टमाटर के छिलके से बन रहा 'लेदर', प्रितेश मिश्री ने कानपुर की 'समस्या' का निकाला ऐसा काट कि खड़ा हो गया बिजनेस मॉडल

कानपुर से जुड़ी एक गजब इनोवेशन स्टोरी: मुंबई के 26 साल के उद्यमी प्रितेश मिश्री ने टमाटर के वेस्ट से बायोलेदर बनाया. जानिए कैसे टमाटर का कचरा बना टिकाऊ बिजनेस मॉडल.

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तस्वीर: सिमर चावला.

सिमर चावला

14 Sep 2025 (अपडेटेड: 14 Sep 2025, 03:20 PM)

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भला टमाटर से 'लेदर' बन सकता है? एक बारगी तो आपको इसपर भरोसा नहीं होगा पर यकीन मानिए ये सच है. ये सच कर दिखाया है कानपुर के प्रितेश मिश्री ने. चमड़ा उद्योग के लिए देश में मशहूर कानपुर से निकला ये आइडिया पर देश भर में चर्चा होने लगी है. आइडिया भी निकला कानपुर की समस्या से जो अमूनन की समस्या है.

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मुंबई के रहने वाले प्रितेश (26) की 'द बायो कंपनी' (TBC) ने ऐसा बायोलेदर तैयार किया है, जो पूरी तरह वीगन (शाकाहार से बना), बायोडिग्रेडेबल और ईकोफ्रेंडली है. प्रितेश की इस इनोवेशन को 2021 में PETA Vegan Fashion Awards में बेस्ट इनोवेशन इन टेक्सटाइल से नवाजा जा चुका है. 

प्रितेश मिश्री ने कानपुर में ऐसा क्या देख लिया?

अब सवाल ये है कि प्रितेश ने कानपुर में ऐसा क्या देख लिया जिससे उनके मन में उस समस्याको खत्म कर उसे अवसर में बदलने का आइडिया आ गया. दरअसल कानपुर की टेनरियों में खाद्य अपशिष्ट के प्रदूषण को देख इनके दिमाग में विचार आने लगे. खेतों में भारी मात्रा में सड़ रही सब्जियों और किसानों के नुकसान को देखकर उन्होंने इसका काट निकालने के लिए काम करना शुरू किया. जब ये बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रहे थे, तब इसपर फाइनल ईयर प्रोजेक्ट के रूप में काम करना शुरू किया. 

कई महीनों की मेहनत से प्रितेश ने आखिकार वो हासिल कर लिया. उन्होंने बायोलेदर का पहला प्रोटोटाइप तैयार किया जिसका पेटेंट उनकी कंपनी के पास है.

टमाटर से कैसे बना लेदर? 

प्रितेश ने देखा कि भारत में सालाना  30-35 फीसदी टमाटर बर्बाद हो जाता है. चूंकि भारत टामाटर के उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश है. इसलिए पर्यावरण और किसानों की मेहनत दोनों को बर्बाद होने से बचाने के लिए प्रितेश ने टमाटर के बेकार छिलकों और बीज के जरिए बायोलेदर बनाने का काम किया. 

प्रितेश ने गुजरात के सूरत में TBC का संयंत्र लगाया है. इसमें वे स्थानीय किसानों और प्रोसेसिंग यूनिट्स से टमाटर के कचरे को इकट्‌ठा करते हैं. इसे बायोपॉलिमर्स, पौधों से बने बाइंडर्स और नैचुरल फाइबर के साथ प्रोसेस करके नॉन-टॉक्सिक तकनीक से लेदर जैसी बनावट दे  दी जाती है. पौधों पर आधारित कोटिंग इस लेदर को वाटर प्रूफ के साथ ही टिकाऊ भी बनाती है. टमाटर के छिलकों में मौजूद पेक्टिन और नैचुरल फाइबर लेदर जैसी बनावट देने का काम करते हैं. 

देश-दुनिया में बायो लेदर की खूब डिमांड 

देश-दुनिया में बायो लेदर  की डिमांड खूब है. मांग जूते से शुरू होकर, बैग, वॉलेट, जैकेट, कारों और बाइक्स के सीट कवर, इंटीरियर, समेत दूसरी कई चीजों में इसका इस्तेमाल जमकर हो रहा है. कनाडा की Satuhati ब्रांड जैसी कंपनियां इसके उत्पाद तैयार कर चुकी हैं. ब्रांड की CEO नैटाशा मंगवानी कहती हैं कि ''बायोलेदर पूरी तरह PU और PVC फ्री है. यही बातें इसे पारंपरिक सिंथेटिक लेदर से अलग करता है.''

वर्तमान में TBC हर महीने करीब 5,000 मीटर बायोलेदर का उत्पादन कर रही है. कंपनी का कहना है कि मांग बढ़ने के साथ उत्पादन क्षमता भी बढ़ाई जाएगी. 

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