Jalore Smartphone Ban Fact Check: राजस्थान के जालौर जिले में महिलाओं के स्मार्टफोन बैन की एक खबर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी. कहा गया कि कुछ गांवों में पंचायत ने महिलाओं के मोबाइल फोन पर रोक लगा दी है. यह बात तेजी से वायरल हुई और लोग नाराजगी जताने लगे. लेकिन जब पूरे मामले की जांच की गई तो सामने आया कि सच्चाई कुछ और ही है.
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24 गांवों से जुड़ा बताया गया मामला
वायरल खबर में दावा किया गया कि जालौर जिले के सुंधा पट्टी के 24 से ज्यादा गांवों में चौधरी समाज की पंचायत ने महिलाओं के स्मार्टफोन इस्तेमाल पर बैन लगाने का फैसला किया है. वीडियो और मैसेज के जरिए यह बात इतनी फैली कि लोग इसे पक्का फैसला मान बैठे.
जांच में सामने आई अलग सच्चाई
मामले के वायरल होने के बाद जब समाज के पंच पटेलों से बातचीत की गई तो उन्होंने साफ किया कि पंचायत में कोई फैसला नहीं लिया गया था. पंचायत में कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया था. उन्होंने बताया कि यह केवल महिलाओं की ओर से दिया गया एक सुझाव था, जिसे समाज के सामने चर्चा के लिए रखा गया था .
महिलाओं की ओर से आया था सुझाव
समाज की महिलाओं ने खुद बताया कि यह सुझाव उन्होंने स्वयं बुजुर्गों के सामने रखा था. महिलाओं ने बताया कि बच्चों पर मोबाइल का बुरा असर पड़ रहा है. बच्चे पढ़ाई छोड़कर गेम खेलते रहते हैं और दिनभर मोबाइल में लगे रहते हैं.
पंच पटेलों ने बताया कि मोबाइल की वजह से बच्चे न तो ठीक से पढ़ाई कर रहे हैं और न ही समय पर खाना खा रहे हैं. कई बच्चे स्कूल से आने के बाद होमवर्क छोड़कर मोबाइल देखने लगते हैं. इससे उनकी आंखों और सेहत पर भी असर पड़ रहा है.
साइबर ठगी का डर भी वजह
पंचायत सदस्यों का कहना है कि बच्चों को मोबाइल की ज्यादा समझ नहीं होती. इसी वजह से वे कई बार ऑनलाइन ठगी का शिकार हो जाते हैं. साथ ही सोशल मीडिया पर आने वाले गलत और अश्लील कंटेंट से भी बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.
कोई सीधा बैन लगाने की बात नहीं
समाज ने यह भी साफ किया कि महिलाओं या बच्चियों से मोबाइल छीनने की कोई बात नहीं थी. पढ़ाई करने वाली बच्चियों को मोबाइल की जरूरत है, यह सभी मानते हैं. इसलिए पढ़ाई के लिए मोबाइल इस्तेमाल करने पर कोई रोक नहीं थी.
26 जनवरी तक मांगी गई थी राय
पंच पटेलों के अनुसार, बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया था कि अगर समाज को यह सुझाव उचित लगे तो 26 जनवरी 2026 तक इस पर राय दी जाए. इसके बाद ही किसी तरह का निर्णय लिया जाना था. लेकिन वीडियो के वायरल होने से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई.
सोशल मीडिया विरोध के बाद कदम पीछे
सोशल मीडिया पर बढ़ते विरोध को देखते हुए समाज के पंच पटेलों ने फिर से बैठक की. इसके बाद यह तय किया गया कि इस पूरे सुझाव और प्रस्ताव को वापस लिया जाता है ताकि किसी भी तरह का गलत संदेश न जाए.
पंचायत और समाज के लोगों ने साफ कहा कि यह कभी भी कोई आदेश या बैन नहीं था. यह सिर्फ समाज के हित में रखा गया एक सुझाव था, जिसे अब पूरी तरह वापस ले लिया गया है.
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