Rajasthan: अगर आप परिवार के साथ किसी धार्मिक (Rajasthan Tourism) स्थल पर घूमने का प्लान कर रहे हैं. तो आपके लिए खबर जरूरी है. देश की राजधानी दिल्ली व राजस्थान की राजधानी जयपुर के मध्य में एक ऐसी जगह है. जहां हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ा था. यह जगह अलवर जिले के सरिस्का के घने जंगल के मध्य में है. आज वहां हनुमान जी का एक विशाल मंदिर है. जहां हनुमान जी की पूजा होती है. हनुमान जी उसे मंदिर में लेटी हुई अवस्था में है. केवल मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में आने जाने की अनुमति मिलती है. इस मंदिर के साथ पर्यटक घने जंगल का आनंद भी ले सकते हैं.
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दिल्ली व जयपुर से महज 150 किलोमीटर की दूरी पर सरिस्का के घने जंगल में पांडुपोल हनुमान मंदिर है. कहते हैं हनुमान जी ने पांडुपोल में भीम को दर्शन दिए थे. पांडवों के अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी अपनी दिनचर्या के अनुसार पांडुपोल में नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी. एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुंदर पुष्प पाया. द्रौपदी ने उसको उठा लिया और प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे अपने कानों के कुंडल में धारण करने की सोची. स्नान के बाद द्रौपती ने महाबली भीम को उस तरह के ओर पुष्प लाने को कहा. तो भीम पुष्प की खोज करते हुए जलाशय की ओर बढ़ने लगे. रास्ते में भीम ने देखा कि एक वृद्ध विशाल वानर अपनी पूछ फैला कर आराम से लेटा हुआ है. वानर के लेटने से रास्ता अवरुद्ध हो रहा था.
ऐसे में भीम ने वृद्ध वानर से अपनी मूछ हटाने के लिए कहा. वृद्ध वानर ने कहा कि वो बुजुर्ग है. इसलिए कुछ हटाने में असमर्थ है. उन्होंने कहा कि आप पूछ कर ऊपर से चले जाओ. भीम ने कहा कि मैं पूछ लांघकर नहीं जा सकता. इस पर वानर ने कहा कि आप बलसाली दिखते हैं. आप स्वयं ही मेरी पूंछ हटा ले. भीमसेन ने वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की. तो पूंछ भीम से टच से मत नहीं हुई. भीम की बार-बार कोशिश के बाद भी भी वृद्ध वानर की पूंछ हटाने में नाकाम रहा. इसके बाद भीम को समझ आया कि यह कोई साधारण वानर नहीं है. भीम ने हाथ जोड़कर वानर को अपने वास्तविक रूप में प्रकट होने की विनती की. इस पर हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए. इसके बाद भीम ने सभी पांडवों को बुलाया. पांडवों ने हनुमानजी की लेटे हुए स्वरूप में पूजा अर्चना की. इसके बाद पांडवों ने वहां हनुमान मंदिर की स्थापना की. जो आज पांडुपोल हनुमान मंदिर के नाम से देश दुनिया में अपनी खास पहचान रखता है. सरिस्का टाइगर रिजर्व होने के कारण मंदिर में केवल मंगलवार और शनिवार को प्रवेश किया जाता है.
भीम ने किया था गदा से प्रहार
पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान सरिस्का के पांडुपोल हनुमान मंदिर के पास एक पहाड़ पर दरवाजा बनाने के लिए गदा से प्रहार किया था. इस जगह से आज भी साल भर पानी का झरना बहता है. पहाड़ पर 30 फीट ऊंचाई पर यह रास्ता आज भी बना हुआ है.
पांडुपोल हनुमान मंदिर का इतिहास
पांडुपोल हनुमान मंदिर का इतिहास 5000 साल पुराना है. महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास काटा था. इस दौरान पांडव जंगल में प्रवास करते हुए अलवर पहुंचे थे.
कैसे पहुंचे पांडुपोल
पांडुपोल हनुमान मंदिर अलवर शहर से 55 किलोमीटर दूर है. अलवर शहर सड़क व रेल मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ है. अलवर से रोडवेज बस सेवा पांडुपोल के लिए उपलब्ध है. साथ ही टैक्सी बुक करके भी आप पांडुपोल जा सकते हैं. साल में एक बार यहां हनुमान जी का मेला भरता है. इस दौरान 50 हजार से ज्यादा श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन के लिए आते हैं.
देश भर में है खास पहचान
पांडुपोल हनुमान मंदिर देश भर में अपनी खास पहचान रखता है. राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व पंजाब सहित देश पर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन के लिए आते हैं.
हनुमान जी के दर्शन के साथ जंगल सफारी का आनंद
पांडुपोल हनुमान मंदिर सरिस्का टाइगर रिजर्व के घने जंगल के बीच है. मंगलवार व शनिवार को श्रद्धालु अपने वहां से मंदिर जा सकते हैं. इस दौरान सरिस्का के जंगल से बीचों बीच होकर श्रद्धालुओं को गुजरना पड़ता है. ऐसे में हनुमान जी के दर्शन के साथ जंगल सफारी का आनंद भी मिलता है. जंगल में सैकड़ो हजारों की संख्या में नीलगाय, हिरण, बारहसिंगा, बाघ, पेंथर व अन्य पशु पक्षी मौजूद हैं.
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