प्रयागराज: अलग रह रही पत्नी के भरण-पोषण को लेकर हाईकोर्ट ने पति के पक्ष में सुनाया गजब फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मेरठ फैमिली कोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा कि बिना ठोस वजह के अलग रह रही पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है. जानिए क्या था पूरा मामला और कोर्ट का तर्क.

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News Tak Desk

13 Jul 2025 (अपडेटेड: 13 Jul 2025, 07:26 PM)

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पति-पत्नी विवाद में हाईकोर्ट का गजब फैसला आया है. इस फैसले ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें पत्नी के भरण पोषण के लिए पति द्वारा दी जाने वाली रकम तय की गई थी. 

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इलाहाबाद हाई कोर्ट साफ कर दिया है कि यदि कोई पत्नी बिना किसी वाजिब वजह के अपने पति से अलग रह रही है, तो वह कानूनी रूप से भरण-पोषण (Maintenance) की हकदार नहीं होगी. कोर्ट ने मेरठ की फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें पति को पत्नी और बच्चे के लिए हर महीने ₹8,000 देने का निर्देश दिया गया था. 

क्या था मामला? 

यह केस मेरठ के निवासी विपुल अग्रवाल से जुड़ा है, जिनकी पत्नी पिछले कुछ समय से उनसे अलग रह रही थी. फैमिली कोर्ट ने 17 फरवरी 2025 को आदेश दिया था कि विपुल को पत्नी के लिए ₹5,000 और नाबालिग बच्चे के लिए ₹3,000 यानी कुल ₹8,000 प्रति माह का भरण-पोषण देना होगा.

हालांकि, इसी आदेश में यह भी कहा गया कि पत्नी यह साबित नहीं कर पाई कि वह किसी ठोस कारण से पति से अलग रह रही है या पति ने उसकी उपेक्षा की है. इस विरोधाभास के चलते पति ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

हाई कोर्ट का तगड़ा ऑब्जर्वेशन 

न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ तौर पर कहा कि अगर कोई पत्नी बिना पर्याप्त कारण के पति से अलग रहती है, तो CrPC की धारा 125(4) के तहत वह भरण-पोषण की हकदार नहीं मानी जाएगी.

हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने एक ओर पत्नी के दावे को कमजोर माना, और दूसरी ओर उसे भरण-पोषण देने का आदेश दे दिया, जो पूरी तरह विरोधाभासी है.

पति की आय पर भी नहीं हुआ विचार 

विपुल के वकील ने यह भी दलील दी कि फैमिली कोर्ट ने भरण-पोषण की राशि तय करते वक्त उनके मुवक्किल की आमदनी को ठीक से जांचा ही नहीं. इस आधार पर भी आदेश त्रुटिपूर्ण है.

वहीं पत्नी के वकील का कहना था कि महिला पति की उपेक्षा के कारण अलग रह रही थी, इसीलिए उसे भरण-पोषण मिलना चाहिए. 

मामला फिर फैमिली कोर्ट भेजा गया 

8 जुलाई 2025 को हाई कोर्ट ने यह मामला दोबारा मेरठ की फैमिली कोर्ट को भेज दिया है, जहां अब नए सिरे से सुनवाई होगी. कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब तक अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक अंतरिम राहत के तहत पति को हर महीने पत्नी को ₹3,000 और बच्चे को ₹2,000 देना होगा.

इस फैसले का क्या मतलब है? 

यह निर्णय उन मामलों के लिए एक लीगल मिसाल (legal precedent) बन सकता है, जहां पत्नी बिना किसी ठोस वजह के पति से अलग रह रही हो और फिर भी भरण-पोषण की मांग करती हो. हाई कोर्ट ने साफ संदेश दिया है कि कानून का इस्तेमाल सिर्फ सहानुभूति पाने के लिए नहीं किया जा सकता.

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