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा आज इस विवाद के केंद्र में हैं. सुप्रीम कोर्ट, संसद, सरकार और विपक्ष सब आमने-सामने हैं, लेकिन सवाल वही है... आखिर कोई जज वर्मा को हटा क्यों नहीं पा रहा?
जज को हटाने का सिर्फ एक रास्ता
भारत के संविधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी भी जज को हटाने का सिर्फ एक ही रास्ता है संसद से पारित महाभियोग प्रस्ताव. इसके लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए. इतिहास बताता है कि अब तक 5 जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए गए, लेकिन एक भी जज को हटाया नहीं जा सका.
कैश कांड से शुरू हुआ तूफान
14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के बाहर जले हुए 500-500 रुपये के नोटों की 4-5 बोरियां मिलीं. कहा गया कि रकम करीब 15 करोड़ रुपये थी. इससे पूरे देश में हड़कंप मच गया. इसे करप्शन मनी माना गया और सुप्रीम कोर्ट ने जांच समिति बनाई.
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जांच समिति ने आरोपों को सही माना. उस वक्त के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने को कहा, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया. इसके बाद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग की सिफारिश भेजी गई.
संसद में महाभियोग की कोशिश
विपक्ष ने जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया. प्रस्ताव राज्यसभा में गया लेकिन वहां उसे मंजूरी नहीं मिली. यहीं से असली विवाद शुरू हुआ.
राज्यसभा से प्रस्ताव फेल होने के बावजूद लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने आगे बढ़ते हुए तीन सदस्यों की जांच समिति बना दी. इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरविंद कुमार कर रहे हैं. अन्य सदस्य हैं मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और सीनियर जूरिस्ट बी.वी. आचार्य.
स्पीकर के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की एंट्री
लोकसभा स्पीकर के इसी फैसले के खिलाफ खुद जस्टिस यशवंत वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने सवाल उठाया कि जब राज्यसभा ने महाभियोग प्रस्ताव मंजूर ही नहीं किया तो लोकसभा अकेले जांच समिति कैसे बना सकती है?
इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जे. मसीह भी हैरान दिखी. कोर्ट ने टिप्पणी की कि संसद में इतने सांसद और कानूनी जानकार मौजूद थे, फिर भी यह संवैधानिक चूक कैसे हो गई?
अब सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, लोकसभा और राज्यसभा के महासचिवों को नोटिस जारी कर 7 जनवरी तक जवाब मांगा है.
जस्टिस वर्मा की दलीलें
जस्टिस वर्मा का कहना है कि घर के बाहरी हिस्से से नोट मिलने मात्र से यह साबित नहीं होता कि वह पैसा उन्हीं का था, क्योंकि जांच में यह स्पष्ट ही नहीं किया गया कि कैश वास्तव में किसका था. इसके अलावा यह भी तय नहीं किया गया कि बरामद नोट असली थे या नहीं, और आग लगने की वजह को लेकर भी कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आया. उनका आरोप है कि बिना किसी औपचारिक शिकायत के केवल अनुमानों के आधार पर जांच समिति गठित कर दी गई, जो प्रक्रिया के खिलाफ है, इसी आधार पर उन्होंने जजेज इन्क्वायरी एक्ट, 1968 के तहत गठित समिति की वैधता को चुनौती दी है.
उपराष्ट्रपति के इस्तीफे का रहस्य
इस पूरे मामले के बीच एक और बड़ा सवाल खड़ा हुआ उपराष्ट्रपति और राज्यसभा चेयरमैन जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा. न सरकार ने वजह बताई, न खुद धनखड़ ने. खबरें उड़ीं कि जस्टिस वर्मा के महाभियोग को लेकर सरकार से उनकी तीखी बहस हुई और गुस्से में उन्होंने पद छोड़ दिया. हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं हुई.
ट्रांसफर हुआ लेकिन हटे नहीं
कैश कांड के बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से ट्रांसफर कर इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया, लेकिन वे आज भी जज बने हुए हैं. उनके खिलाफ एफआईआर की मांग भी हुई, लेकिन उस वक्त के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई.
सब फंसे, जज सुरक्षित
आज हालात यह हैं कि संसद महाभियोग की प्रक्रिया में उलझी हुई है, स्पीकर सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के घेरे में हैं, सरकार असहज नजर आ रही है, विपक्ष आक्रामक मुद्रा में है और सुप्रीम कोर्ट स्वयं गंभीर संवैधानिक सवालों से जूझ रहा है, लेकिन इन तमाम राजनीतिक और संवैधानिक उठा-पटक के बावजूद जस्टिस यशवंत वर्मा अब भी अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं.
यही वजह है कि देश में यह सवाल गूंज रहा है कि क्या हमारी संवैधानिक व्यवस्था इतनी मजबूत है कि जज को बचा ले, या इतनी जटिल कि दोषी को भी कोई छू न पाए?
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